1. लेखक परिचय
- पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी हिन्दी के श्रेष्ठ निबंधकार माने जाते हैं।
- इनके निबंधों में विचार और भाव का सुंदर संतुलन मिलता है।
- भाषा में लालित्य, सरलता तथा गहराई होती है।
- प्रस्तुत निबंध में पुस्तक को आत्मकथा की तरह (पुस्तक की दृष्टि से) लिखा गया है।
2. पाठ का मुख्य उद्देश्य
- पुस्तक मात्र कागज़ का ढेर नहीं, बल्कि ज्ञान, विद्या और लेखक की आत्मा का रूप है।
- पुस्तक के माध्यम से मनुष्य उन्नति, विचार, भावना, अनुभव तथा प्रेरणा प्राप्त करता है।
- लेखक पुस्तक की महत्ता, गरिमा और सृजन-प्रक्रिया को उजागर करता है।
- पुस्तक मनुष्य को पशु से अलग बनाती है।
- साहित्य की रचना में व्यवसाय नहीं, आनंद और आत्मिक समर्पण का महत्व है।
3. पुस्तक का स्वरूप (पुस्तक स्वयं बताती है)
पुस्तक खुद कहती है:
(1) मैं ज्ञान, विद्या और रस का भंडार हूँ
- मैं “ग्रंथ हूँ, ज्ञान का सागर हूँ, विद्या की निधि हूँ।”
- मुझसे संसार ज्ञान प्राप्त करता है और मनुष्य उन्नति करता है।
(2) मेरा अंत नहीं – जैसे सत्य, ज्ञान और ब्रह्म अनंत हैं
- अनंत ज्ञान ही पुस्तक का रूप लेकर सामने आता है।
(3) मैं मानव आत्मा का प्रकाश हूँ
- मेरे भीतर किसी तपस्वी, ज्ञानी या कवि की आत्मा निवास करती है।
- प्रेस, कागज़, स्याही सिर्फ बाहरी साधन हैं – वास्तविक जन्मदाता वह लेखक है जो साधना करके मुझे रचता है।
4. पुस्तकों का महत्व
- जिन देशों या लोगों के पास पुस्तकें नहीं हैं, वे अज्ञान के अंधकार में रहते हैं।
- ऐसे लोग केवल उदरपूर्ति (पेट भरना) जानते हैं, उन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और ज्ञान का महत्व नहीं समझ आता।
5. पुस्तकें समय और युग को पार कराती हैं
- श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद आज भी हम गिता के रूप में पढ़ते हैं।
- कालिदास की मनोभावनाएँ और कवित्व आज भी मेघदूत जैसी कृतियों में जीवित हैं।
- पुस्तकें अतीत और वर्तमान दोनों का संदेश हमें देती हैं।
6. पुस्तक की रचना कैसे होती है?
- संसार के सुख-दुःख, सौंदर्य, शौर्य, गौरव, आतंक और विस्मय जब लेखक के अंतर्जगत में रस रूप लेते हैं, तब पुस्तक की रचना होती है।
- पुस्तक लेखक की साधना, कष्ट, आनंद और वेदना का परिणाम है।
7. पुस्तक का वास्तविक मूल्य
- पुस्तक पर छपा हुआ मूल्य उसका असली मूल्य नहीं है।
- वास्तविक मूल्य है-
- कवि की कीर्ति,
- ग्रंथकर्ता का चिरंतन गौरव,
- तथा पाठक को मिलने वाला अलौकिक आनंद।
- प्रकाशक पुस्तक से धन कमा लेते हैं, पर लेखक के लिए सम्मान और आनंद ही सच्चा पुरस्कार है।
8. सभी पुस्तकें समान नहीं होतीं
- कुछ पुस्तकें सूर्य की तरह अजर-अमर होती हैं।
- कुछ में खद्योत (जुगनू) की छोटी-सी ज्योति होती है।
- वे भी क्षणभर के लिए किसी का मन शीतल, आनन्दित या आर्द्र कर जाती हैं।
- छोटा साहित्य भी समाज के लिए उपयोगी है।
9. साहित्य कब पतन की ओर जाता है?
साहित्य अपना Ideal खो देता है जब-
- वह व्यवसाय का साधन बन जाता है,
- धन, लाभ-हानि, लेन-देन मुख्य उद्देश्य बन जाते हैं,
- साहित्य को क्षणिक मनोरंजन या दिखावा बना दिया जाता है,
- लोग मिथ्या प्रशंसा, दलबाज़ी और विरोधियों की निंदा में लगे रहते हैं।
10. पुस्तक का संदेश
- मैं (पुस्तक) निष्प्राण नहीं हूँ – मेरे भीतर एक मनुष्य की आत्मा रहती है।
- जीवन-सागर से जो वेदना का विष निकला वह लेखक ने स्वयं पिया,
और आनंद का अमृत जो निकला, वही पुस्तक बनकर पाठकों को मिलता है।
अध्याय का सार
पुस्तक स्वयं अपनी आत्मकथा कहती है कि वह सिर्फ कागज नहीं, बल्कि ज्ञान और आत्मा का प्रतीक है।
उसका जन्म किसी लेखक की साधना, अनुभूति और त्याग से होता है।
पुस्तक मनुष्य को उन्नत, सुसंस्कृत, संवेदनशील और जागरूक बनाती है।
जो लोग पुस्तकों से दूर रहते हैं, वे अज्ञान में भटकते हैं।
साहित्य का वास्तविक उद्देश्य आनंद, प्रेरणा और मानवता का संवर्धन है, न कि धन-संपत्ति।
अंत में पुस्तक कहती है कि उसके भीतर लेखक का अमृत, यानी उसका श्रेष्ठतम विचार और भाव, भरा हुआ है।

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