भक्ति के पद – पाठ का सारांश
इस अध्याय का नाम “भक्ति के पद” है, जो भगवान के प्रति गहरी भक्ति, समर्पण और प्रेम की भावना सिखाता है। इसमें तत्सम शब्द, पर्यायवाची शब्द और छंद जैसे दोहा तथा सोरठा के बारे में जानकारी दी गई है। अध्याय में चार भक्ति पद हैं, जो सूरदास, तुलसीदास, रैदास और मीराबाई द्वारा रचे गए हैं। इन पदों में भगवान के प्रति अटूट प्रेम, समर्पण और शरण लेने की भावना का सुंदर चित्रण है। सूरदास का पद बताता है कि उनका मन भगवान के अलावा कहीं और सुख नहीं पाता, जैसे जहाज का पक्षी हमेशा जहाज पर ही लौटता है। वे कहते हैं कि कमल जैसे नेत्र वाले भगवान को छोड़कर दूसरे देवताओं की पूजा व्यर्थ है, और कामधेनु गाय को छोड़कर बकरी का दूध निकालना मूर्खता है। तुलसीदास का पद राम के चरणों में समर्पण की बात करता है, जहां वे पूछते हैं कि पतितों को बचाने वाला कौन है, और खग, मृग, व्याध, पाषाण, विटप जैसे जीवों का उद्धार राम ने ही किया। रैदास का पद नाम जपने की अटूट भक्ति दिखाता है, जहां वे भगवान को चंदन, बादल, दीपक, मोती और स्वामी से जोड़कर खुद को पानी, मोर, बाती, धागा और दास बताते हैं। मीराबाई का पद राम रत्न प्राप्त करने की खुशी व्यक्त करता है, जो सतगुरु की कृपा से मिला, और यह पूंजी कभी खत्म नहीं होती बल्कि बढ़ती जाती है।
कवियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है। सूरदास का जन्म 1478 में मथुरा के पास हुआ, वे जन्म से अंधे थे लेकिन संगीत में निपुण, और ‘सूरसागर’ उनकी प्रसिद्ध रचना है। तुलसीदास का जन्म 1532 में हुआ, वे रामभक्ति के कवि थे और ‘रामचरितमानस’ लिखा। रैदास का जन्म 1388 में वाराणसी में हुआ, वे साधना से ज्ञान प्राप्त करने वाले संत थे। मीराबाई का जन्म 1498 में राजस्थान में हुआ, वे कृष्ण भक्त थीं और पति की मृत्यु के बाद पूरी तरह भक्ति में लीन हो गईं। अध्याय में कुछ टिप्पणियां हैं, जैसे विटप का मतलब यमलार्जुन वृक्ष, व्याध का मतलब वाल्मीकि, खग का मतलब जटायु, मृग का मतलब मारीच और पाषाण का मतलब अहिल्या।
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