ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास
15.1 अर्थव्यवस्था से आशय एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था
अर्थव्यवस्था का अर्थ :अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसके द्वारा मनुष्य अपनी जीविका चलाता है।इसमें खेत, कारखाने, दुकानें, खदानें, बैंक, सड़कें, स्कूल, अस्पताल आदि सभी संस्थाएँ आती हैं जो वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन करती हैं।
अर्थव्यवस्था के प्रकार –
- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था – संसाधनों पर निजी स्वामित्व।
- समाजवादी अर्थव्यवस्था – संसाधनों पर सरकारी स्वामित्व।
- मिश्रित अर्थव्यवस्था – कुछ संसाधन सरकार के और कुछ निजी क्षेत्र के नियंत्रण में।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आशय :ग्राम आधारित वह आर्थिक प्रणाली जिसमें गाँव के खेत, दुकानें, पशुपालन, कुटीर उद्योग आदि शामिल होते हैं। यह जीविकोपार्जन का प्रमुख क्षेत्र है।
15.2 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास
भारत की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती है, इसलिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था का देश की उन्नति में अत्यंत महत्व है।ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास तीन चरणों में हुआ :
(i) अंग्रेजों के आगमन के पूर्व की ग्रामीण अर्थव्यवस्था
- प्राचीन भारत के गाँव आत्मनिर्भर, समृद्ध और खुशहाल थे।
- गाँव की कार्यशील जनसंख्या तीन वर्गों में बँटी थी –
- कृषक (Farmer) – गाँव का सबसे महत्वपूर्ण वर्ग।
- दस्तकार (Craftsmen) – जैसे लुहार, कुम्हार, बढ़ई, मोची आदि।
- ग्राम अधिकारी (Village Officials) – मुखिया, मालगुजार, कोटवार आदि।
मुख्य विशेषताएँ –
- आत्मनिर्भरता – गाँव अपनी सभी आवश्यकताएँ स्वयं पूरी करते थे।
- वस्तु विनिमय प्रणाली – वस्तुओं का आदान-प्रदान वस्तु या सेवा के रूप में किया जाता था, मुद्रा का प्रयोग नहीं होता था।
- सरल श्रम विभाजन – कार्य जाति या परंपरा के आधार पर बाँटे गए थे।
- श्रम की गतिहीनता – परिवहन की कमी व जाति प्रथा के कारण लोग अपने गाँव से बाहर नहीं जाते थे।
- बाह्य दुनिया से संपर्क का अभाव – गाँव पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर इकाइयाँ थीं।
- राज्य के प्रति उदासीनता – ग्रामवासियों का शासन के कार्यों में कोई विशेष रुचि नहीं थी।
(ii) अंग्रेजों के आगमन के बाद की ग्रामीण अर्थव्यवस्था
अंग्रेजों ने भारत को उपनिवेश बनाकर उसकी आर्थिक संरचना को नष्ट कर दिया।
मुख्य परिवर्तन –
- दस्तकारी एवं हस्तकला का पतन – ब्रिटिश नीतियों से ग्रामीण कारीगर बेरोजगार हो गए।
- ग्रामीण समुदाय की संरचना में परिवर्तन – नए वर्ग बने: जमींदार, भूमिहीन कृषक, कृषक श्रमिक आदि।
- गाँवों की आत्मनिर्भरता समाप्त हुई – कृषि वाणिज्यिक बन गई और अनाज बाहर बिकने लगा।
- कृषि भूमि का हस्तांतरण – ऋण न चुका पाने के कारण किसानों की जमीन महाजनों के हाथों चली गई।
- कृषि का पिछड़ापन – जमींदारी प्रथा और शोषण के कारण खेती की हालत दयनीय हो गई।
(iii) स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की ग्रामीण अर्थव्यवस्था (आधुनिक काल)
भारत की लगभग 72% जनसंख्या आज भी गाँवों में रहती है। स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा गाँवों का तेजी से विकास हुआ।
मुख्य विशेषताएँ –
- उपलब्ध भूमि के आधार पर कृषकों का वर्गीकरण :
- बड़े कृषक (2-10 हेक्टेयर भूमि)
- मझोले कृषक (2 हेक्टेयर के आसपास)
- छोटे कृषक (2 हेक्टेयर से कम)
- भूमिहीन कृषक (दूसरों की जमीन पर खेती या मजदूरी करते हैं)
- बहुविध फसलें – खरीफ, रबी और जायद फसलें ली जाने लगीं; फूलों व तिलहन जैसी नगदी फसलें भी प्रचलित हुईं।
- शहरी पलायन – रोजगार, शिक्षा व सुविधाओं की कमी से ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर पलायन कर रही है।
- मौद्रिक प्रणाली का प्रचलन – वस्तु विनिमय प्रणाली समाप्त हो चुकी है; अब मुद्रा का उपयोग होता है।
- अपर्याप्त संचार व परिवहन – अधिकांश सड़के कच्ची हैं, लेकिन अब टेलीफोन, टीवी, बस और रेल से संपर्क बढ़ा है।
- कुटीर व लघु उद्योगों का विकास – ग्रामीण बेरोजगारी कम करने हेतु हस्तशिल्प, हाट-बाजार व घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन मिला।
- तकनीकी उन्नति – खेती में ट्रैक्टर, पंपसेट, थ्रेशर, जैविक खाद और उन्नत बीजों का उपयोग होने लगा।
- शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार – गाँवों में स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र व आंगनवाड़ी की व्यवस्था की गई है।
15.3 ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास हेतु सरकारी प्रयास
सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कई योजनाएँ चलाईं :
- भूमि सुधार –
- जमींदारी प्रथा का उन्मूलन
- चकबंदी द्वारा छोटी जोतों का समायोजन
- भूमिहीनों को भूमि वितरण
- फसल बीमा योजना व न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
- ग्रामीण सड़क व बैंकिंग सुविधाएँ
- आवास, स्वच्छता व स्वास्थ्य –
- इंदिरा आवास योजना
- ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम
- आँगनवाड़ी, परिवार कल्याण केंद्र, स्वास्थ्य शिक्षा आदि।
- कुटीर व लघु उद्योगों को प्रोत्साहन –
- खादी ग्रामोद्योग, हस्तकरघा बोर्ड आदि की स्थापना
- वित्तीय सहायता हेतु लघु उद्योग बैंक
- सरकारी विभागों द्वारा उत्पादों की खरीदी व प्रदर्शनियाँ।
15.4 प्राचीन एवं आधुनिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन
| तुलनात्मक आधार | अंग्रेजों से पूर्व | अंग्रेजों के बाद | स्वतंत्रता के बाद |
|---|---|---|---|
| आत्मनिर्भरता | पूर्ण आत्मनिर्भर गाँव | आत्मनिर्भरता कम | आत्मनिर्भरता समाप्त |
| कृषि उद्देश्य | जीवन निर्वाह | वाणिज्यिक | वाणिज्यिक |
| आर्थिक स्थिति | समृद्ध व खुशहाल | निर्धनता | सुधार जारी |
| भूमि स्वामित्व | कृषक मालिक | महाजन व जमींदार मालिक | सुधार हुआ, पर भूमिहीनता बनी |
| कृषि विधियाँ | परंपरागत | पुरानी | आधुनिक मशीनें |
| श्रम गतिशीलता | नहीं थी | थोड़ी बढ़ी | अधिक बढ़ी |
| संचार व परिवहन | नहीं था | रेल व सड़कें बनीं | आधुनिक नेटवर्क व इंटरनेट |
| शिक्षा | सीमित | केवल उच्च वर्ग तक | सभी वर्गों में विस्तार |
15.5 आदर्श ग्राम की अवधारणा
अर्थ:आदर्श ग्राम वह है जिसमें कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, आवास, स्वच्छता, परिवहन और प्रशासन की सभी सुविधाएँ विकसित हों।
आदर्श ग्राम की विशेषताएँ –
- उन्नत कृषि व्यवस्था – चकबंदी, सामूहिक खेती, उन्नत बीज, सिंचाई सुविधाएँ।
- आवासीय सुविधा – स्वच्छ, पक्के या अर्धपक्के घर; शौचालय व बायोगैस की व्यवस्था।
- पेयजल व्यवस्था – स्वच्छ जल के लिए कुएँ, तालाब व वर्षा जल संरक्षण।
- स्वास्थ्य सुविधाएँ – प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, औषधि व्यवस्था।
- शिक्षा – बालक-बालिका शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, मध्याह्न भोजन योजना।
- परिवहन व संचार – पक्की सड़कें, डाकघर, टेलीफोन, इंटरनेट सुविधा।
- ऊर्जा व पर्यावरण जागरूकता – बिजली व सौर ऊर्जा का प्रयोग, वृक्षारोपण।
- औद्योगिक विकास – कृषि आधारित व कुटीर उद्योग जैसे डेयरी, कुक्कुट पालन आदि।
- प्रशासनिक व्यवस्था – सक्रिय ग्राम पंचायत, पारदर्शी शासन।
- वित्तीय सुविधा – ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियाँ, स्व-सहायता समूह।
15.6 मध्यप्रदेश के चयनित ग्राम – दिमनी का आर्थिक अध्ययन
स्थान: मुरैना ज़िले का दिमनी गाँव।क्षेत्रफल: 383 हेक्टेयरजनसंख्या: लगभग 2346मुख्य व्यवसाय: 41% लोग कृषि से जुड़े।मिट्टी: दोमट, कछारी, कंकरीली।औसत वर्षा: 70 सेमी
मुख्य आर्थिक विशेषताएँ –
- अधिकतर परिवार कृषि कार्य में लगे हैं।
- अधिकांश घर पक्के या मिश्रित प्रकार के हैं।
- वार्षिक आय कम, लगभग एक-तिहाई परिवार ₹5000 से कम आय वाले हैं।
- खेती में सिंचाई साधन सीमित हैं।
- शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएँ बढ़ रही हैं लेकिन रोजगार की कमी है।
मुख्य समस्याएँ –
- मिट्टी का कटाव व सिंचाई की कमी
- बेरोजगारी और पलायन
- गंदगी व कचरा प्रबंधन की समस्या
- आय का निम्न स्तर और अनावश्यक खर्च
सुझाव –
- बीहड़ नियंत्रण और जल संरक्षण के उपाय
- जैविक खाद व स्वच्छता पर प्रशिक्षण
- कुटीर उद्योग व भंडारण गृहों की स्थापना
- डेयरी व स्वरोजगार के अवसर बढ़ाना
- बचत व स्वसहायता समूह बनाना

Leave a Reply