1. कवि परिचय : मैथिलीशरण गुप्त
- जन्म : 1886, विराँव (झाँसी), उत्तर प्रदेश।
- पिता सेठ रामचरण गुप्त से कवित्व, भक्ति और निष्ठा विरासत में मिली।
- प्रारंभिक शिक्षा चिरगाँव की पाठशाला में, फिर झाँसी के मेकहानल स्कूल में हुई।
- हिन्दी, संस्कृत और बंगला साहित्य का अध्ययन स्वाध्याय से किया।
- मृत्यु : 1964
- प्रमुख रचनाएँ :
- साकेत, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, पंचवटी, भारत भारती, जयद्रथ-वध
- काव्य की विशेषता :
- राष्ट्रीय भावना और भारतीय संस्कृति का सुंदर समन्वय।
- उर्मिला की पीड़ा, यशोधरा के विरह और कैकयी के पश्चाताप का मार्मिक चित्रण।
- सरल, सहज और अलंकारहीन भाषा।
- द्विवेदी युग के महत्वपूर्ण कवि।
2. ‘पंचवटी’ : सारांश
कवि ने पंचवटी के प्राकृतिक सौंदर्य का मनोहारी वर्णन किया है।मुख्य दृश्य :
- चंद्रमा की कोमल किरणें धरती और आकाश पर फैली हैं।
- धरती घास की नोकों से प्रसन्नता प्रकट कर रही है।
- वृक्ष मंद पवन के झोंकों से झूम रहे हैं।
- रात्रि शांत और सौम्य है।
- प्रकृति अपनी हर सूक्ष्म क्रिया शांति से कर रही है।
- वसुंधरा मोतियों (ओस) को बिखेरती है, और सूर्य उन्हें सुबह समेट लेता है।
- प्रकृति मनुष्यों की तरह हँसती भी है और रोती भी है।
- प्रकृति हमारी भूलों पर दंड भी देती है, पर दयालु माता की तरह स्नेह भी देती है।
- गोदावरी तट पर जल की कल-कल ध्वनि और वृक्षों की मंद महक से वातावरण मधुर है।
- हरियाली, झरने और ताजगी जगह-जगह दिखती है।
- कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है।
3. प्रकृति का स्वरूप और महत्व
- प्रकृति का विशाल परिवार-सूर्य, चाँद, तारे, पेड़, जंगल, पृथ्वी, नदियाँ, समुद्र आदि।
- वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने सिद्ध किया कि पेड़-पौधों में भी जीवन है।
- मनुष्य और प्रकृति का गहरा संबंध है-आस्था, पूजा और भावनाएँ।
- कवियों ने प्रकृति को अपनी रचनाओं का मुख्य विषय माना है।
- प्रकृति मनुष्य के प्रति आत्मीय भाव रखती है।
- प्रकृति प्रसन्न भी होती है और करुण भाव से द्रवित भी।
4. कवि परिचय : सुमित्रानंदन पंत
- जन्म : 1900, कोसानी (उत्तराखंड)।
- हिंदी साहित्य के कोमल, सुंदर और सुगंधित काव्य-रचयिता।
- कला और भाव दोनों में उत्कृष्ट।
- मृत्यु : 1977
- प्रमुख काव्य संग्रह :
- वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगवाणी
- विशेषताएँ :
- प्रकृति और मानव जीवन के सौंदर्य का अनोखा चित्रण।
- कल्पना शक्ति अत्यंत प्रबल।
- वर्णन इतना सुंदर कि चित्र बनकर सामने आता है।
- भाषा में नवीनता।
5. ‘आह! धरती कितना देती है’ : सारांश
- बचपन में कवि ने सोचा कि पैसा बोने से पैसों के पेड़ उगेंगे और वह सेठ बन जाएगा।
- पर धरती ने एक भी पैसा नहीं उगाया-कवि निराश हो गया।
- कई वर्षों बाद कवि ने आँगन में सेम के बीज बोए और भूल गया।
- कुछ दिनों बाद सेम के छोटे-छोटे पौधे उग आए-कवि आश्चर्य से भर गया।
- पौधे बढ़े, फूल और फलियाँ लगीं, पूरे पड़ोस ने उन फलियों का आनंद लिया।
- कवि समझ गया-धरती बहुत देती है, पर सच्चे और अच्छे बीज बोने पड़ते हैं।
- संदेश :
- स्वार्थ बोने से कुछ नहीं मिलता।
- ममता, मेहनत और मानवता के बीज बोने से जीवन में सुनहरी फसल मिलती है।
- जैसा बोयेंगे, वैसा ही पाएँगे।
6. काव्य सौंदर्य (अलंकार)
(क) उपमा अलंकार
- समानता दर्शाने वाले शब्द-सा, सी, सम, ज्यों आदि।
- उदाहरण – “हाय! फूल-सी कोमल बच्ची…”
उपमेय – बच्चीउपमान – फूलसाधारण धर्म – कोमलता
(ख) रूपक अलंकार
- उपमेय में उपमान का सीधा आरोप।
- उदाहरण – “लोचन-भृंग” (आँखों पर भौंरे का आरोप)
(ग) उत्प्रेक्षा अलंकार
- कल्पना आधारित समानता, वाचक शब्द-मानो, मनो, जैसे आदि।
- उदाहरण -“मानों झूम रहे हैं तरु भीमंद पवन के झोंकों से”
7. महत्वपूर्ण भाव
- प्रकृति का मानवीकरण-वह मनुष्यों की तरह खुश भी होती है और दुखी भी।
- सूर्य और धरती के कार्यों का सुंदर रूपक-ओस को धरती बिखेरती है, सूर्य समेट लेता है।
- जीवन में सही बीज (ममता, मेहनत, प्रेम, मानवता) ही फल देते हैं।
- धरती माता उदार है-परिश्रम का फल अवश्य देती है।

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