बहादुर बेटा – सारांश
“बहादुर बेटा” एक प्रेरणादायक एकांकी है, जो विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखी गई है। इसमें कुलदीप, संदीप, उनकी बहन मधुर और माँ के साथ एक साधारण घर की कहानी है। कुलदीप स्कूल से आकर माँ को बताता है कि तूफान और बाढ़ के कारण गाँव-के-गाँव बह गए, लोग मर गए, मकान गिर गए और हाहाकार मचा है। मास्टरजी ने कहा कि सभी को बाढ़ पीड़ितों की मदद करनी चाहिए। कुलदीप उत्साह से चंदा इकट्ठा करने और कैंप में मदद करने जाता है, जबकि माँ और मधुर भी अनाज और धन जुटाने की बात करते हैं। उधर, संदीप बाढ़ में फँसे लोगों को बचाने जाता है। उसका दोस्त खबर लाता है कि संदीप सुबह से ही मदद के लिए निकल गया। माँ चिंतित हो जाती है, लेकिन मधुर कहती है कि संदीप को अपने पिता और चाचा की तरह देशसेवा का जुनून है। बाद में रेडक्रास की एक युवती बताती है कि संदीप ने सैकड़ों लोगों को बचाया, लेकिन उनकी नाव उलट गई और वे पानी के तेज बहाव में बह गए। साथियों ने उन्हें बचा लिया, पर थकान से वे बेहोश हो गए। रेडक्रास के डॉक्टर और युवती संदीप को घर लाते हैं, जहाँ डॉक्टर उन्हें इंजेक्शन देकर आश्वस्त करता है कि वे जल्द ठीक हो जाएँगे। संदीप को होश आता है और वह डॉक्टर को धन्यवाद देता है। माँ, मधुर और कुलदीप उनकी बहादुरी और रेडक्रास के सेवा कार्य की प्रशंसा करते हैं। माँ कहती है कि जो दूसरों की रक्षा करते हैं, भगवान उनकी रक्षा करते हैं। एकांकी में संदीप की बहादुरी, परोपकार और रेडक्रास की सेवा भावना को दर्शाया गया है, जो देश और समाज के प्रति समर्पण का संदेश देता है।
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