पर्यावरण
हमारे चारों ओर का वातावरण और परिवेश ही पर्यावरण है।
इसमें शामिल हैं:
- स्थलमण्डल (जमीन)
- जलमण्डल (पानी)
- वायुमण्डल (हवा)
- जीवमण्डल (सभी जीव)
पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है जहाँ ये सभी मण्डल मौजूद हैं, जिसके कारण जीवमण्डल का विकास हुआ।
पारिस्थितिक तंत्र
- परिभाषा: सजीव और निर्जीव घटकों का एक कार्यशील तंत्र, जो आपस में क्रिया करता है।
- उदाहरण: एक परिवार की तरह, पर्यावरण के सभी घटक एक-दूसरे से जुड़े और निर्भर होते हैं।
- पारिस्थितिकी: जीवों और उनके पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्ययन।
पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार
1. प्राकृतिक:
- स्थलीय: घास का मैदान, मरुस्थल, वन, पर्वत, पठार।
- जलीय: नदी, झरना, समुद्र, तालाब, झील।
2. कृत्रिम (मानव निर्मित): खेत, उद्यान, चारागाह, एक्वेरियम।
पारिस्थितिक तंत्र की संरचना
पारिस्थितिक तंत्र दो प्रकार के घटकों से बनता है:
1. जैविक घटक (सजीव)
उत्पादक: हरे पौधे जो सूर्य की रोशनी से भोजन बनाते हैं (प्रकाश संश्लेषण)।
- प्रकाश संश्लेषण: सूर्य के प्रकाश में, पानी और कार्बन डाइऑक्साइड से भोजन (ग्लूकोज) बनता है, और ऑक्सीजन निकलता है।
- समीकरण: 6CO₂ + 6H₂O → C₆H₁₂O₆ + 6O₂
(क्लोरोफिल और सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में)
उपभोक्ता: जो भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर होते हैं।
- प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाहारी): हरे पौधों से भोजन लेते हैं, जैसे गाय, हिरण, खरगोश, टिड्डा।
- द्वितीयक उपभोक्ता (मांसाहारी): प्राथमिक उपभोक्ताओं को खाते हैं, जैसे शेर, लोमड़ी, मेढ़क।
- तृतीयक उपभोक्ता: अन्य मांसाहारी जीवों को खाते हैं, जैसे साँप, गिद्ध, बाज।
- सर्वाहारी: पौधे और जीव दोनों खाते हैं, जैसे मनुष्य, कुत्ता, भालू।
अपघटक: सूक्ष्मजीव (कवक, जीवाणु) जो मृत जीवों को सरल पदार्थों में तोड़ते हैं। ये पदार्थ पौधों के लिए उपयोगी होते हैं।
2. अजैविक घटक (निर्जीव)
- अकार्बनिक पदार्थ: जल, खनिज लवण, गैसें (ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन)।
- कार्बनिक पदार्थ: मृत जीवों से प्राप्त प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा।
- जलवायु कारक: वायु, ताप, प्रकाश, वर्षा, आर्द्रता, कोहरा, पाला।
पारिस्थितिक तंत्र के कार्य
- उत्पादक: हरे पौधे भोजन बनाते हैं।
- उपभोक्ता: प्राथमिक, द्वितीयक, और तृतीयक उपभोक्ता एक-दूसरे से भोजन लेते हैं।
- अपघटक: मृत जीवों को अपघटित कर पदार्थों को मिट्टी में वापस करते हैं।
- सभी घटक एक चक्र में काम करते हैं, जिसमें जैविक और अजैविक तत्वों का प्रवाह होता है।
1.खाद्य श्रृंखला
परिभाषा: जीवों का वह क्रम जिसमें खाद्य ऊर्जा एक से दूसरे तक जाती है।
उदाहरण (घास का मैदान): पादप → हिरण → शेर या घास → कीट → मेढ़क → साँप → बाज
- पोषण स्तर: प्रत्येक स्तर (उत्पादक, उपभोक्ता, अपघटक) में ऊर्जा कम होती जाती है।
- छोटी खाद्य श्रृंखला में अधिक ऊर्जा उपभोक्ता तक पहुँचती है।
2.खाद्य जाल
- एक से अधिक खाद्य श्रृंखलाएँ आपस में जुड़कर जटिल जाल बनाती हैं।
- उदाहरण (घास का मैदान):
- पौधे → चूहा → साँप → बाज
- पौधे → खरगोश → लोमड़ी → बाज
- पौधे → टिड्डा → मेढ़क → बाज
- खाद्य जाल पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
3.ऊर्जा का प्रवाह
स्रोत: सूर्य (सौर ऊर्जा)।
प्रक्रिया:
- पौधे सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं।
- यह ऊर्जा प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक उपभोक्ताओं तक जाती है।
- अपघटक मृत जीवों की ऊर्जा को मिट्टी में वापस करते हैं।
विशेषता: ऊर्जा एक ही दिशा में बहती है, और प्रत्येक स्तर पर ऊर्जा कम होती जाती है।
ऊष्मा गतिकी के नियम:
- ऊर्जा का निर्माण या नाश नहीं होता, केवल रूप बदलता है।
- रूपांतरण में कुछ ऊर्जा ऊष्मा के रूप में वायुमण्डल में चली जाती है।
पारिस्थितिक तंत्र का महत्व
- पर्यावरण में संतुलन बनाए रखता है।
- कोई भी जीव अकेला नहीं रह सकता; सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
- खाद्य श्रृंखलाएँ और खाद्य जाल पर्यावरण की स्थिरता सुनिश्चित करते हैं।
- यह सुनिश्चित करता है कि किसी जीव की न अधिकता हो न कमी।
जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव
- भूमि की कमी: बढ़ती जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति भूमि कम हो रही है।
प्रभाव:
- सड़कें, आवास, अस्पताल, एयरपोर्ट आदि के लिए भूमि का उपयोग बढ़ा।
- वन क्षेत्र में कमी, जिससे प्रकृति में असंतुलन।
- कृषि योग्य भूमि कम होना।
- रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मिट्टी की उर्वरता में कमी।
- पेड़ों की कटाई और बाढ़ से मिट्टी का कटाव, जिससे उपजाऊ भूमि बंजर हो रही है।
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