1.भारत में कम्पनी का शासन
प्लासी (1757) और बक्सर (1764) के युद्धों के बाद अंग्रेजों ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर अधिकार कर लिया।
इलाहाबाद की संधि (1765) से कम्पनी को दीवानी अधिकार मिले।
धीरे-धीरे अंग्रेज व्यापारी से प्रशासक बन गए।
2. बंगाल में दोहरा शासन प्रबंध (1765–1772)
दीवानी अधिकार कम्पनी को, और निजामत (शासन व न्याय) नवाब के पास।
असल शक्ति अंग्रेजों के पास थी, जिम्मेदारी नवाब की थी।
इससे जनता को भारी कष्ट हुआ – कृषि, उद्योग और व्यापार नष्ट होने लगे।
1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने दोहरा शासन समाप्त कर दिया और सभी अधिकार कम्पनी ने अपने हाथ में ले लिए।
3. रेग्यूलेटिंग एक्ट (1773)
कम्पनी के भ्रष्टाचार और अव्यवस्था को रोकने के लिए ब्रिटिश संसद ने पारित किया।
बंगाल का गवर्नर अब गवर्नर जनरल कहलाया और मद्रास-बम्बई उस अधीन हो गए।
एक चार सदस्यीय परिषद बनाई गई।
कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई।
कम्पनी के कर्मचारियों को उपहार और निजी व्यापार करने से रोका गया।
कमियाँ – गवर्नर और परिषद में झगड़े, अधिकार स्पष्ट नहीं, न्यायालय की शक्ति अस्पष्ट।
4. पिट इंडिया एक्ट (1784)
विलियम पिट द्वारा पारित।
कम्पनी पर ब्रिटिश सरकार का सीधा नियंत्रण बढ़ा।
बोर्ड ऑफ कंट्रोल (6 सदस्यीय) बनाया गया।
भारत की सेना, राजस्व और प्रशासन पर इसका नियंत्रण हुआ।
गवर्नर जनरल अब वास्तविक शासक बना।
5. सिविल सर्विस का गठन
लार्ड कार्नवालिस (1786) ने सिविल सर्विस की नींव रखी।
भ्रष्टाचार रोकने के लिए अफसरों को ऊँचा वेतन दिया गया।
भारतीयों को ऊँचे पदों से दूर रखा गया।
प्रशिक्षण हेतु फोर्ट विलियम कॉलेज (1801) और बाद में इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कॉलेज की स्थापना।
6. न्याय और कानून व्यवस्था
प्रारम्भ में पुराने हिन्दू और मुस्लिम कानून लागू रहे।
अंग्रेजों और भारतीयों के विवाद अंग्रेजी कानून से सुलझाए गए।
1793 में कार्नवालिस संहिता बनी – शक्तियों के पृथक्करण पर आधारित।
लिखित कानूनों की शुरुआत हुई।
7. भू-राजस्व व्यवस्थाएँ
स्थाई बंदोबस्त (1793, कार्नवालिस)
बंगाल, बिहार, उड़ीसा में लागू।
जमींदार को भू-स्वामी माना गया।
नुकसान – जमींदार किसानों से ज्यादा लगान वसूलते थे, किसान निर्धन हो गए।
1. रैयतवाड़ी व्यवस्था
मद्रास और बम्बई में लागू।
जमीन जोतने वाला ही भू-स्वामी।
कर न देने पर किसान की जमीन छिन जाती थी।
2.महालवाड़ी व्यवस्था
अवध और उत्तर भारत में।
पूरा गाँव (महाल) कर देने के लिए जिम्मेदार।
8. ब्रिटिश आर्थिक नीतियाँ
किसानों और शिल्पकारों पर करों का बोझ।
भारतीय वस्त्र उद्योग नष्ट – ढाका, वाराणसी जैसे केन्द्र बर्बाद।
1700 और 1720 में इंग्लैंड ने भारतीय कपड़े के आयात पर रोक लगा दी।
मशीन से बने सस्ते कपड़ों ने भारतीय बाजार पर कब्जा किया।
भारतीय कुटीर उद्योग धीरे-धीरे खत्म हो गए।
9. परिवहन और संचार
सड़कों, नहरों और बंदरगाहों का विकास।
डलहौजी ने डाक-तार की व्यवस्था शुरू की, पहली बार डाक टिकट जारी।
कलकत्ता से आगरा तक टेलीग्राफ लाइन।
भारत की पहली रेलगाड़ी (1853) – बम्बई से ठाणे।
10. भारतीय समाज (18वीं–19वीं सदी)
सामाजिक कुरीतियाँ – सती प्रथा, बाल विवाह, कन्या वध, पर्दा प्रथा, दास प्रथा।
सुधार –
1829 में सती प्रथा पर रोक।
1843 में दास प्रथा समाप्त।
समाज सुधारक – राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती, विवेकानंद आदि।
11. शिक्षा व्यवस्था
पहले पाठशाला, मकतब, टोल और मदरसे।
1781 – कलकत्ता मदरसा (अरबी-फारसी शिक्षा)।
1784 – एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल।
1791 – वाराणसी संस्कृत कॉलेज।
1835 – अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया।
कलकत्ता, मद्रास, बम्बई विश्वविद्यालय स्थापित हुए।
आधुनिक शिक्षा से नया मध्यम वर्ग उभरा, आधुनिक विचार फैले।
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