अपराजिता – पाठ का सारांश
यह पाठ ‘अपराजिता’ एक ऐसी बहादुर महिला डॉ. चंद्रा की कहानी है, जो पोलियो की वजह से बचपन में ही अपंग हो गईं, लेकिन अपनी मजबूत इच्छाशक्ति, धैर्य और साहस से जीवन में कभी हार नहीं मानीं। लेखिका शिवानी ने इस संस्मरण में बताया है कि कैसे विधाता ने हमें कभी-कभी ऐसे अद्भुत लोगों से मिला देता है, जो हमें अपनी छोटी-छोटी परेशानियों पर शर्मिंदा कर देते हैं। डॉ. चंद्रा का निचला शरीर पूरी तरह से निर्जीव था, फिर भी वे हमेशा खुश रहतीं, उनकी आँखों में उत्साह भरा होता और वे बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाएँ रखतीं। लेखिका ने उन्हें पहली बार अपनी पड़ोस की कोठी में कार से उतरते देखा, जहाँ वे खुद बैसाखियों और व्हीलचेयर की मदद से चलतीं, बिना किसी सहारे के। इससे लेखिका को लगा कि वे कोई मशीन की तरह काम कर रही हैं, लेकिन जानने पर पता चला कि उनके पीछे एक लंबी संघर्ष की कहानी है।
डॉ. चंद्रा को जन्म के 18 महीने बाद पोलियो हो गया, जिससे उनकी गर्दन के नीचे का पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया। डॉक्टरों ने कहा कि वे कभी चल-फिर नहीं सकेंगी, लेकिन उनकी माँ श्रीमती टी. सुब्रहमण्यम ने कभी हिम्मत नहीं हारी। माँ ने सालों तक कठिन उपचार करवाया, खुद स्कूल बनकर पढ़ाया और बंगलौर के माउंट कार्मेल स्कूल में एडमिशन के लिए धरना तक दिया। माँ हमेशा चंद्रा की व्हीलचेयर के पीछे रहतीं, क्लास में उनकी मदद करतीं। चंद्रा बहुत होशियार थीं, उन्होंने हर परीक्षा में टॉप किया, बीएससी और एमएससी में गोल्ड मेडल जीते। फिर उन्होंने बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में पीएचडी की, माइक्रोबायोलॉजी में, और अपंग महिलाओं में पहली भारतीय बनीं जिन्हें इस विषय में डॉक्टरेट मिली। उनकी माँ को ‘वीर जननी’ का पुरस्कार मिला, क्योंकि उन्होंने 25 साल तक बेटी के साथ मिलकर यह संघर्ष किया।
चंद्रा हमेशा स्वतंत्र रहना चाहतीं, उन्होंने अपनी लैब को इस तरह बनाया कि बिना उठे सब काम कर सकें। वे कार चलाने के लिए स्पेशल डिजाइन बनातीं, कविताएँ लिखतीं, कढ़ाई-बुनाई करतीं, जर्मन भाषा सीखीं, संगीत में रुचि रखतीं और गर्ल गाइड में राष्ट्रपति का गोल्ड कार्ड जीता। वे डॉक्टर बनना चाहतीं थीं, लेकिन अपंगता की वजह से मेडिकल में एडमिशन नहीं मिला, फिर भी उन्होंने विज्ञान में बड़ा योगदान दिया। लेखिका ने एक युवक का उदाहरण दिया जो सिर्फ एक हाथ खोकर हार मान गया, जबकि चंद्रा ने कभी विषाद नहीं दिखाया। पाठ में भाषा के बारे में भी बताया गया है, जैसे ‘ऑ’ की ध्वनि वाले शब्द (डॉक्टर, कॉलेज), मुहावरे, वाक्यों के भेद (साधारण, मिश्रित, संयुक्त) और विराम चिह्नों का प्रयोग। कुल मिलाकर, यह पाठ हमें सिखाता है कि धैर्य, साहस और निरंतर मेहनत से कोई भी विपत्ति को हरा सकता है, और अपंगता जीवन की रुकावट नहीं बल्कि चुनौती है।
पाठ के अंत में अभ्यास प्रश्न हैं, जैसे शब्दार्थ ढूँढना, बोध प्रश्न, भाषा अध्ययन और योग्यता विस्तार। उदाहरण के लिए, वाक्यों के प्रकार समझाए गए हैं: साधारण वाक्य में एक क्रिया होती है, मिश्रित में प्रधान और आश्रित उपवाक्य, और संयुक्त में समान उपवाक्य। अपठित गद्यांश से मुहावरे निकालने और विकलांगों के प्रति सहानुभूति सिखाने वाले सवाल हैं। यह सब कक्षा 8 के छात्रों को आसान भाषा में गुणों का विकास करने और हिंदी सीखने में मदद करता है।
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