1. लेखक परिचय – स्वामी विवेकानन्द
- स्वामी विवेकानन्द उच्च कोटि के दार्शनिक, विचारक और विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
- जन्म: 12 जनवरी 1863, कलकत्ता
- पिता: विश्वनाथ दत्त | माता: भुवनेश्वरी देवी
- बचपन का नाम: नरेन्द्र देव
- बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और अध्ययन प्रिय।
- उन्होंने बाल्यकाल में ही रामायण-महाभारत के कई प्रसंग कंठस्थ कर लिए थे।
- प्रवेशिका (स्कूल) का दो वर्ष का पाठ्यक्रम एक वर्ष में पूरा किया और प्रथम स्थान प्राप्त किया।
- किशोर अवस्था से ही वक्तृत्व कौशल दिखाई देने लगा था।
- रामकृष्ण परमहंस का नरेन्द्र पर गहरा प्रभाव पड़ा।
- सर्वसम्मति से वे रामकृष्ण मिशन के सभापति बने।
- वे कहते थे-“काम, काम, काम – यही मूल मंत्र है। सुस्ती की कोई जरूरत नहीं।”
- उन्होंने अमेरिका जाकर विश्वधर्म सम्मेलन में भारत का गौरव बढ़ाया।
- उनका जीवन कर्तव्य, मन, वाणी और कर्म की एकता का प्रतीक था।
2. पाठ का सार – स्वामी विवेकानन्द के शिकागो व्याख्यान
पहला व्याख्यान (11 सितम्बर 1893)
- उन्होंने सभा को संबोधित किया-“अमेरिकावासी बहनो और भाइयो!”
- यह संबोधन विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ।
- उन्होंने अमेरिका के लोगों द्वारा दिए गए प्रेम व सम्मान के लिए धन्यवाद दिया।
- विवेकानन्द ने कहा कि वे ऐसे देश और धर्म के प्रतिनिधि हैं-
- जिसने सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता का संदेश दिया।
- जिसने संसार के सभी उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया।
- जिसने यहूदियों तथा जरथुष्ट्र धर्म (पारसी) के लोगों को भी शरण दी।
- उन्होंने ऋग्वेद की प्रसिद्ध पंक्ति का उल्लेख किया-“जैसे नदियाँ समुद्र में जाती हैं, वैसे ही विभिन्न मार्ग अंततः परमात्मा में मिलते हैं।”
- गीता के संदेश का उल्लेख किया-“जो भी मेरी ओर आता है, मैं उसे स्वीकार करता हूँ।”
- उन्होंने कहा कि-साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और धर्मान्धता ने दुनिया में बहुत हिंसा फैलाई है।
- वे आशा करते हैं कि यह सम्मेलन इन बुराइयों के अंत का प्रतीक बने।
दूसरा व्याख्यान (27 सितम्बर 1893)
- सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न होने पर उन्होंने आयोजकों को धन्यवाद दिया।
- उन्होंने कहा कि-धार्मिक एकता किसी एक धर्म की जीत और बाकी धर्मों के विनाश से नहीं हो सकती।
- धर्म का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा-
- जैसे बीज मिट्टी, जल और वायु में रहकर भी अपनी पहचान (वृक्ष) बनाए रखता है,
- वैसे ही हर धर्म को अपने मूल स्वभाव में रहते हुए दूसरों की अच्छी बातें अपनानी चाहिए।
- उन्होंने स्पष्ट किया-
- ईसाई को हिंदू या बौद्ध नहीं बन जाना चाहिए,
- और हिंदू या बौद्ध को ईसाई नहीं बनना चाहिए।
- हर धर्म को चाहिए-
- कि वह दूसरे धर्मों के सार को अपनाए,
- अपनी विशेषता की रक्षा करे,
- और अपनी प्रकृति के अनुसार विकसित हो।
- उन्होंने कहा कि धार्मिक झगड़े और कटुताएँ समाप्त होंगी और धर्मों की ध्वजा पर लिखा होगा-“सहायता करो, लड़ो मत – समन्वय और शांति।”
3. पाठ के मुख्य बिंदु (Key Points)
- भारत सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता का देश है।
- सभी धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करने की प्रवृत्ति भारत का गुण है।
- दुनिया में फैली हिंसा का कारण है-साम्प्रदायिकता, कट्टरता, हठधर्मिता।
- सभी धर्मों का लक्ष्य मनुष्य को उच्च आध्यात्मिक चेतना तक पहुँचाना है।
- धार्मिक एकता का अर्थ-मिलकर चलना, एक-दूसरे की श्रेष्ठताओं को अपनाना।
4. महत्वपूर्ण उद्धरण (Important Quotes)
(सभी PDF से लिए गए)
- “जैसे नदियाँ समुद्र में मिलती हैं, वैसे ही सब मार्ग अंततः परमात्मा में मिलते हैं।”
- “जो कोई मेरी ओर आता है, मैं उसे प्राप्त होता हूँ।”
- “काम, काम, काम – यही मूल मंत्र है।”
- “सहायता करो, लड़ो मत – समन्वय और शांति।”
5. पाठ से संबंधित नैतिक संदेश
- सभी धर्मों का उद्देश्य मनुष्य को बेहतर बनाना है।
- किसी भी धर्म का विनाश करके एकता नहीं लाई जा सकती।
- हमें धर्मों के बीच संघर्ष नहीं, सहयोग बढ़ाना चाहिए।
- मनुष्य को दयालु, सहिष्णु और उदार होना चाहिए।
6. शब्दार्थ (PDF के अनुसार सरल रूप में)
- सौहार्द – सद्भाव, प्रेम
- अवर्णनीय – जिसका वर्णन न किया जा सके
- सहिष्णुता – सहनशीलता
- सार्वभौम – सब भूमि से संबंधित
- वीभत्स – भयानक, घृणित
- धर्मान्धता – धर्म के नाम पर कट्टरता
- समन्वय – मेल-भाव
- निःस्वार्थ – बिना स्वार्थ के
7. परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण बिंदु
- विवेकानन्द का पहला संबोधन “अमेरिकावासी बहनो और भाइयो” क्यों प्रसिद्ध हुआ?
- भारत की सहिष्णुता का उदाहरण-
- यहूदी, पारसी आदि को दिया गया आश्रय।
- धर्मों की एकता का असली अर्थ क्या है?
- धर्म और बीज का सुंदर उदाहरण-धर्म को अपनी प्रकृति के अनुसार बढ़ना चाहिए।
- साम्प्रदायिकता और कट्टरता से होने वाली हानियाँ।

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