रहिमन विलास – सारांश
यह अध्याय “रहीमन विलास” प्रसिद्ध कवि अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना (रहीम) के नीति-दोहों पर आधारित है। इन दोहों में जीवन के व्यवहारिक सत्य, नीति और नैतिक शिक्षा को सरल भाषा में समझाया गया है।
रहीम कहते हैं कि कपूत की गति दीपक के समान होती है, जो शुरू में प्रकाश करता है पर अंत में अंधकार बढ़ा देता है। अच्छे और मधुर वचन अमृत समान होते हैं, जबकि क्रोधयुक्त वचन मन को चुभते हैं। कवि बताते हैं कि अब वैसे वृक्ष दुर्लभ हो गए हैं, जिनकी छाया गंभीर और शीतल होती थी। वह जीभ को बावरी (मूर्ख) कहते हैं, क्योंकि उसका गलत प्रयोग मनुष्य को अपमानित कर सकता है। रहीम ने तन की तुलना नाव से की है, जिसे मन के नियंत्रण के बिना सही दिशा में चलाना कठिन है।
वे समय के महत्व को भी बताते हैं कि समय से बड़ा कोई लाभ नहीं और समय चूकने से बड़ी कोई हानि नहीं। मित्रता की पहचान विपत्ति के समय होती है, क्योंकि सच्चा मित्र वही है जो कठिन परिस्थितियों में साथ देता है। रहीम दीन-दुखियों के महत्व पर जोर देते हैं और कहते हैं कि जो दीनहीन को पहचानता है वही दीनबंधु कहलाता है। इसी तरह वे प्रकृति से भी सीख लेने को कहते हैं कि वर्षा ऋतु में कोयल मौन हो जाती है और मेंढक बोलने लगते हैं, अर्थात् समय के अनुसार ही आचरण करना चाहिए।
अंत में कवि बताते हैं कि धन विपत्ति में साथ नहीं रहता, जैसे भोर होने पर तारे छिप जाते हैं। इस प्रकार रहीम के दोहे हमें सिखाते हैं कि जीवन में मधुर वाणी, समय का मूल्य, सच्ची मित्रता, दीन-दुखियों के प्रति सहानुभूति और संयमित आचरण का होना बहुत आवश्यक है।
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