भारत में उद्योगों की स्थिति
17.1 उद्योगों से आशय
- किसी देश के आर्थिक विकास में उद्योगों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।
- उद्योग देश के तीव्र आर्थिक विकास में सहायक होते हैं।
- जब एक जैसी वस्तु या सेवा का उत्पादन अनेक फर्मों द्वारा किया जाता है तो वे मिलकर उद्योग कहलाते हैं।
- उदाहरण: राउरकेला, दुर्गापुर, बोकारो, टाटा स्टील – ये सब लोहा-इस्पात उद्योग के भाग हैं।
- उद्योग वह गतिविधि है जिसमें नियोक्ता और श्रमिक मिलकर वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन करते हैं ताकि मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।
17.2 उद्योगों का वर्गीकरण
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जाता है –
- स्वामित्व के आधार पर:
- निजी उद्योग
- सरकारी उद्योग
- सहकारी उद्योग
- मिश्रित उद्योग
- उपयोगिता के आधार पर:
- आधारभूत उद्योग
- उपभोक्ता उद्योग
- आकार के आधार पर:
- वृहद उद्योग
- मध्यम उद्योग
- लघु उद्योग
- कुटीर/ग्रामीण उद्योग
- माल की प्रकृति के आधार पर:
- भारी उद्योग
- हल्के उद्योग
- कच्चे माल के आधार पर:
- कृषि आधारित उद्योग
- खनिज आधारित उद्योग
आकार के अनुसार वर्गीकरण:
- वृहद उद्योग:
- प्लांट व मशीनरी में ₹10 करोड़ से अधिक निवेश।
- उदाहरण: टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी।
- मध्यम उद्योग:
- पूंजी ₹5-10 करोड़ तक।
- उदाहरण: चमड़ा उद्योग, रेशम उद्योग।
- लघु उद्योग:
- प्लांट व मशीनरी में ₹5 करोड़ तक निवेश।
- सेवा क्षेत्र में सीमा ₹2 करोड़ तक।
- उदाहरण: लाख उद्योग, काँच उद्योग।
- अति लघु उद्योग:
- निवेश ₹25 लाख तक।
- सेवा क्षेत्र में ₹10 लाख तक।
- कुटीर उद्योग:
- परिवार द्वारा संचालित, कम पूंजी, हाथ से उत्पादन।
- उदाहरण: बाँस की टोकरी, हाथीदाँत की कारीगरी।
- ग्राम उद्योग:
- जो केवल गाँवों में चलाए जाते हैं।
- उदाहरण: खादी, रेशम, हाथकरघा।
17.3 भारत में उद्योगों की स्थिति
(A) वृहद उद्योग
- सूती वस्त्र उद्योग:
- भारत का सबसे प्राचीन व प्रमुख उद्योग।
- पहली मिल 1818 में कोलकाता में।
- औद्योगिक उत्पादन में 14%, निर्यात में 19% योगदान।
- मुख्य क्षेत्र: महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात।
- लोहा और इस्पात उद्योग:
- आधुनिक इस्पात उत्पादन की शुरुआत जमशेदजी टाटा ने जमशेदपुर से की।
- कुल 10 बड़े संयंत्र (9 सार्वजनिक, 1 निजी – टाटा)।
- प्रमुख स्थान: भिलाई, बोकारो, दुर्गापुर, विशाखापट्टनम।
- 5 लाख लोगों को रोजगार, ₹90,000 करोड़ निवेश।
- जूट उद्योग:
- भारत विश्व में जूट उत्पादन में प्रथम स्थान पर।
- 50% जूट भारत में पैदा होता है।
- 85% मिलें पश्चिम बंगाल में।
- 2.61 लाख लोगों को रोजगार।
- चीनी उद्योग:
- भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक।
- प्रमुख राज्य: उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र।
- 566 मिलें, कृषि आधारित उद्योग।
- सीमेंट उद्योग:
- शुरुआत 1912-14 में (पोरबंदर, कटनी)।
- 128 बड़े व 332 लघु कारखाने।
- भारत विश्व में पाँचवाँ बड़ा उत्पादक।
- सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग:
- कंप्यूटर और संचार से संबंधित ज्ञान आधारित उद्योग।
- 1994 के बाद तेज़ी से विकास।
- 2002-03 में आय ₹79,337 करोड़।
- भारत का सबसे तेज़ बढ़ता उद्योग।
(B) लघु उद्योग
- कागज उद्योग:
- पहला कारखाना 1870 में कोलकाता के पास।
- लगभग 515 कारखाने, 15 लाख लोगों को रोजगार।
- प्रमुख राज्य: म.प्र., आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल आदि।
- चमड़ा उद्योग:
- पारंपरिक उद्योग, उत्पाद: जूते, बैग, बेल्ट आदि।
- मुख्य क्षेत्र: तमिलनाडु, कानपुर, कोलकाता, आगरा।
- 75% उत्पादन लघु/कुटीर उद्योगों से।
(C) कुटीर उद्योग
- काँच उद्योग:
- मुख्य केंद्र: फिरोजाबाद (225 कारखाने)।
- निर्यात: पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका आदि।
- रेशम उद्योग:
- विश्व में दूसरा स्थान।
- प्रमुख क्षेत्र: कश्मीर, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम।
- 58 लाख लोगों को रोजगार।
- लाख उद्योग:
- प्रमुख उत्पादन क्षेत्र: छोटानागपुर पठार, म.प्र., छत्तीसगढ़, उ.प्र.।
- 50% विश्व उत्पादन भारत में।
- प्रमुख ग्राहक: चीन, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन।
17.4 लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्व
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अनुकूल।
- बेरोजगारी में कमी।
- आय की समानता।
- व्यक्तिगत कला का विकास।
- कृषि पर दबाव में कमी।
- औद्योगिक विकेंद्रीकरण।
- कम पूंजी व तकनीकी आवश्यकता।
- शीघ्र उत्पादन।
- विदेशी मुद्रा की प्राप्ति।
- आयात पर निर्भरता में कमी।
- बड़े उद्योगों के पूरक के रूप में कार्य।
- स्थानीय संसाधनों का उपयोग।
योगदान:
- राष्ट्रीय उत्पादन में 10%
- औद्योगिक उत्पादन में 39%
- रोजगार में 32%
- निर्यात में 35%
17.5 लघु उद्योगों के विकास के लिए सरकारी प्रयास
- विभिन्न बोर्डों की स्थापना – खादी ग्रामोद्योग मंडल, हस्तकला बोर्ड आदि।
- भारतीय लघु उद्योग परिषद की स्थापना।
- वित्तीय सहायता – आरबीआई, एसबीआई, सहकारी बैंक आदि द्वारा।
- तकनीकी सहायता – प्रशिक्षण व विदेश विशेषज्ञ।
- करों में छूट व परिवहन में रियायत।
- विपणन सुविधा – शोरूम, एम्पोरियम की स्थापना।
- लाइसेंस में छूट।
- सरकारी खरीद में प्राथमिकता।
- प्रदर्शनियों का आयोजन।
- अनुसंधान केंद्रों की स्थापना।
- राष्ट्रीय समता कोष – छोटे उद्योगों को Soft Loan।
- भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) की स्थापना।
- भुगतान में देरी पर ब्याज की व्यवस्था।
- लघु उद्यमी क्रेडिट कार्ड योजना (2002-03)।
- ऋण सुविधा में सुधार (सीमा ₹50 लाख तक)।
- सिले-सिलाए वस्त्रों पर प्रतिबंध हटाया गया।
- एकीकृत ढांचागत विकास केंद्रों की स्थापना।

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