1. कवि परिचय (रसखान)
- रसखान का वास्तविक नाम सैयद इब्राहिम था।
- इनका जन्म वि. संवत् 1615 में दिल्ली में हुआ।
- वे श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे।
- कृष्ण भक्ति में लीन होकर ये गोवर्धन में रहने लगे।
- कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम ने ही उन्हें कवि बना दिया था।
- वि. संवत् 1685 में इनका निर्वाण माना जाता है।
- प्रमुख कृतियाँ-
- सुजान रसखान – 136 छंदों का संग्रह
- प्रेम वाटिका – 25 दोहों का संग्रह
- उनके काव्य का मूल विषय – कृष्ण प्रेम
- भाषा – सरल, मधुर एवं शुद्ध ब्रजभाषा
- रसखान ने सवैया, कवित्त और दोहा छंदों में रचनाएँ लिखीं।
- उनका स्थान भक्तिकाल के प्रमुख कृष्ण भक्त कवियों में है।
2. वात्सल्य भाव (अध्याय का मुख्य आधार)
- शिशु ईश्वर की अनुपम कृति है।
- शिशु की चेष्टाएँ – निश्छल, चंचल, निष्कपट और मनभावन होती हैं।
- कृष्ण की बाल-छवि से रसखान अत्यंत आकर्षित रहे।
- उनकी लेखनी बाल कृष्ण के वात्सल्य सौंदर्य को सुंदर रूप में चित्रित करती है।
- सूरदास ने वात्सल्य रस को ऊँचाई दी-रसखान उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।
- यशोदा के आँगन में खेलते कृष्ण की छवि पर कवि संसार का समस्त सौंदर्य न्योछावर करने को आतुर हो उठते हैं।
3. आधुनिक संदर्भ – सुभद्राकुमारी चौहान
- सुभद्राकुमारी चौहान ने भी वात्सल्य भाव को सहजता से चित्रित किया है।
- अपनी बिटिया की चेष्टाओं को देखते हुए उन्हें अपना बचपन याद आ जाता है।
- उनकी कविता “मेरा नया बचपन” में माता-शिशु के रागात्मक संबंधों का सुंदर चित्रण है।
- वे बचपन को अनेक मानक प्रतीकों के रूप में देखती हैं।
- माँ और शिशु के नैसर्गिक, प्रेमपूर्ण संबंध कविता में साकार हो उठते हैं।
4. रसखान के सवैए – सरल व्याख्या
सवैया 1 का सार
- सुबह-सुबह कवि नंद के घर पहुँचे।
- वे कहते हैं-यशोदा का पुत्र लाखों-करोड़ों वर्ष जीवित रहे।
- यशोदा के सुख और प्रेम का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
- कृष्ण की अंजन लगी आंखें, सुंदर भौंहें, और मोहक छवि देखकर कवि मुग्ध हो जाते हैं।
- कृष्ण के छोटे-छोटे हावभाव पर कवि सब कुछ न्योछावर कर देना चाहते हैं।
सवैया 2 का सार
- धूल से भरे हुए कृष्ण बहुत सुंदर लग रहे हैं।
- सिर पर बनी चोटी और पैंजनी की ध्वनि मन को मोह लेती है।
- कृष्ण अँगना में खेलते-खाते फिरते हैं।
- इस मोहक छवि को देखकर कवि कहते हैं कि -“कौए का भाग्य बड़ा अच्छा है जो वह कृष्ण के हाथ से माखन-रोटी ले गया।”
5. सुभद्राकुमारी चौहान – “मेरा नया बचपन” का सार
- कवयित्री बार-बार अपने बचपन को याद करती हैं।
- बचपन की चिंतारहित, मुक्त और सुखद यादें जीवन की सबसे मस्त खुशी थीं।
- तब ऊँच-नीच या भेदभाव की कोई भावना नहीं थी।
- रोना-मचलना भी उस समय आनंद देता था।
- बिटिया के बुलाने पर कवयित्री को फिर से बचपन का आनंद मिल जाता है।
- बच्ची मिट्टी खाकर आती है और कुछ हाथ में लेकर माँ को खिलाने आती है।
- कवयित्री कहती हैं कि-“मेरे पास बचपन मेरी बेटी बनकर वापस आया है।”
- वे अपनी बेटी के साथ खेलते-खाते स्वयं भी बच्ची बन जाती हैं।
6. अध्याय के प्रमुख भाव
- कृष्ण बाल लीला का वात्सल्य सौंदर्य
- कवि का भावविभोर हृदय
- माँ-बच्चे के प्रेम का अनुपम चित्रण
- बचपन की निश्छलता और सरलता
- मातृ-हृदय का ममत्व
- ब्रजभाषा की मिठास और सरलता
7. साहित्यिक विशेषताएँ
भाषा
- ब्रजभाषा – सरल, सरस, मधुर
- मुहावरों का स्वाभाविक प्रयोग
- प्रवाह, मधुरता और प्रौढ़ता
रस
- प्रमुख रूप से वात्सल्य रस
- साथ ही शृंगार और भक्ति के भाव भी
अलंकार
- उपमा अलंकार
- रूपक
- अनुप्रास
- भाव-प्रधान अलंकार
छंद
- सवैया
- दोहा
- कवित्त
8. अध्याय का समग्र संदेश
- बचपन जीवन का सबसे सुंदर, पवित्र और आनंददायक चरण है।
- बालकृष्ण की लीला संसार की अतुलनीय मोहकता है।
- वात्सल्य भाव हर रिश्ते में प्रेम, ममत्व और निकटता लाता है।
- कवि रसखान और कवयित्री सुभद्रा-दोनों ने वात्सल्य कोअत्यंत हृदयस्पर्शी रूप में प्रस्तुत किया है।

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