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अभ्यास
प्रश्न 1. खाली स्थान भरिए –
(i)आवेश प्रवाह की दर विद्युतधारा कहलाती है।
(ii) धातुओं में धारा प्रवाह इलेक्ट्रॉनों के कारण होता है।
(iii) पेंसिल में उपयोग आने वाला पदार्थ (ग्रेफाइट) विद्युतधारा का सुचालक होता है।
(iv) अशुद्ध जल विद्युतधारा का चालक (सुचालक) होता है।
(v) सौर ऊर्जा को विद्युतीय ऊर्जा में परिवर्तित करने का उपकरण सौर सेल (Solar Cell) कहलाता है।
प्रश्न 2. निम्न के सही विकल्प चुनिए –
(i) बन्द परिपथ में विद्युतधारा का प्रवाह सामान्यतः होता है –
(अ) धन से ऋण की ओर
(ब) धन से धन की ओर
(स) ऋण से धन की ओर
(द) ऋण से ऋण की ओर
उत्तर: (अ) धन से ऋण की ओर
(ii) निम्न में से कौन-सा विद्युत का चालक है –
(अ) कागज
(ब) गत्ता
(स) ताँबे का तार
(द) प्लास्टिक स्केल
उत्तर: (स) ताँबे का तार
(iii) जब एक वस्तु की सतह के इलेक्ट्रॉन दूसरी वस्तु की सतह पर चले जाते हैं तो वह –
(अ) उदासीन हो जाती है
(ब) ऋण आवेशित हो जाती है
(स) धन आवेशित हो जाती है
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर: (स) धन आवेशित हो जाती है
(iv) संचायक सेल से लाभ है –
(अ) लगातार धारा प्राप्त होना
(ब) प्राथमिक सेलों की अपेक्षा अधिक धारा मिलना
(स) अधिक समय तक धारा प्राप्त होना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर: (द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3. जोड़ी मिलाइए –
| अ | ब |
|---|---|
| (i) शुष्क सेल | सूर्य के प्रकाश को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने वाला उपकरण |
| (ii) सौर सेल | कॉपर सल्फेट (नीला थोथा) |
| (iii) सीसा संचायक सेल | अमोनियम क्लोराइड |
| (iv) डेनियल सेल | उत्क्रमणीय अभिक्रिया पर आधारित युक्ति |
उत्तर:-
| अ | ब |
|---|---|
| (i) शुष्क सेल | अमोनियम क्लोराइड |
| (ii) सौर सेल | सूर्य के प्रकाश को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने वाला उपकरण |
| (iii) सीसा संचायक सेल | उत्क्रमणीय अभिक्रिया पर आधारित युक्ति |
| (iv) डेनियल सेल | कॉपर सल्फेट (नीला थोथा) |
प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
प्रश्न 1. विद्युतधारा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:जब किसी पदार्थ में आवेश एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर प्रवाहित होते हैं, तो यह प्रवाह विद्युतधारा कहलाता है।अर्थात एकांक समय में प्रवाहित आवेश को विद्युतधारा कहते हैं।
प्रश्न 2. सेल की कार्यविधि समझाइए।
उत्तर: जब इलेक्ट्रोडों को किसी वैद्युत अपघट्य में डुबाया जाता है, तो एक इलेक्ट्रोड पर ऋण आवेश और दूसरे पर धन आवेश एकत्रित होते हैं।जिस इलेक्ट्रोड पर ऋण आवेश होता है उसे कैथोड और जिस पर धन आवेश होता है उसे एनोड कहते हैं।दोनों को चालक तार से जोड़ने पर इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होते हैं और विद्युतधारा उत्पन्न होती है।
प्रश्न 3. प्राथमिक सेल व द्वितीयक सेल में अन्तर स्पष्ट करिए।
उत्तर:
- प्राथमिक सेल: इन्हें पुनः आवेशित नहीं किया जा सकता, जैसे – वोल्टीय सेल, डेनियल सेल, शुष्क सेल।
- द्वितीयक सेल: इन्हें पुनः आवेशित किया जा सकता है, जैसे – सीसा संचायक सेल।
प्रश्न 4. डेनियल सेल का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 5. सीसा संचायक सेल, शुष्क सेल की तुलना में किस प्रकार अच्छा है बताइए।
उत्तर: सीसा संचायक सेल से अधिक समय तक और अधिक मात्रा में विद्युतधारा प्राप्त होती है।इसे पुनः आवेशित (चार्ज) किया जा सकता है, जबकि शुष्क सेल एक बार प्रयोग के बाद अनुपयोगी हो जाता है।
प्रश्न 6. सीसा संचायक सेल के दोष बताइए।
उत्तर:
- यह सेल महँगा होता है।
- यह भारी होता है, अतः एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से नहीं ले जाया जा सकता।
- इसमें तनु सल्फ्यूरिक अम्ल प्रयुक्त होता है जिससे कपड़े व हाथ जलने का डर रहता है।
प्रश्न 7. सौर ऊर्जा को विद्युतीय ऊर्जा में किस प्रकार परिवर्तित किया जा सकता है?
उत्तर: सौर ऊर्जा को सौर सेल द्वारा विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है।सौर सेल में सिलिकॉन की पट्टिका सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करके उसे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है।
प्रश्न 8. विद्युत परिपथ से आप क्या समझते हैं? बल्ब, कुंजी व बैटरी दर्शाता हुआ एक विद्युत परिपथ का रेखाचित्र बनाइए।
उत्तर: विद्युतधारा के प्रवाहित होने के मार्ग को विद्युत परिपथ कहते हैं।जब कुंजी (स्विच) बंद होती है तो धारा प्रवाहित होती है और बल्ब जलने लगता है।(चित्र में दिखाएँ: बैटरी, कुंजी (स्विच), बल्ब और संयोजक तार)
प्रश्न 9. विद्युत चालक व विद्युतरोधी पदार्थों में अन्तर स्पष्ट करिए।
उत्तर:
- विद्युत चालक: वे पदार्थ जो विद्युतधारा को प्रवाहित होने देते हैं, जैसे – ताँबा, लोहा, एल्युमिनियम।
- विद्युतरोधी (कुचालक): वे पदार्थ जिनसे विद्युतधारा नहीं गुजरती, जैसे – रबर, लकड़ी, प्लास्टिक।
प्रश्न 10. विद्युत चालक व विद्युतरोधी पदार्थों की पहचान आप किस प्रकार करेंगे?
उत्तर: किसी पदार्थ को परिपथ में जोड़ने पर यदि बल्ब जलता है तो वह चालक है,और यदि बल्ब नहीं जलता है तो वह विद्युतरोधी (कुचालक) है।
प्रश्न 11. वोल्टीय सेल का नामांकित चित्र सहित वर्णन करिए।
उत्तर: वोल्टीय सेल का निर्माण इटली के वैज्ञानिक वोल्टा ने किया था।इस सेल में एक काँच का पात्र होता है जिसमें तनु सल्फ्यूरिक अम्ल (H₂SO₄) भरा रहता है।इसमें दो इलेक्ट्रोड डाले जाते हैं –
- एक ताँबे की छड़ (Cu) – धनात्मक विद्युताग्र (एनोड) के रूप में
- एक जस्ते की छड़ (Zn) – ऋणात्मक विद्युताग्र (कैथोड) के रूप में।अम्ल के साथ जस्ते की क्रिया से इलेक्ट्रॉन उत्पन्न होते हैं जो तार द्वारा प्रवाहित होकर विद्युतधारा उत्पन्न करते हैं।
दोष:
- यह अधिक समय तक धारा नहीं दे सकता।
- इसमें द्रव का उपयोग होता है, इसलिए इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना कठिन होता है।
(चित्र: जस्ते की छड़, ताँबे की छड़, काँच का पात्र, तनु सल्फ्यूरिक अम्ल, इलेक्ट्रॉन प्रवाह की दिशा आदि दिखाएँ)
प्रश्न 12. चित्र 11.20 में दिए विद्युत परिपथ में सभी संकेतों के नाम बताइए तथा यह भी बताइए कि -(i) धाराप्रवाह की दिशा क्या होगी?(ii) यह परिपथ बन्द एवं खुले विद्युत परिपथ के रूप में कब कार्य करेगा?
उत्तर:संकेतों के नाम:
- सेल या बैटरी
- बल्ब
- कुंजी (स्विच)
- चालक तार
- धारा प्रवाह की दिशा (तीर से दर्शाई जाती है)
(i) धाराप्रवाह की दिशा:सेल की धनात्मक प्लेट (+) से ऋणात्मक प्लेट (-) की ओर होती है।
(ii) परिपथ की स्थिति:
- जब कुंजी (स्विच) बंद होती है, तब परिपथ बन्द परिपथ कहलाता है और बल्ब जलता है।
- जब कुंजी खुली होती है, तब परिपथ खुला परिपथ कहलाता है और बल्ब नहीं जलता।
प्रश्न 13. विद्युत परिपथ में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न घटकों को संकेत के रूप में बनाइए।
उत्तर:विद्युत परिपथ में प्रयुक्त घटकों के संकेत इस प्रकार हैं –
| घटक | संकेत |
|---|---|
| सेल | (+ -) दो समानांतर रेखाएँ – एक लंबी, एक छोटी |
| बैटरी | दो या अधिक सेल क्रम में जुड़े हुए |
| बल्ब | गोलाकार चिह्न जिसमें बीच में क्रॉस (×) बना हो |
| कुंजी (खुली) | खुली रेखा में गैप |
| कुंजी (बन्द) | जुड़ी हुई रेखा |
| चालक तार | सीधी रेखा |
| धारा की दिशा | तीर का चिह्न (→) |
प्रश्न 14. यदि टॉर्च के सेलों के बीच एक गत्ते का टुकड़ा रख दिया जाए तो टॉर्च जलेगी या नहीं? अपने उत्तर को स्पष्ट करिए।
उत्तर:नहीं, टॉर्च नहीं जलेगी।क्योंकि गत्ता विद्युतरोधी (कुचालक) पदार्थ है, यह विद्युतधारा को प्रवाहित नहीं होने देता।सेलों के बीच गत्ता रखने से परिपथ टूट जाता है और बल्ब तक धारा नहीं पहुँच पाती।




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