पथिक से – सारांश
यह कविता डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा लिखी गई है। इसमें कवि ने जीवन को एक यात्रा और मनुष्य को उस यात्रा का पथिक बताया है। जैसे यात्रा में रास्ते में नदियाँ, झरने, पहाड़ और सुंदर दृश्य पथिक को आकर्षित करते हैं, वैसे ही जीवन में भी कई सुखद परिस्थितियाँ और मोहक दृश्य आते हैं, जो हमें हमारे कर्त्तव्य-पथ से भटकाने का प्रयास करते हैं।
कवि चेतावनी देते हैं कि जीवन-पथ पर कठिनाइयाँ और बाधाएँ – काँटे, निराशा, विफलता और अकेलापन – अवश्य मिलेंगे। कभी अपने ही पराये हो सकते हैं, कभी असफलता से मन कमजोर पड़ सकता है, और कभी परिस्थितियाँ घोर अंधकार जैसी प्रतीत होंगी। लेकिन ऐसी कठिन घड़ियों में भी मनुष्य को अपने कर्त्तव्य और लक्ष्य से विमुख नहीं होना चाहिए।
कवि स्वतंत्रता संग्राम का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जब रणभूमि में सैनिक हिम्मत और बलिदान के लिए आगे बढ़ सकते हैं, तब हमें भी अपने कर्त्तव्यों का साहसपूर्वक निर्वाह करना चाहिए। स्वतंत्रता की ज्वाला में जब माँ अपने बेटों से आहुति माँग सकती है, तब जीवन की राह में आने वाले संकटों का डटकर सामना करना ही सच्चा कर्त्तव्य है।
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