बूँद – बूँद से ही घड़ा भरता है – सारांश
यह अध्याय “बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता है” पत्र के माध्यम से बचत और मितव्ययता का महत्व समझाता है। इसमें एक माँ अपने बेटे पुनीत को पत्र लिखते हुए बताती है कि उसकी बहन पवित्रा ने अपनी छात्रवृत्ति और माँ द्वारा भेजे गए पैसों को डाकघर के बचत खाते में नियमित रूप से जमा किया। वह अपनी आवश्यकताओं पर ही खर्च करती और अपव्यय से बचती रही। धीरे-धीरे छोटी-छोटी बचत से उसने पंद्रह हजार रुपये जोड़ लिए, जिससे थोड़े और पैसे मिलाकर घर में कम्प्यूटर खरीदा गया।
माँ समझाती है कि बचत से कई फायदे होते हैं – पैसों का हिसाब बना रहता है, अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने की आदत नहीं पड़ती, मितव्ययता का गुण विकसित होता है और जरूरत के समय वही पैसा काम आता है। इसके साथ ही यह भी बताती है कि व्यक्तिगत बचत केवल व्यक्ति की ही नहीं बल्कि राष्ट्र की उन्नति में भी सहायक होती है, क्योंकि यह राशि सार्वजनिक हित के कार्यों में लगाई जाती है।
माँ बेटे को सलाह देती है कि खर्च करने से पहले हमेशा सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए। जैसे एक-एक क्षण जोड़कर विद्या अर्जित होती है, वैसे ही एक-एक पैसा जोड़कर धन का संग्रह होता है। अंत में वह उसे याद दिलाती है कि – “बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता है।”
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