नन्हा सत्याग्रही – सारांश
“नन्हा सत्याग्रही” आलमशाह खान द्वारा लिखी गई एक प्रेरक कहानी है, जो एक छोटे बालक मोहन की दृढ़ता और स्वाभिमान की भावना को दर्शाती है। कहानी में मोहन एक पुलिस अधिकारी शेरसिंह द्वारा गलती से मारे गए चाँटे के कारण रो रहा है। लोग और उसकी माँ उसे समझाते हैं कि बड़े हैं, एक चाँटा मार भी दिया तो क्या हुआ, पर मोहन अपनी जिद पर अड़ा रहता है। वह कहता है कि उसे सिर्फ यह जानना है कि उसका कसूर क्या था। मोहन की माँ उसे घर ले जाने की कोशिश करती है, लेकिन वह पुलिस चाचा के घर जाकर जवाब माँगने का फैसला करता है। वह शेरसिंह के घर के फाटक पर बैठ जाता है और पूछता है कि उसे क्यों मारा गया। शेरसिंह पहले गुस्सा दिखाते हैं और उसे भगाने की धमकी देते हैं, लेकिन मोहन नहीं हटता। पड़ोसी और शेरसिंह की पत्नी भी उसे समझाने की कोशिश करते हैं, पर वह कहता है कि उसे बस यह चाहिए कि शेरसिंह अपनी गलती मानें। उसी दिन गांधी जयंती थी, और मोहन के दोस्त प्रभात फेरी के लिए आते हैं। जब उन्हें मोहन की बात पता चलती है, वे सब शेरसिंह के फाटक पर नारे लगाते हैं और मोहन का साथ देते हैं। मोहन ने अपनी तख्ती पर लिखा था, “अत्याचार को सहना उसे बढ़ावा देना है।” आखिरकार, बाबा फरीद के समझाने पर शेरसिंह बाहर आते हैं और अपनी गलती मानते हुए कहते हैं कि गुस्से में उन्होंने मोहन पर हाथ उठा दिया। मोहन उनकी बात सुनकर उनके चरण छूता है और “इंस्पेक्टर साहब जिंदाबाद” का नारा लगाता है। यह कहानी गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को दर्शाती है, जिसमें मोहन का स्वाभिमान और दृढ़ निश्चय उसे नन्हा सत्याग्रही बनाता है।
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