अहिंसा की विजय – सारांश
पाठ “अहिंसा की विजय” में लेखक भगवतशरण उपाध्याय ने महात्मा बुद्ध की करुणा और अहिंसा की शक्ति को समझाया है। इसमें बताया गया है कि अंगुलिमाल नाम का एक भयंकर डाकू था, जो लोगों को मारकर उनकी उँगलियाँ काट लेता और उनसे माला बनाता था। उसकी क्रूरता से पूरी प्रजा और राजा प्रसेनजित बहुत परेशान थे। जब महात्मा बुद्ध को यह पता चला, तो वे निडर होकर जंगल में अंगुलिमाल से मिलने गए। अंगुलिमाल ने उन्हें रोकने की कोशिश की, पर बुद्ध शांतिपूर्वक आगे बढ़ते रहे। बुद्ध ने डाकू से प्रेम और दया से कहा कि वह हिंसा से कब रुकेगा और जीवन का असली अर्थ समझेगा। बुद्ध की वाणी और शांत तेज से अंगुलिमाल का हृदय बदल गया। उसने अपनी कटार फेंक दी, अंगुलियों की माला तोड़ दी और बुद्ध का शिष्य बनकर हिंसा का मार्ग सदा के लिए छोड़ दिया। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि अहिंसा, करुणा और प्रेम की शक्ति सबसे बड़ी है और यह कठोर से कठोर हृदय को भी बदल सकती है।
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