युद्ध-गीता – सारांश
इस अध्याय का नाम ‘युद्ध-गीता’ है, जो रामचरितमानस से लिया गया है। इसमें श्रीराम और रावण के युद्ध का वर्णन है। रावण की विशाल सेना चलती है, जिसमें चार प्रकार की सेनाएँ हैं जैसे पैदल, घुड़सवार, हाथी और रथ। सेना में विभिन्न प्रकार के वाहन, रथ, झंडे और पताकाएँ हैं। मदमस्त हाथी झुंडों में चलते हैं, जैसे बादलों को हवा धकेल रही हो। सेना के समूह युद्ध में कुशल हैं और बहुविध माया जानते हैं। सेना सुंदर लग रही है जैसे बसंत ने वीरों की सेना सजाई हो। सेना के चलने से समुद्र थरथरा रहे हैं और पहाड़ डगमगा रहे हैं। धूल उड़कर सूरज छिप जाता है, हवा थक जाती है और धरती व्याकुल हो जाती है। नगाड़े, नफीरी और शहनाई बज रही हैं, जैसे प्रलय काल के बादल गरज रहे हों। वीर योद्धा सिंहनाद कर रहे हैं और अपना बल-पौरुष बता रहे हैं। रावण कहता है कि हे वीरों, भालू और वानरों की टोली को कुचल दो, मैं दोनों राजकुमार भाइयों को मारूंगा। यह सुनकर वानरों ने राम की दुहाई देकर हमला किया। वानर और भालू काल जैसे भयानक दौड़ते हैं, जैसे पंख वाले पर्वत उड़ रहे हों और विभिन्न बाण गिरा रहे हों। वे नाखून, दांत, पेड़ और पर्वतों को हथियार बनाते हैं, बिना डर के जय राम कहते हुए रावण को मदमस्त हाथी और राम को सिंह बताते हैं। दोनों ओर जयकार हो रही है और योद्धा राम और रावण की प्रशंसा कर भिड़ते हैं।
रावण रथ पर सवार है लेकिन राम बिना रथ, कवच और जूतों के हैं। यह देख विभीषण अधीर हो जाता है और प्रेम से राम के चरण पकड़कर कहता है कि हे नाथ, बिना रथ और रक्षा के आप बलवान वीर को कैसे जीतेंगे? तब दयानिधि राम कहते हैं कि हे सखा, जिससे जीत मिलती है वह दूसरा रथ है। उस रथ के पहिए शौर्य और धैर्य हैं, झंडा-पताका सत्य और शील हैं। चार घोड़े बल, विवेक, दम (इंद्रियों पर नियंत्रण) और परोपकार हैं। डोरियाँ क्षमा, कृपा और समता हैं। सारथी ईश्वर भजन है। ढाल वैराग्य, तलवार संतोष, फरसा दान, शक्ति बुद्धि, धनुष श्रेष्ठ विज्ञान है। तरकश निर्मल और अचल मन है, बाण यम-नियम और संयम हैं। कवच वेद, ब्राह्मण और गुरु पूजा है। ऐसा धर्मरथ जिसके पास हो, वह कहीं भी शत्रु को जीत सकता है। राम कहते हैं कि महान अजेय संसार रूपी शत्रु को वही वीर जीत सकता है जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो। यह सुन विभीषण खुश होकर राम के चरण कमल पकड़ते हैं और कहते हैं कि हे कृपा सुख के पुंज राम, इसी बहाने आपने मुझे उपदेश दिया।
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