1. लेखक परिचय
- लेखक: हजारी प्रसाद द्विवेदी
- जन्म: 19 अगस्त 1907, बलिया (उत्तर प्रदेश)
- अध्ययन: संस्कृत और ज्योतिष-पिता की प्रेरणा से
- कार्य:
- 1940-50 तक शांतिनिकेतन के हिन्दी भवन के निदेशक
- रवीन्द्रनाथ टैगोर और आचार्य क्षितिमोहन सेन के संपर्क में साहित्य-साधना
- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापन
- सम्मान:
- डी.लिट (लखनऊ विश्वविद्यालय)
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- पद्मभूषण
- प्रमुख कृतियाँ: अशोक के फूल, बाणभट्ट की आत्मकथा, कुट्ट, कल्पलता, पुनर्नवा, हिन्दी साहित्य का उद्भव-विकास
- भाषा शैली: प्रांजल, प्रवाहमयी, सुबोध, संस्कृत-प्रधान, लोकोक्तियों का प्रयोग, कहीं-कहीं अलंकारिक और लम्बे वाक्य भी।
2. पाठ का सार (सिर्फ अध्याय पर आधारित सार)
इस संस्मरण में लेखक ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, उनके कुत्ते और शांतिनिकेतन की एक लंगड़ी मैना से जुड़े प्रसंगों को स्मरण किया है।गुरुदेव के पास एक ऐसा कुत्ता था जो अत्यंत आत्मीय और वफादार था।
वह बिना बताए भी गुरुदेव को खोज लेता था और उनके स्पर्श से परिपूर्ण आनंद अनुभव करता था।
इसी प्रकार एक लंगड़ी मैना थी जिसे देखकर गुरुदेव ने उसके भीतर छिपी करुणा और अकेलेपन को पहचान लिया।
लेखक को यह करुण भाव तब तक दिखाई नहीं देता जब तक गुरुदेव उसे न बताते।
इन दोनों प्रसंगों के माध्यम से लेखक बताते हैं कि कवि-दृष्टि मनुष्य, पशु और पक्षियों सबमें एक समान भाव देखती है।
कुत्ते की निष्ठा और मैना की करुण चाल देखकर गुरुदेव ने दोनों पर कविताएँ भी लिखीं।
गुरुदेव के निधन के बाद जब उनकी चिता-भस्म आश्रम लाई गई तो वही कुत्ता सहज बोध से द्वार तक आया और गंभीर होकर साथ चला-यह दृश्य लेखक के मन में अमर हो गया।इस प्रकार, यह संस्मरण बताता है कि संवेदना सभी प्राणियों में समान रूप से होती है और कवि उसे गहराई से पहचान सकता है।
3. मुख्य बिंदु
✔ गुरुदेव ने शांतिनिकेतन छोड़कर कुछ समय श्रीनिकेतन के पुराने तिमंजिले मकान में बिताने का निर्णय लिया।
✔ लेखक अपने परिवार के साथ गुरुदेव से मिलने गए।
✔ वे अस्तगामी सूर्य को देखकर शांत बैठे थे।
✔ गुरुदेव का कुत्ता उनकी उपस्थिति खुद-ब-खुद पहचानकर वहाँ पहुँचा।
✔ कुत्ते ने गुरुदेव के स्पर्श से अपार आनंद अनुभव किया।
✔ उसी कुत्ते पर गुरुदेव ने कविता लिखी थी-जहाँ कुत्ते की भक्ति और मानवता की पहचान का वर्णन है।
✔ गुरुदेव के चिता-भस्म पहुँचने पर वही कुत्ता द्वार पर आया और गंभीर भाव से साथ चला।
✔ दूसरी घटना में-एक लंगड़ी मैना रोज सुबह गुरुदेव के पास आती।
✔ गुरुदेव ने उसके एकांत, करुण और मर्मभेदी भाव को पहचाना।
✔ वही मैना बाद में गायब हो गई-गुरुदेव को उसकी करुणता अत्यंत स्पर्श कर गई।
✔ लेखक को यह अहसास होता है कि कवि-दृष्टि साधारण को असाधारण बना देती है।
✔ यह संस्मरण मनुष्य-पशु-पक्षी में व्याप्त साझा संवेदनाओं को दर्शाता है।
4. अध्याय की प्रमुख घटनाएँ
1. गुरुदेव श्रीनिकेतन में रहने लगे
- स्वास्थ्य कमजोर
- तिमंजिले मकान में ले जाया गया
- ऊपर लोहे की चक्करदार सीढ़ियाँ थीं
2. लेखक परिवार सहित ‘दर्शन’ को पहुँचे
- गुरुदेव मुस्कराए
- बच्चों से बातें कीं
- कुत्ता गुरुदेव को ढूँढता हुआ ऊपर आया
3. कुत्ते की भक्ति और आत्मीयता
- बिना बताए दो मील दूर से पहुँचना
- स्पर्श से आनंद का अनुभव
- गुरुदेव की कुत्ते पर लिखी कविता-कुत्ते की वफादारी और प्रेम की गहराई
4. गुरुदेव के चिता-भस्म लाए जाने का प्रसंग
- कुत्ता स्वयं द्वार तक आया
- शांत, गंभीर भाव से कलश के साथ चलना
- उस प्रेम की गहराई का प्रतीक
5. लंगड़ी मैना के साथ घटना
- रोज फुदकती हुई गुरुदेव के पास आती
- गुरुदेव ने उसके एकांत और करुण भाव को पहचाना
- लेखक को पहले यह करुणा दिखाई नहीं देती
- बाद में मैना गायब हो जाती है
- गुरुदेव ने उस मैना पर भी कविता लिखी
5. पाठ के केंद्र में निहित भाव
| विषय | अर्थ |
|---|---|
| कवि-दृष्टि | साधारण में भी अद्भुत संवेदना देखना |
| कुत्ते की भक्ति | निष्ठा, आत्मीयता और प्रेम |
| मैना का करुण भाव | एकांत, पीड़ा, असहायता |
| प्राणियों में समानता | मनुष्य-पशु-पक्षी में भाव एक है |
| गुरुदेव की संवेदना | हर प्राणी के दर्द को समझने की क्षमता |
6. महत्वपूर्ण पंक्तियों के सरल अर्थ
✦ “वाक्यहीन प्राणिलोक में सिर्फ यही एक जीव संपूर्ण मनुष्य को देख सका है।”
→ कुत्ते ने प्रेम और भक्ति से गुरुदेव के हृदय को समझा, जो कई मनुष्य भी नहीं समझ पाते।
✦ “गुरुदेव ने कहा-इसकी चाल में करुणा दिखाई देती है।”
→ लंगड़ी मैना के शारीरिक कष्ट और अकेलेपन की झलक चाल में दिखती थी।
✦ “कैसे मैंने उसे देखकर भी नहीं देखा!”
→ लेखक को पता चलता है कि देखने और समझने में अंतर होता है-कवि-दृष्टि गहराई देखती है।
7. पात्र
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर
- संवेदनशील
- प्रकृति और प्राणियों से गहरा जुड़ाव
- कुत्ते और मैना के भावों को गहराई से पहचानते हैं
कुत्ता
- अत्यंत वफादार
- स्पर्श से आनंदित
- गुरुदेव को खोज लेता है
- उनके अंतिम समय की स्मृतियों में भी साथ
मैना
- लंगड़ी, अकेली
- करुण और मर्मभेदी भाव वाली
- गुरुदेव को प्रिय
लेखक
- घटनाओं को संवेदना के साथ याद करते हैं
- गुरुदेव की दृष्टि से सीखते हैं

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