1. मानचित्र का महत्व
- किसी क्षेत्र के भौगोलिक ज्ञान के लिए मानचित्र उपयोगी है।
- समोच्च रेखाओं से क्षेत्र की ऊँचाई-निचाई (उच्चावच) का ज्ञान होता है।
- स्थानीय मानचित्र से वहाँ के भौतिक स्वरूप, वनस्पति, खेत, आवासीय क्षेत्र आदि की जानकारी मिलती है।
2. मानचित्र की मूल बातें
- पृथ्वी या उसके किसी भाग को समतल सतह पर पैमाने के आधार पर रूढ़चिन्हों से चित्रित किया जाता है → इसे मानचित्र कहते हैं।
- धरातल और मानचित्र का अनुपातिक संबंध = पैमाना।
- मानचित्र का शीर्ष (ऊपरी भाग) → उत्तर दिशा।
- पुस्तकों में जो मानचित्र होते हैं → वे छोटे पैमाने के मानचित्र होते हैं।
3. स्थल रूपों की पहचान
धरातल एक जैसा नहीं होता :
- कहीं ऊँचा, कहीं नीचा, कहीं समतल, कहीं ऊबड़-खाबड़।
- इसे ही धरातल का उच्चावच कहते हैं।
मानचित्र समतल पटल पर बनता है → इसलिए ऊँचाई-निचाई दिखाने में कठिनाई होती है।
इस कठिनाई को दूर करने के लिए दो विधियाँ अपनाई जाती हैं :
- रंग विधि
- समोच्च रेखा विधि
4. रंग विधि
- समुद्र की सतह = ऊँचाई मापने का आधार।
- मानचित्र में स्थल रूपों के रंग :
- मैदान = हरा रंग
- पठार = पीला या भूरा रंग
- पहाड़ = कत्थई रंग
- हल्का रंग = कम ऊँचाई।
- गहरा रंग = अधिक ऊँचाई।
- बहुत ऊँचे पर्वत शिखरों पर ऊँचाई संख्या लिखी होती है (जैसे एवरेस्ट – 8848 मी.)।
समुद्र की गहराई
- समुद्र = नीला रंग।
- हल्का नीला = कम गहराई।
- गहरा नीला = अधिक गहराई।
- बहुत गहरे खड्ड = गहरे नीले रंग से।
5. समोच्च रेखा विधि
- परिभाषा → समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ = समोच्च रेखाएँ।
- हर रेखा पर ऊँचाई अंकित होती है।
- रेखाएँ पास-पास = ढाल अधिक।
- रेखाएँ दूर-दूर = ढाल कम।
समोच्च रेखाओं से स्थल आकृतियाँ
- शंक्वाकार पहाड़ी – चारों ओर समान ढाल, रेखाएँ गोलाई में।
- पठार – किनारों पर ढाल तेज, बीच का भाग समतल।
- नदी घाटी – V आकार की समोच्च रेखाएँ।
- लम्बी पहाड़ी/कगार – लम्बी वृत्ताकार रेखाएँ।
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