1. पृथ्वी और स्थलमण्डल
- पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 400 करोड़ वर्ष पूर्व मानी जाती है।
- पृथ्वी का 29% भाग स्थलमण्डल तथा 71% भाग जलमण्डल से घिरा है।
- स्थलमण्डल पृथ्वी की सबसे बाहरी परत है, जिस पर मनुष्य, पशु-पक्षी और पौधे रहते हैं।
- धरातल पर परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं –
- आकस्मिक (जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी)
- धीमी गति वाले (जैसे जल, पवन, हिमानी, समुद्री लहरें)
2.पृथ्वी की संरचना
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की आंतरिक संरचना को 3 भागों में बाँटा है –
1.भू-पर्पटी (Crust) –
सबसे बाहरी परत, मोटाई 10-70 किमी।
ऊपरी परत को सियाल (Sial) कहते हैं → सिलिका + एल्युमिनियम।
नीचे की परत सीमा (Sima) → सिलिका + मैग्नीशियम।
2.मैंटल (Mantle) –
भू-पर्पटी के नीचे, गहराई 70-2900 किमी।
इसमें ओलिवाइन और पाइरॉक्सिन खनिज पाए जाते हैं।
3.क्रोड / नीफे (Core/Nife) –
सबसे भीतरी भाग, गहराई 2900-6400 किमी।
इसमें निकेल + फेरियम धातुएँ होती हैं।
घनत्व सबसे अधिक (लगभग 13)।
3. शैल (चट्टानें) और उनके प्रकार
शैल वे पदार्थ हैं जिनसे पृथ्वी का भूपृष्ठ बना है।मुख्य प्रकार –
- आग्नेय शैलें – पिघले पदार्थ (लावा) के ठंडा होकर कठोर होने से बनी।
- ग्रेनाइट (निर्माण कार्य में), बेसाल्ट (सड़क बनाने में)।
- अवसादी शैलें – जल, वायु, हिम द्वारा लाए गए अवसाद की परतों से बनी।
- उदाहरण – बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, कोयला।
- कायान्तरित शैलें – ताप और दबाव से बदली हुई शैलें।
- चूना पत्थर → संगमरमर, बलुआ पत्थर → क्वार्ट्जाइट, कोयला → हीरा।
4. स्थलाकृतियों के प्रकार
1. पर्वत –
समुद्रतल से 1000 मीटर या अधिक ऊँचाई।
प्रकार – वलित पर्वत, भ्रंश पर्वत, ज्वालामुखी पर्वत।
लाभ – नदियों का उद्गम स्थल, खनिज पदार्थ, जलवायु पर प्रभाव।
2.पठार –
ऊपर से सपाट और समुद्रतल से लगभग 600 मीटर ऊँचाई।
प्रकार – पर्वतीय पठार, महाद्वीपीय पठार, तटीय पठार।
उपयोग – खनिज पदार्थ, उपजाऊ भूमि।
3.मैदान –
समतल और कम ऊँचाई (350 मीटर तक)।
मानव निवास और कृषि के लिए सबसे उपयुक्त।
इन्हें सभ्यता का पालना कहा जाता है।
5.भू-संचलन की क्रियाएँ
1.दीर्घकालिक भू-संचलन –
बहुत धीरे-धीरे होता है।
महाद्वीप और पर्वत निर्माण में सहायक।
2.वलन – शैलों का मुड़ना।
3.भ्रंशन – शैलों का टूटना और ऊपर-नीचे खिसकना।
4.आकस्मिक भू-संचलन –
अचानक घटित होते हैं।
दो प्रमुख प्रकार –
1.ज्वालामुखी – लावा, राख, धुआँ का उद्गार।
- प्रकार – सक्रिय (एटना), अर्द्धसक्रिय (विसूवियस), विसुप्त/शांत (किलीमंजारो)।
- लाभ – उपजाऊ मिट्टी, खनिज, झीलों का निर्माण।
- हानि – जन-धन की हानि, गाँव-नगर का नाश।
2.भूकम्प – पृथ्वी का कम्पन।
- उद्गम स्थान = भूकम्प केन्द्र (Focus),सतह पर पहला स्थान = अधिकेन्द्र (Epicenter)।
- कारण – प्लेटों का खिसकना, ज्वालामुखी, गैसों का दबाव।
- लाभ – नई भूमि, खनिज, झीलें।
- हानि – इमारतें, सड़कें, पुल, जीवन व धन की हानि।
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