1. लेखक परिचय
- नाम – भगवती शरण सिंह
- जन्म – 1919, वाराणसी
- शिक्षा – वाराणसी व इलाहाबाद
- कार्य – भारत सरकार की प्रशासनिक सेवा में विभिन्न उच्च पदों पर कार्य
- 1977 में सचिव पद से सेवानिवृत्त
- हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान
- नागरी लिपि सुधार समिति, वैज्ञानिक शब्दावली समिति, उत्तरप्रदेश सूचना विभाग आदि से जुड़े
- लेखन प्रारंभ – 1938 से
- मुख्य कृतियाँ – अपराजिता, जंगल और जान, हमनील, वनपाहून आदि
2. पाठ का सार (केवल दस्तावेज़ पर आधारित महत्वपूर्ण सार)
भारत को नदियों का देश कहा जाता है। नदियों को देवी का स्वरूप मानकर जीवन के आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पक्षों से जोड़ा गया है। नदियों, वनों और पर्वतों का आपस में गहरा और अटूट संबंध है, परंतु जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक विकास, प्रदूषण तथा स्वयंजात वनों के नष्ट होने से नदियाँ अपना प्राचीन महत्व खोती जा रही हैं।कई नदियाँ जैसे-गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी आज भी बहती हैं पर प्रदूषण और गंदे जल के कारण मोक्षदायिनी नहीं रहीं।गंगा की अनेक सहायक नदियाँ नगरों का गंदा पानी, कल-कारखानों का अपशिष्ट लेकर उसमें मिलती हैं जिससे जल-प्रदूषण बढ़ा है।देश में प्रदूषण, वन-नाश, जनसंख्या वृद्धि व जल स्रोतों का दोहन प्रकृति को संकट में डाल रहा है।लेखक ने बताया कि यदि नदियाँ और वन न रहेंगे तो मानव जीवन और संस्कृति दोनों नष्ट हो जाएँगे।आज आवश्यकता है कि हम अपनी जमीन पहचानें, वनस्पतियों की रक्षा करें, जल को स्वच्छ रखें और पर्यावरण को सुरक्षित बनाएँ।
3. मुख्य बिंदु
➤ भारत नदियों का देश
- न सिर्फ नदियों की अधिकता के कारण बल्कि भारतीय जीवन में उनके आर्थिक, सामाजिक, आध्यात्मिक महत्व के कारण।
- वेद, ब्राह्मण, पुराण आदि में नदियों, वनों और पर्वतों का विस्तृत वर्णन।
➤ नदियों को देवी माना गया
- भारतीय संस्कृति में नदियों का पूजन
- ‘गंगे, यमुने, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदे, सिंधु, कावेरी’ का आवाहन
➤ वन-नदी-पर्वत का संबंध
- वनों से नदियाँ फूटती हैं
- वन खत्म होंगे तो नदियाँ भी खत्म
- नदियों के नहीं रहने पर संस्कृति विछिन्न हो जाएगी
➤ गंगा की स्थिति
- 19 प्रमुख सहायक नदियाँ
- नगरों का मल, उद्योगों का अपशिष्ट → गंगा में प्रदूषण
- जल प्रवाह घटने से सिकतामरु (रेत के टीले) बनना
- सुंदरवन का विनाश
- गंगा को आज के संदर्भ में देखना ज़रूरी
➤ यमुना की स्थिति
- गंगा की पहली बड़ी पश्चिमी सहायक नदी
- हिमालय के कामेत पर्वत से निकलती है
- प्रदूषण से प्रभावित
➤ भारत के नदी-समूह
- गंगा-यमुना समूह
- ब्रह्मपुत्र-मेघना
- नर्मदा-ताप्ती
- महानदी
- कृष्णा
- कावेरी
- सरस्वती-दृषद्वती समूह (ऐतिहासिक महत्व)
➤ प्राचीन भारत में वन-समृद्धि
- कालिदास के समय तक भारत घने वनों से आवृत्त
- स्वयंजात वन-अंजनवन, महावन, लुंबिनी वन आदि
- वन, पर्वत, नदी और संस्कृति का गहरा संबंध
➤ वर्तमान स्थिति
- जनसंख्या वृद्धि से पानी की माँग बढ़ी
- घरेलू उपयोग, कृषि, उद्योग, मछलीपालन, विद्युत उत्पादन से जल संकट
- पूरे देश में जल-प्रदूषण-हैजा, पीलिया, टाइफाइड जैसी बीमारियाँ
- गंगा जैसी नदियाँ भी अत्यधिक प्रदूषित
➤ वनों का महत्व
- वृक्षों से नदियों का जलस्तर बना रहता है
- भूमिगत जल सुरक्षित रहता है
- वनों में विविध वनस्पतियाँ व वन्यजीव
- स्वयंजात वन आज लगभग नष्ट
➤ योजना आयोग के अनुसार
- भारत एक “प्राकृतिक जीवित संसाधन सम्पन्न देश”
- जैव विविधता का संरक्षण भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक
➤ साहित्य और समाज में प्रकृति का क्षय
- लोग देशी पौधों की जानकारी को महत्व नहीं देते
- शाल, पलाश, अश्वत्थ जैसे वृक्षों की पहचान खो रही
- वनस्पति का भंडार नष्ट
➤ लेखक का संदेश
- जमीन को पहचानें
- वनस्पतियों की रक्षा करें
- नदियों का जल स्वच्छ बहने दें
4. प्रमुख संदेश
- नदियाँ और वन मानव जीवन का आधार हैं।
- प्रदूषण व वन-नाश से नदियों का अस्तित्व खतरे में है।
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
- संस्कृति और इतिहास का गहरा संबंध नदियों से है।
- प्रकृति के प्रति जागरूकता ही भविष्य को सुरक्षित कर सकती है।
5. महत्वपूर्ण तथ्य
- गंगा की 19 सहायक नदियाँ हैं।
- सुंदरवन का विनाश गंगा की स्थिति से सीधे जुड़ा है।
- स्वयंजात वन – प्राकृतिक रूप से उगने वाले वन।
- जल-प्रदूषण पूरे भारत में चिंता का विषय।
- वन → भूमिगत जल → नदी प्रवाह → संस्कृति → जीवन – सब जुड़े हैं।
6. महत्वपूर्ण पंक्तियों का सार
“जब गंगा गंगा न रही तब काशी की क्या स्थिति रहेगी?”
→ यदि गंगा जैसी पवित्र नदी ही प्रदूषित हो गई, तो काशी की आध्यात्मिक पहचान भी नष्ट हो जाएगी।
“वनों की उपयोगिता मानव की समग्र समृद्धि के लिए है।”
→ वन केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक समृद्धि देते हैं।

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