1. कवि घनानंद – जीवन परिचय
- घनानंद का जन्म संवत 1746 में हुआ।
- वे दिल्ली नरेश मुहम्मद शाह के दरबार में रहते थे।
- दरबार छोड़ने के बाद उनकी प्रेमिका सुजान ने उनकी उपेक्षा कर दी।
- दुखी होकर वे दिल्ली छोड़कर वृंदावन आ गए।
- वृंदावन में भी वे सुजान को नहीं भूल सके।
- उनका लौकिक प्रेम धीरे-धीरे अलौकिक प्रेम में बदल गया।
- ‘सुजान’ शब्द का प्रयोग वे श्रीकृष्ण के लिए करने लगे।
- वे कृष्ण की छवि और लीला का दिन-रात वर्णन करने लगे।
- उनकी मृत्यु संवत 1796 मानी जाती है।
प्रमुख कृतियाँ
- घनानंद कक्ति
- कवित्त संग्रह
- सुजान-विनोद
- सुजान-हित
- वियोग-बेलि
- आनन्द यनजू
- इश्क-लता
- प्रीति-पावस
- जमुना-जल
- वृंदावन-सत
2. घनानंद के काव्य की विशेषताएँ
1. प्रेम और भक्ति का मिश्रण
- घनानंद के काव्य में प्रेम और भक्ति दोनों एक साथ आते हैं।
- उनका प्रेम पहले लौकिक था, पर बाद में कृष्ण के प्रति आध्यात्मिक प्रेम बन गया।
2. वियोग-श्रृंगार प्रधान
- प्रिय सुजान की अवहेलना से उत्पन्न विरह पीड़ा उनके काव्य का मूल स्वर है।
3. ब्रजभाषा की मधुरता
- भाषा सरल, सरस और मधुर ब्रजभाषा है।
- शब्दों में स्निग्धता और प्रभाव है।
4. छंद प्रयोग
- कवित्त
- सवैयाइन्हीं छंदों में उनके भाव प्रकट हुए हैं।
5. अलंकारों की सुंदरता
- अनुप्रास
- विरोधाभास
- उक्ति-वैचित्र्य
- वचन-वक्रताये उनके काव्य की अमूल्य धरोहर हैं।
3. प्रेम और सौंदर्य – अध्याय का मुख्य भाव
- प्रेम मनुष्य और सृष्टि के बीच रागात्मक संबंध स्थापित करता है।
- प्रेम की अनुभूति मानव और पशु-पक्षी सभी में दिखाई देती है।
- मिलन की आतुरता, विरह की वेदना – ये प्रेम की गहनता दिखाते हैं।
- सौंदर्य प्रेम की आधारभूमि है, जिसमें तीन प्रमुख रूप हैं-
- रूप-सौंदर्य
- चेष्टा-सौंदर्य
- शील-सौंदर्य
साहित्य में श्रृंगार रस
- हिन्दी साहित्य में श्रृंगार वर्णन की समृद्ध परंपरा है।
- रीतिकाल में प्रेम और सौंदर्य प्रमुख विषय रहे।
4. प्रेम और सौंदर्य में घनानंद का स्थान
- वे प्रेम और सौंदर्य के अप्रतिम कवि माने जाते हैं।
- उनका प्रेम लौकिक से अलौकिक में बदलकरकृष्ण पर केंद्रित हो जाता है।
- उनकी आँखें कृष्ण-वियोग में डूबी रहती हैं।
- प्रेम की एकपक्षीय तीव्रता और विरह के कारण होने वालीआत्म-पीड़ा का अद्भुत चित्रण उनके काव्य में मिलता है।
- वे कहते हैं-प्रेम में कपट और चतुराई का स्थान नहीं है।
5. कवि देवदत्त (देव) – परिचय
- कवि देव का पूरा नाम देवदत्त था।
- जन्म – संवत 1730, इटावा (उ.प्र.)
- वे बचपन से ही कविता करने लगे थे।
- जीवन भर अपने आश्रय-दाता के साथ भटकते रहे।
- उन्हें खुश करने के लिए वे लगातार कविताएँ लिखते रहे।
- नाम साहित्य में “देव” के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
- मृत्यु – संवत 1824
6. देव की प्रमुख रचनाएँ
- भाव-विलास
- भवानी-विलास
- कुशल-विलास
- रस-विलास
- सुखसागर तरंग
- वैराग्य-शतक
7. देव के काव्य की विशेषताएँ
1. श्रृंगार रस के कवि
- प्रेम उनके काव्य का मुख्य तत्व है।
- प्रेम के कारण उनकी कविताएँभाव-विह्वल और सहज बनती हैं।
2. कहीं-कहीं वैराग्य
- यद्यपि वे श्रृंगार के कवि थे,पर कुछ स्थानों पर वैराग्य वृत्ति भी मिलती है।
3. प्रकृति का मानवीकरण
- प्रकृति को मानव की तरह प्रस्तुत करने में वे कुशल थे।
- उदाहरण-“डार-द्रुम पलना…”,”कंज-कली नायिका…”
- इनसे उनका प्रेम-सौंदर्य निखरकर सामने आता है।
4. भाषा
- भाषा – शुद्ध ब्रजभाषा
- तत्सम, तद्भव, बुंदेली, राजस्थानी, अरबी, फ़ारसी शब्दों का प्रयोग।
5. छंद
- दोहा
- सवैया
- कवित्त
8. अध्याय के पदों का समग्र भाव
घनानंद माधुरी (घनानंद के पद)
- प्रिय के सौंदर्य के प्रति गहरी मोह-भावना
- विरह, तड़प, वेदना, प्रेम की पवित्रता
- प्रिय के रूप, नयन, हँसी, कंठ, लट, गाल आदि काजीवंत और हृदयस्पर्शी वर्णन
देव सुधा (देव के पद)
- कृष्ण और राधा के प्रेम-सौंदर्य का मोहक चित्र
- श्रृंगार-रस की मधुर अभिव्यक्ति
- बाल-कृष्ण की कोमल छवि
- प्रकृति के मानवीकरण के सुंदर उदाहरण
9. इस अध्याय के प्रमुख साहित्यिक बिंदु
(1) भाषा
- मधुर, सरल, शुद्ध ब्रजभाषा
(2) अलंकार
- अनुप्रास
- विरोधाभास
- यमक
- श्लेष
- रूपक
- उपमा
(3) रस
- श्रृंगार रस (वियोग व संयोग दोनों)

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