युग की आशा – सारांश
यह अध्याय “युग की आशा” एक प्रेरणादायी कविता है, जिसमें कवि ने नवयुवकों और बच्चों को राष्ट्र का भविष्य और आशा बताया है। कवि कहता है कि बालक का रूप दिव्य और शाश्वत है, जिसे सभी प्यार करते हैं, क्योंकि वही भविष्य का कलाकार है जो आने वाले युग को संवारता है।
कविता में बालक को भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम और अन्य पौराणिक व ऐतिहासिक चरित्रों से जोड़ा गया है। कवि कहता है कि तुम्हें यशोदा की थपकियाँ, नंद की सुरभियाँ और कौशल्या का मातृमोह पुकार रहा है। तुम शकुंतला की शीतलता, गुरु द्रोण की प्रीति, अभिमन्यु की वीरता और महाराणा प्रताप के अमर तेज के प्रतीक हो। तुम पन्ना धाय के इतिहास, तुलसी और सूर की वाणी, तथा बैजू और तानसेन की संगीत-प्रतिभा के उत्तराधिकारी हो।
कवि युवाओं को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम विक्रमादित्य के गीत हो, आर्यों की आशा हो, जीवन की चिर-शांति और यौवन की परिभाषा हो। वास्तव में तुम ही वह शक्ति हो जो युग का मार्गदर्शन करती है और राष्ट्र के भविष्य को उज्ज्वल बनाती है।
इस कविता का संदेश है कि बालक और युवा पीढ़ी ही देश की सबसे बड़ी आशा है। उनमें साहस, त्याग, ज्ञान, कला और संस्कृति की शक्ति समाहित है। यदि वे इन आदर्शों को अपनाएँ, तो देश प्रगति और गौरव की नई ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है।
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