1. लेखक परिचय
- शरद जोशी हिन्दी के प्रमुख व्यंग्यकार थे।
- जन्म: 21 मई 1937, उज्जैन (म.प्र.)
- शिक्षा: होल्कर कॉलेज, इंदौर से बी.ए.
- नईदुनिया और नवभारत टाइम्स के नियमित लेखक।
- प्रमुख व्यंग्य संग्रह:
- परिक्रमा
- किसी बहाने
- जीप पर सवार इल्लियाँ
- तिलिस्म
- रहा किनारे बैठ
- दूसरी सतह, इन दिनों
- नाटक: अंधों का हाथी, एक था गधा
- भाषा चुटीली, व्यंग्यात्मक, मुहावरेदार।
- समाज की विसंगतियों पर तीखा प्रहार करते हुए गहरी सोच देते हैं।
- हिन्दी के श्रेष्ठ व्यंग्यकारों में उनका विशेष स्थान है।
2. पाठ का सार
पाठ “उधार का अनन्त आकाश” में लेखक समाज के उन लोगों की मानसिकता पर व्यंग्य करते हैं जो परिश्रम करने की बजाय उधार लेकर जीवन चलाते हैं और उधार लौटाना अपनी जिम्मेदारी नहीं मानते।लेखक कहते हैं कि उधार लेना एक कला है और उसे न लौटाना उससे भी बड़ी कला।व्यक्ति धीरे-धीरे अभ्यास, मधुरभाषण, धैर्य और प्रयास से उधार न लौटाने में पारंगत हो जाता है।लेखक के अनुसार समाज दो वर्गों में बँटा है- उधार देने वाले और उधार लेने वाले।उधार लेना मनुष्य की आशावादिता का प्रमाण है क्योंकि निराश व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है, पर आशावादी उधार लेता है।कर्ज व्यक्ति को उत्साहित करता है और उसे जीवन में आगे बढ़ाता है।लेखक मज़ाकिया अंदाज में कहते हैं कि उधार न लौटाना एक “विद्रोह” है, क्योंकि पुरानी पीढ़ी उधार देकर गई और नई पीढ़ी उसे लौटाने से मना कर देती है।लेखक यह भी कहते हैं कि भारत में उधार लेने की सबसे अनुकूल परिस्थितियाँ हैं क्योंकि यहाँ पुनर्जन्म पर विश्वास किया जाता है-“इस जन्म में नहीं लौटाया तो अगले जन्म में दे देंगे।”उधार एक “जीवन धारा” है जो समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था को चलाती है।लेखक बताते हैं कि जिसने सौ रुपये उधार लिए, वह कल हजार ले सकेगा – यही उसकी “उन्नति” है।उधार की सीमा “आकाश, चाँद और तारे” तक है और मनुष्य हमेशा और अधिक उधार पाने की आशा में जीता है।
3. मुख्य बिंदु
उधार लेना और न लौटाना- दो अलग-अलग “कला”
- उधार लेना कला है।
- उसे न लौटाना और भी बड़ी कला है।
- अभ्यास से व्यक्ति कुशल बन जाता है।
समाज दो भागों में बँटा है
- उधार देने वाले
- उधार लेने वाले
- दोनों के कारण समाज के रिश्ते जुड़े हैं।
उधार लेने वाला “आशावादी”
- निराश व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है।
- आशावादी उधार लेकर जीता रहता है।
उधार जीवन-शक्ति है
- जो उधार नहीं ले पाते, वे “जीवन से हार चुके” माने जाते हैं।
- उधार के सहारे ही समाज चल रहा है।
पुरानी और नई पीढ़ी
- पुरानी पीढ़ी उधार देकर गई।
- नई पीढ़ी इसे लौटाने से इनकार कर देती है।
उधार के बिना समाज “अकेला” पड़ जाएगा
- उधार रिश्तों का पुल है।
- पुल टूटे → समाज बिखर जाएगा।
उधार भारत में सबसे आसान
- कारण – पुनर्जन्म का विश्वास।
- “इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में।”
कर्ज भार नहीं, “गुब्बारा” है
- यह व्यक्ति को ऊपर ले जाता है।
- जितना बड़ा कर्ज, उतना बड़ा गुब्बारा।
उधार लेने वाला “अन्वेषी”
- नया रास्ता खोजने वाला।
- नए अवसर तलाशने वाला।
4. व्यंग्य के केंद्र
| विषय | व्यंग्य का अर्थ |
|---|---|
| परिश्रम से बचकर उधार लेना | लोगों की लापरवाही पर चोट |
| उधार न लौटाना | गैर-जिम्मेदारी का मज़ाक |
| नई पीढ़ी की प्रवृत्ति | परंपरा से विद्रोह |
| भारतीयों में पुनर्जन्म का भरोसा | उधार न लौटाने का बहाना |
| कर्ज को प्रगति मानना | गलत जीवन-दर्शन का व्यंग्य |
| उधार लेने को “अनन्त आकाश” कहना | असीम लालच और गैर-जिम्मेदारी पर कटाक्ष |
5. महत्वपूर्ण अवधारणाएँ
1. उधार = आशावादिता
- जीवन में उम्मीद बनाए रखना।
- निराश व्यक्ति उधार नहीं लेता।
2. कर्ज = जीवन-धारा
- समाज की अर्थव्यवस्था और रीतियाँ इससे चलती हैं।
3. उधार = गुब्बारा
- व्यक्ति को ऊपर ले जाता है।
- भार नहीं, प्रोत्साहन है।
4. पुनर्जन्म और उधार
- धार्मिक मान्यता → आर्थिक व्यवहार पर व्यंग्य।
5. उधार की सीमा = आकाश
- अनन्त इच्छा, असीम लालच का प्रतीक।
6. पात्र (मानसिकता के रूप में)
| प्रकार | विशेषताएँ |
|---|---|
| उधार लेने वाले | आशावादी, चतुर, मधुरभाषी, धैर्यवान, न लौटाने में कुशल |
| उधार देने वाले | भरोसेमंद, सरल, पर मज़ाक का पात्र |
| शरद जोशी का वर्णित मनुष्य | व्यंग्यात्मक, आत्म-मज़ाक पसंद, सामाजिक विसंगतियों का हिस्सा |
7. महत्वपूर्ण पंक्तियों का सरल अर्थ
✦ “उधार लेना एक कला है और न लौटाना उससे बड़ी कला है।”
→ लोग उधार लेना आसान समझते हैं, पर असली कुशलता उधार न लौटाने में दिखाई देती है।
✦ “हम सिर से पैर तक कर्ज में डूबे रहते हैं पर क्या मछली को पानी में डूबा कहते हैं?”
→ जैसे मछली का जीवन पानी में है, वैसे ही मनुष्य का जीवन उधार में है।
✦ “उधार की सीमा आकाश है, चाँद है, तारे हैं।”
→ उधार की इच्छा और लालच की कोई सीमा नहीं।

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