परिचय
- मानव और प्रकृति का प्राचीन काल से गहरा संबंध रहा है।
- पहले मानव की जरूरतें सीमित थीं, इसलिए वह जल, भूमि, वायु, पौधों आदि का उचित उपयोग करता था।
- औद्योगिक विकास और जीवनशैली में बदलाव के कारण प्रकृति का अंधाधुंध दोहन शुरू हुआ।
- परिणाम: पर्यावरण में असंतुलन, जिससे मानव और सभी जीवों का जीवन संकट में है।
- समाधान: आवश्यकताओं को सीमित करना और पर्यावरण के अनुकूल विकास के तरीके अपनाना।
1. कृषि और पशुपालन का पर्यावरण पर प्रभाव
कृषि
कृषि की परिभाषा: इसमें भूमि की जुताई, फसल उगाना, कटाई और पशुपालन शामिल है।
पारंपरिक बनाम आधुनिक कृषि:
- पारंपरिक: मानव और पशु श्रम पर आधारित।
- आधुनिक: यांत्रिक, मशीनों पर आधारित।
पर्यावरण पर प्रभाव:
1. रासायनिक उर्वरक:
- उत्पादन बढ़ाने में सहायक, लेकिन पर्यावरण को नुकसान।
- केवल 60% उर्वरक पौधों द्वारा उपयोग होता है, बाकी मिट्टी में रहकर जल स्रोतों (तालाब, नदी, झील) और भू-जल को प्रदूषित करता है।
2.कीटनाशक और रोगनाशक:
- फसलों को कीड़ों और रोगों से बचाने के लिए उपयोग।
- मिट्टी की उर्वरता और मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव।
3.प्रभाव का प्रकार:
- प्रत्यक्ष: मिट्टी और जल प्रदूषण।
- परोक्ष: स्वास्थ्य पर प्रभाव।
पशुपालन
परिभाषा: पशुओं के संवर्धन और पालन की प्रक्रिया, जिससे भोजन और अन्य उत्पाद प्राप्त होते हैं।
आधुनिक तकनीक:
- व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन के लिए नई तकनीकों का उपयोग।
- पशुओं के लिए उचित खुराक और प्रबंधन पर भारी खर्च।
पर्यावरण पर प्रभाव:
- बढ़ती जनसंख्या के कारण पशु उत्पादों की मांग में वृद्धि।
- वैज्ञानिक शोध: उन्नत नस्लों (जैसे अधिक ऊन वाली भेड़ें, क्लोनिंग, कृत्रिम प्रजनन) का विकास।
- परिणाम: जैविक विविधता पर नकारात्मक प्रभाव।
2. उद्योग
परिभाषा: वस्तुओं के उत्पादन और सेवाओं से संबंधित गतिविधियाँ।
औद्योगिक क्रांति का प्रभाव: मशीनों, नई प्रौद्योगिकी और कुशल श्रम से बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हुआ।
प्रमुख उद्योग:
- लोहा और इस्पात
- ऑटोमोबाइल
- चीनी
- कपड़ा
उद्योग के अवयव:
1. पूँजी:
- भौतिक पूँजी: भवन, मशीनें।
- आर्थिक पूँजी: स्वयं की या बैंक/संस्थाओं से ऋण।
2.कच्चा माल: प्राकृतिक संसाधनों (नवीकरणीय/अनवीकरणीय) पर निर्भर।
3.प्रौद्योगिकी: उत्पादन में नवीनता लाती है, समाज और संस्कृति को बदल सकती है।
4.श्रम: कुशल श्रमिकों का समूह, जो मालिकों के साथ कार्य निर्धारित करता है।
वस्तु निर्माण की प्रक्रियाएँ:
- संयोजन: विभिन्न भागों को जोड़कर अंतिम उत्पाद बनाना (उदाहरण: साइकिल)।
- परिवर्तन: कच्चे माल को नए रूप में बदलना (उदाहरण: वृक्ष से लकड़ी)।
- निष्कर्षण: कच्चे माल से अवयव निकालना (उदाहरण: कच्चे तेल से पेट्रोल)।
उत्पादन का इतिहास:
- प्राचीन काल: हस्तनिर्मित (ईंटें, मिट्टी के पात्र)।
- आधुनिक काल: कपड़ा उद्योग में कपास, रेशम, ऊन, नाइलॉन, पॉलिएस्टर से सूत और कपड़ा बनाना।
योजना और प्रबंधन:
- राष्ट्रीय स्तर: सरकार कर छूट देती है।
- वैयक्तिक स्तर: प्रबंधन बोर्ड बाजार और प्रतियोगिता के अनुसार योजना बनाता।
- प्रबंधन की भूमिका: उत्पादन प्रक्रिया का निरीक्षण, समन्वय, कुशल श्रमिकों और विपणन की व्यवस्था।
3. औद्योगिक अपशिष्ट
प्रकार: ठोस, तरल, गैसीय।
विशेषता: ज्वलनशील, क्षयकारी, विषाक्त तत्वों के कारण पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक।
प्रमुख उद्योग और उनके अपशिष्ट:
- कपड़ा उद्योग: रंगाई में प्रयुक्त पानी में रसायन, जो जल प्रदूषण का कारण बनते हैं।
- चर्म शोधन-गृह: मृत पशुओं की खाल से चमड़ा बनाते समय ठोस, तरल, गैसीय अपशिष्ट, विशेष रूप से विषैला तरल अपशिष्ट।
- लोहा और इस्पात उद्योग: सल्फ्यूरिक तेजाब, हाइड्रोक्लोरिक तेजाब, राख, धूल।
- तापीय ऊर्जा उद्योग: कोयले से बनी राख और गैसीय अपशिष्ट (धुआँ)।
- तेल शोधक कारखाने: गैसीय और तरल अपशिष्ट।
- अन्य: कागज, चीनी, रबड़ उद्योग।
4. अपशिष्ट का प्रबंधन
महत्व: अपशिष्ट की मात्रा बढ़ रही है, अनुचित निपटारा वायु, जल, भूमि प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा करता है।
ठोस अपशिष्ट का निपटारा:
1. पुनः उपयोग:
- धातुओं, प्लास्टिक, शीशा, कागज को पिघलाकर या पुनर्चक्रण द्वारा नई वस्तुएँ बनाना।
- शीशा और कागज 100% पुनः उपयोग योग्य।
2.भूमि में दबाना:
- अपशिष्ट को पतली परतों में बिछाकर, बुलडोजर से दबाना, मिट्टी की परत डालना।
- स्थान: बाढ़ से सुरक्षित, गहरा भू-जलस्तर।
3.कूड़ा खाद बनाना:
- अपघटनीय अपशिष्ट (कागज, लकड़ी, पत्ते) को छाँटकर खाद बनाना।
- प्रक्रिया: परतों में रखना, वायु संचार, पानी डालना, ढँकना, 3 सप्ताह बाद खाद तैयार।
4.भस्मक:
- अपशिष्ट जलाकर 90% नष्ट करना।
- आधुनिक भस्मक: छलनीदार थैली, गीले मार्जक से प्रदूषण नियंत्रण।
5.तरल अपशिष्ट का निपटारा:
- ठोस कचरा हटाना, रेत/बजरी को नीचे बैठने देना, फिर ठोस अपशिष्ट की तरह निपटारा।
6.गैसीय अपशिष्ट का निपटारा:
चुनौती: धुआँ वायु में मिल जाता है।
समाधान:
- ऊँची चिमनियाँ: धुआँ ऊपर उठाकर प्रभाव कम करना।
- स्थिर वैद्युत अवक्षेपक: चिमनी पर लगाकर प्रदूषक तत्वों को संग्रहित करना।
5. पर्यावरण सहयोगी प्रौद्योगिकी
परिभाषा: ऐसी प्रौद्योगिकी जो उद्योगों को सुरक्षित और मितव्ययी बनाए।
उदाहरण:
- ऑटोमोबाइल कबाड़ से नई धातु बनाना।
- चिमनियों में धूम्रमार्जक से हानिकारक गैसों को हटाना।
- रासायनिक अपशिष्ट के हानिकारक तत्वों को कम कर पुनः उपयोग।
- परिवहन में CNG का उपयोग (कम प्रदूषण)।
- कम्प्यूटर आधारित मशीनें: सटीक, ऊर्जा बचत, कम अपशिष्ट।
- बायो-डीजल: पौधों की पत्तियों से ऊर्जा स्रोत।
6. राष्ट्रीय पर्यावरणीय मुद्दे
औद्योगीकरण: 1970-80 के दशक में तेजी से बढ़ा।
प्रयास:
- सरकार और गैर-सरकारी संगठन सक्रिय।
- कानून: पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, फैक्ट्री संशोधन अधिनियम, मोटर वाहन नियम।
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (राष्ट्रीय/राज्य स्तर): सर्वेक्षण, उत्तरदायित्व निर्धारण, दोषी कारखानों को बंद करने का आदेश।
- सरकार द्वारा धन उपलब्ध कराया गया।
7. क्षेत्रीय पर्यावरणीय मुद्दे
स्थानीय संगठनों की भूमिका:
- नगरपालिका/नगर निगम: ठोस अपशिष्ट के लिए कूड़ेदान, सुबह कचरा उठाने की व्यवस्था।
- मल-जल: नगर के दूरस्थ भागों में ले जाकर उपचार संयंत्र में निपटारा।
सामुदायिक भूमिका:
- सड़कों/पार्कों में कचरा न फेंकना, पानी का जमाव रोकना।
- जैव अपघटनीय अपशिष्ट: पत्ते, सब्जियाँ, फल (सूक्ष्म जीव मिट्टी में मिला सकते हैं)।
- गैर-जैव अपघटनीय: प्लास्टिक, पॉलिथीन, कृत्रिम कपड़े, धातुएँ।
- पर्यावरण अनुकूल सामान खरीदना, गैर-अनुकूल सामान का बहिष्कार।
संयुक्त प्रयास: अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सभी का सहयोग जरूरी।
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