पर्यावरण क्या है?
पर्यावरण प्रकृति के विभिन्न घटकों जैसे जल, वायु, सूर्य का प्रकाश, वनस्पति आदि से मिलकर बनता है।
सभी जीवधारियों को जीवित रहने के लिए पर्यावरण की आवश्यकता होती है।
पर्यावरण के घटक एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखते हैं।
प्राकृतिक और मानव निर्मित कारणों से यह संतुलन बिगड़ रहा है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है।
पर्यावरण पर प्रभाव डालने वाले कारक
1. आधुनिक जीवन शैली
मानव अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण में हस्तक्षेप कर रहा है।
विभिन्न सामग्रियों (जैसे प्लास्टिक, डिटरजेंट, पेंट, प्रशीतक) का उपयोग पर्यावरण को प्रभावित करता है।
प्लास्टिक: घरेलू और औद्योगिक उपयोग में आम, लेकिन आसानी से नष्ट नहीं होता। प्लास्टिक की थैलियाँ जानवरों के लिए खतरनाक हैं।
डिटरजेंट: जल स्रोतों में मिलकर जल प्रदूषण फैलाते हैं, जिससे जलीय जीवों और पौधों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
पेंट: रासायनिक पदार्थ जैसे लेड, सल्फर, नाइट्रोजन से बने पेंट स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं।
प्रशीतक: फ्रिज और एसी में क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC) गैस ओजोन परत को नष्ट करती है, जिससे हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी तक पहुँचती हैं।
2. ईंधन और बिजली
कोयला, तेल, और प्राकृतिक गैस का अत्यधिक उपयोग हो रहा है।
ये प्राकृतिक संसाधन करोड़ों वर्षों में बनते हैं, लेकिन तेजी से खत्म हो रहे हैं।
बिजली का उपयोग टीवी, फ्रिज, एसी आदि में बढ़ रहा है।
3. जनसंख्या वृद्धि
बढ़ती जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है।
इससे औद्योगीकरण बढ़ रहा है, जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है।
4. संसाधनों का दोहन
मिट्टी: रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग मिट्टी, जल और वायु को प्रदूषित करता है।
जल: मानव गतिविधियों (जैसे नहाना, कपड़े धोना) और औद्योगिक अपशिष्ट से जल प्रदूषित हो रहा है।
जंगल: वनों की कटाई से पर्यावरण असंतुलन, बाढ़ और शुद्ध हवा की कमी हो रही है।
खनिज: कोयला जैसे खनिजों के दोहन से धूल और आग से पर्यावरण प्रदूषित होता है।
5. औद्योगीकरण
कारखानों से निकलने वाला धुआँ और विषैली गैसें वायु और जल को प्रदूषित करती हैं।
6. संश्लेषित सामग्री
मानव निर्मित सामग्री जैसे प्लास्टिक, संश्लेषित रबर, और खाद पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं।
प्रदूषण क्या है?
पर्यावरण के घटकों (जल, वायु, मिट्टी) में अवांछित परिवर्तन, जो जीवधारियों और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं, प्रदूषण कहलाता है।
यह प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ता है।
1. वायु प्रदूषण
परिभाषा: जब वायु में धूल, गैस, धुआँ, या वाष्प की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे मानव और संपत्ति को नुकसान होता है।
स्रोत:
वाहनों से निकलने वाली गैसें (सीसा, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड)।
उद्योगों से निकलने वाली गैसें और धूल।
कृषि में कीटनाशकों का छिड़काव।
घरेलू कचरा, लकड़ी, कोयला जलाने से धुआँ।
धूम्रपान और प्राकृतिक आपदाएँ (जैसे ज्वालामुखी)।
दुर्घटनाएँ (जैसे भोपाल गैस कांड, 1984)।
प्रभाव:
श्वसन तंत्र, आँखों, और त्वचा के रोग।
अम्लीय वर्षा से पौधे, जानवर, और इमारतें प्रभावित।
ओजोन परत में छिद्र, जिससे पराबैंगनी किरणें पृथ्वी तक पहुँचती हैं, जो त्वचा कैंसर का कारण बन सकती हैं।
नियंत्रण:
उद्योगों को शहर से दूर स्थापित करना।
प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर रोक।
कचरे का उचित निपटान।
सौर ऊर्जा और बायोगैस का उपयोग।
अधिक वृक्षारोपण।
2. जल प्रदूषण
परिभाषा: जल में अवांछित पदार्थों की उपस्थिति, जिससे जल की गुणवत्ता कम होती है।
स्रोत:
उद्योगों से अपशिष्ट।
नहाने, कपड़े धोने, और सीवेज से गंदा जल।
कृषि में रासायनिक खाद और कीटनाशक।
प्रभाव:
रोग जैसे पेचिश, हैजा, पीलिया, चर्म रोग।
जलीय पौधों और जीवों की वृद्धि पर बुरा प्रभाव।
मृदा की उर्वरता में कमी।
नियंत्रण:
नदियों-तालाबों में नहाने-धोने पर रोक।
पेयजल स्रोतों की सफाई।
अपशिष्ट जल का शुद्धीकरण।
जल पुनर्चक्रण और बायोगैस संयंत्र।
3. मृदा प्रदूषण
परिभाषा: मृदा के रासायनिक, जैविक, और भौतिक गुणों में हानिकारक परिवर्तन।
स्रोत:
प्राकृतिक कारण (मृदा अपरदन, ज्वालामुखी, भूस्खलन)।
कृषि में रासायनिक खाद और कीटनाशक।
घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट (सीसा, पारा, प्लास्टिक)।
वनों का विनाश।
प्रभाव:
मृदा की उर्वरता में कमी।
रोगवाहक जीवों (मच्छर, मक्खी) का बढ़ना।
पौधों और मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव।
नियंत्रण:
विषैली दवाओं पर रोक।
जैविक खाद का उपयोग।
भू-क्षरण रोकने के उपाय।
वृक्षारोपण और वनों का संरक्षण।
4. ध्वनि प्रदूषण
परिभाषा: अवांछित और तीव्र ध्वनि, जिसे शोर कहते हैं।
स्रोत:
प्राकृतिक (आँधी, बिजली, भूकंप)।
वाहन, उद्योग, और मनोरंजन साधन (टीवी, रेडियो, भोंपू)।
घरेलू उपकरण (वाशिंग मशीन, मिक्सी)।
पटाखे।
प्रभाव:
सुनने की क्षमता पर असर, कान का परदा फट सकता है।
रक्तचाप, हृदय गति, और पाचन तंत्र पर प्रभाव।
मानसिक स्वास्थ्य पर असर (चिड़चिड़ापन, अनिद्रा)।
पशु-पक्षी अपने आवास छोड़ देते हैं।
नियंत्रण:
वाहनों का रखरखाव और तीव्र हार्न पर रोक।
उद्योगों को शहर से दूर करना।
घरेलू उपकरणों की सफाई।
वृक्षारोपण।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
वायु प्रदूषण: श्वसन तंत्र के रोग (ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर), गले में खराश, छाती में जकड़न।
जल प्रदूषण: पेचिश, हैजा, पीलिया, चर्म रोग, फ्लोरोसिस (दाँतों में धब्बे, हड्डियों में दर्द)।
मृदा प्रदूषण: कीटनाशकों से पौधों और मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव, रोगवाहक जीवों का बढ़ना।
ध्वनि प्रदूषण: बहरापन, रक्तचाप बढ़ना, मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव (अनिद्रा, चिड़चिड़ापन)।
पर्यावरण क्षरण
औद्योगीकरण, शहरीकरण, और जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण प्रभावित।
वनों की कटाई से वन्य प्राणियों के आवास नष्ट, प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं (जैसे चीता, बाघ)।
पालतू जानवरों के चारागाह कम हो रहे हैं, भोजन प्रदूषित हो रहा है।
वन्य जीव संरक्षण
वनों और वन्य जीवों को बचाना जरूरी है।
प्रदूषण और बीमारियों पर नियंत्रण।
अवैध शिकार पर कठोर कानून।
वन क्षेत्रों के पास उद्योगों पर रोक।
पर्यावरण संरक्षण में भूमिका
व्यक्ति और समुदाय
पर्यावरण के प्रति जागरूकता।
प्राकृतिक संसाधनों का सीमित उपयोग।
प्लास्टिक बैग का उपयोग न करना।
वाहनों की नियमित जाँच।
कचरे का उचित प्रबंधन और पुनर्चक्रण।
वृक्षारोपण और उनकी देखभाल।
पानी बचाना (नल बंद रखना)।
प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग।
शासन
भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रावधान (अनुच्छेद 48A, 51A)।
पर्यावरण मंत्रालय (1980) और विभिन्न अधिनियम:
जल प्रदूषण निवारण (1974, 1977)।
वन्य जीव संरक्षण (1972)।
वन संरक्षण (1980)।
वायु प्रदूषण निवारण (1981)।
संगठन: IBWL, DOE, CPCB।
आपदाएँ
परिभाषा: अचानक होने वाली विनाशकारी घटनाएँ, जो जान-माल को नुकसान पहुँचाती हैं।
प्रकार:
प्राकृतिक: भूकंप, बाढ़, चक्रवात, भूस्खलन, सूखा।
मानव निर्मित: औद्योगिक दुर्घटना, अग्निकांड, युद्ध।
आपदा प्रबंधन: रोकथाम, बचाव, राहत, और पुनर्वास के उपाय।
प्रमुख प्राकृतिक आपदाएँ
भूकंप:
पृथ्वी के आंतरिक भाग में असंतुलन से होता है।
प्रभाव: भवनों का गिरना, जान-माल की हानि, बाढ़।
मापन: सिसमोग्राफ द्वारा रिक्टर स्केल (0-9)।
सुरक्षात्मक उपाय: खुले मैदान में जाना, भूकंपरोधी मकान, राहत व्यवस्था।
बाढ़:
अत्यधिक वर्षा, भूस्खलन, या वन कटाई से।
प्रभाव: जन-धन हानि, फसल नुकसान, जल प्रदूषण।
उपाय: ऊँचे स्थानों पर मकान, वृक्षारोपण, पेयजल और दवाओं की व्यवस्था।
चक्रवात:
वायुमंडलीय परिवर्तन से प्रचंड हवाएँ और वर्षा।
प्रभाव: फसलों, सड़कों, और संचार प्रणाली को नुकसान।
उपाय: उपग्रह सूचना, राहत सामग्री, मार्गों की सफाई।
भूस्खलन:
पर्वतीय क्षेत्रों में चट्टानों का खिसकना।
प्रभाव: बस्तियों का नष्ट होना।
उपाय: वनों की कटाई रोकना, वनस्पति लगाना।
Leave a Reply