मनभावन सावन – पाठ का सारांश
इस कविता में सावन की वर्षा ऋतु की जीवंत और मनमोहक तस्वीर खींची गई है। कवि बताते हैं कि सावन में बादल झम-झम बरसते हैं, पेड़ों से छनकर बूंदें छम-छम गिरती हैं, बिजली चम-चम चमकती है और मन में सपने थम-थम जागते हैं। ताड़ के पत्ते फैले हुए हाथों की तरह दिखते हैं, जिन पर पानी की धाराएं तड़-तड़ और टप-टप गिरती हैं। नीम का पेड़ खुशी से झूम-झूम कर सिर हिलाता है, जैसे नाच रहा हो। हरसिंगार के फूल झरते हैं और बेला की कलियां हर पल बढ़ती हैं। हरी-भरी हरियाली में पक्षी मंगल गीत गाते हैं। मेंढक टर-टर, मोर प्याव-प्याव और चातक पीठ-पीठ की आवाज करते हैं, जबकि सोनबलाक उड़ते हुए खुशी से चहकते हैं। बादल घुमड़-घुमड़ कर गगन में गरजते हैं। रिमझिम बूंदों की आवाज मन को छू लेती है और धरती पर बरसती धाराएं मिट्टी और घास में खुशी की लहर भर देती हैं। कवि का मन पानी की धार पर झूलता है और वह सबको सावन के गीत गाने और इंद्रधनुष के झूले में झूलने का न्योता देता है, ताकि जीवन में बार-बार ऐसा मनभावन सावन आए। कवि सुमित्रानंदन पंत, जो प्रकृति के चितेरे कहलाते हैं, का जन्म 1900 में अल्मोड़ा के कौसानी गांव में हुआ था। वे छायावादी कविता के प्रमुख कवि हैं और उनकी रचनाओं जैसे ‘पल्लव’, ‘वीणा’, ‘गुंजन’, ‘स्वर्णधूलि’ आदि में प्रकृति का सुंदर वर्णन मिलता है। यह कविता ‘स्वर्णधूलि’ से ली गई है। शिक्षण संकेतों में कविता को लय और भाव के साथ पढ़ाने, बच्चों से भाव समझाने और नागार्जुन की ‘मेघ बजे’ जैसी कविताएं सुनाने का सुझाव है।
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