1. लेखक परिचय
- नाम: डॉ. रामकुमार वर्मा
- जन्म: 15 नवम्बर 1905, सागर (मध्यप्रदेश)
- शिक्षा:
- प्रारम्भिक शिक्षा – सागर
- उच्च शिक्षा – प्रयाग विश्वविद्यालय
- हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास पर पी-एच.डी. (नागपुर विश्वविद्यालय)
- पद: प्रयाग विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष
- सम्मान: पद्मभूषण (1963)
- रचनाएँ:
- काव्य: वीर हम्मीर, कुल ललना, चित्तौड़ की चिता, रूपराशि, चित्ररेखा, चन्द्रकिरण, जौहर, एकलव्य
- नाटक: सत्य का स्वप्न, विजय पर्व
- एकांकी: पृथ्वीराज की आंखें, चारुमित्रा, रेशमी टाई, सप्त किरण, कौमुदी महोत्सव, दीपदान
- निबंध/आलोचना: विचार दर्शन, साहित्य शास्त्र, कबीर का रहस्यवाद, समालोचना, हिन्दी साहित्य का इतिहास
- विशेषताएँ:
- हिन्दी के प्रसिद्ध एकांकीकार
- भाषा में मार्मिक व्यंग्य
- कल्पना तथा भावों का सुंदर समन्वय
- छायावादी काव्यधारा से प्रभावित
- मानवीय संवेदनाओं का सशक्त चित्रण
2. एकांकी – दीपदान
यह एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित एकांकी है जिसमें पन्ना धाय के त्याग और मातृबलिदान का चित्रण किया गया है।
कथासार
महाराणा साँगा के निधन के बाद उनका पुत्र कुँवर उदयसिंह चित्तौड़ का उत्तराधिकारी था।
लेकिन सांगा के भाई पृथ्वीराज का दासी पुत्र बनवीर षड्यंत्रपूर्वक राज्य हड़पना चाहता था।
उसी उद्देश्य से वह दीपदान के बहाने रात्रि में नृत्य और उत्सव का आयोजन करता है ताकि प्रजा व्यस्त रहे और वह उदयसिंह की हत्या कर सके।
उधर उदयसिंह का लालन-पालन पन्ना धाय कर रही थी। जब पन्ना को बनवीर की योजना का पता चलता है, तो वह अत्यंत चतुराई और साहस से उदयसिंह को कीरत बारी की सहायता से महल से बाहर भेज देती है।
उदयसिंह की शैय्या पर वह अपने ही पुत्र चंदन को सुला देती है।बनवीर कमरे में घुसकर चंदन को उदयसिंह समझकर उसका सिर धड़ से अलग कर देता है।
पन्ना यह दृश्य सामने से देखती है पर राष्ट्रहित और राजधर्म की रक्षा के लिए वह स्वयं अपने पुत्र को बलिदान कर देती है।
इस प्रकार, एकांकी पन्ना धाय के त्याग, देशभक्ति और मातृबल का अमर प्रतीक बन जाता है।
3. मुख्य घटनाएँ (क्रमवार और स्पष्ट)
1. बनवीर ने दीपदान व नृत्य का आयोजन किया
- प्रजा को व्यस्त करने और उदयसिंह की हत्या का अवसर पाने के लिए।
2. उदयसिंह रूठकर तलवार पकड़े कमरे में सो जाता है
- धाय पन्ना उसे मनाने की कोशिश करती है।
3. रावल रूपसिंह की पुत्री सोना का प्रवेश
- नृत्य की बातें करती है
- पन्ना को बनवीर की कूटनीति का आभास होता है।
4. सामली उदयसिंह के जीवन संकट की सूचना लाती है
- बताती है कि बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी है।
5. कीरत बारी की सहायता
- पन्ना उदयसिंह को जूठी पत्तलों की टोकरी में छिपाकर सुरक्षित स्थान भेजती है।
6. पन्ना का महान निर्णय
- चंदन को उदयसिंह की शैय्या पर सुलाना
- मातृहृदय पर वज्र-प्रहार जैसा निर्णय
- करुण लेकिन राष्ट्रधर्मकारी त्याग।
7. बनवीर का प्रवेश और क्रूर हत्या
- मदिरापान से धुत
- तलवार निकालकर शैय्या पर सोए बालक पर वार
- चंदन की मृत्यु, पन्ना का मूर्छित होना।
4. मुख्य पात्र और उनका चरित्र चित्रण
पन्ना धाय (मुख्य पात्र)
- त्याग, मातृत्व, साहस की प्रतिमूर्ति
- राजवंश की रक्षा हेतु अपने पुत्र का बलिदान
- कर्तव्यपरायण, राष्ट्रहित सर्वोपरि मानने वाली
कुँवर उदयसिंह (14 वर्ष)
- चित्तौड़ का उत्तराधिकारी
- भोला, चंचल, माता समान पन्ना से बहुत प्रेम
- खेल-खेल में तलवार चलाना पसंद
चंदन (13 वर्ष)
- पन्ना का पुत्र
- भोला, सरल, माँ के प्रति अत्यंत प्रेम
- पन्ना के निर्णय का मौन बलिदानी
बनवीर (32 वर्ष)
- दासी पुत्र
- महत्वाकांक्षी, क्रूर, षड्यंत्रकारी
- राज्य पाने हेतु हत्या करने वाला पापी
कीरत बारी (40 वर्ष)
- भोजन की जूठी पत्तल उठाने वाला
- सच्चा सेवक
- उदयसिंह को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका
सोना (16 वर्ष)
- रावल रूपसिंह की पुत्री
- सुंदर, नृत्यप्रेमी
- बनवीर के प्रभाव में
- पन्ना की चेतावनी न समझने वाली
सामली (28 वर्ष)
- अंतःपुर की सेविका
- संकट की सूचना देने वाली
- पन्ना की सहयोगी
5. एकांकी के प्रमुख विषय
✔ राष्ट्रहित > व्यक्तिगत हित
✔ मातृबल और आत्मत्याग
✔ कर्तव्यनिष्ठा
✔ राजपूताना की वीर संस्कृति
✔ छल-कपट बनाम सत्य-त्याग
✔ स्त्रीशक्ति और मातृभूमि भक्ति
6. पन्ना धाय का त्याग – विस्तृत विश्लेषण
- उदयसिंह की रक्षा उसकी जिम्मेदारी थी
- बनवीर की षड्यंत्र की खबर मिलते ही निर्णय
- उदयसिंह को सुरक्षित स्थान भेजा
- चंदन को शैय्या पर सुलाया
- मातृहृदय फटा, पर राष्ट्रधर्म जीता
- स्वयं को “सर्पिणी” कहकर दोष महसूस करती है
- फिर भी सिंहासन व राजवंश की रक्षा की➡ यह त्याग इतिहास में अमर है।
7. महत्वपूर्ण संवाद (अर्थ सहित)
1. “चारों तरफ जहरीले सर्प घूम रहे हैं।”
→ पन्ना उदयसिंह को अकेले बाहर जाने से रोकती है।→ इसका अर्थ वास्तविक सर्प नहीं बल्कि छिपे शत्रु और षड्यंत्र है।
2. “दिन में तुम चित्तौड़ के सूरज हो कुँवर और रात में राजवंश के दीपक।”
→ उदयसिंह की महानता और आने वाले भविष्य का संकेत।→ वह पूरे राजवंश की आशा का प्रकाश है।
3. “लाल, तुम्हारी माला मैं नहीं गूँथ सकी।”
→ पन्ना को चंदन की आसन्न मृत्यु का ज्ञान→ करुणा, दर्द, मातृवेदना से भरा वाक्य
8. इस अध्याय से मिलने वाली सीख
- व्यक्तिगत हित से पहले राष्ट्रहित होना चाहिए
- कर्तव्य को सर्वोपरि रखना चाहिए
- त्याग और साहस से इतिहास बदल सकता है
- स्त्रियाँ भी वीरता का सर्वोच्च उदाहरण होती हैं
- सत्य और धर्म अंत में विजयी होते हैं

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