नागरिकों के संवैधानिक अधिकार एवं कर्त्तव्य
1. मौलिक अधिकार – अर्थ और महत्व
- भारतीय संविधान 22 भागों में विभाजित है –
- भाग 3 – मौलिक अधिकार
- भाग 4 – राज्य के नीति निदेशक तत्व
- भाग 4(क) – मौलिक कर्त्तव्य
- अर्थ:मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं जो नागरिकों के पूर्ण विकास, गरिमा और स्वतंत्र जीवन के लिए आवश्यक हैं।
- महत्व:
- नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।
- शासन की मनमानी पर रोक लगाते हैं।
- नागरिकों को न्याय पाने का अधिकार देते हैं।
- लोकतंत्र की नींव को मजबूत करते हैं।
- परिभाषा:संविधान में अंकित वे अधिकार जिनकी रक्षा सर्वोच्च न्यायालय करता है, मौलिक अधिकार कहलाते हैं।
2. संविधान द्वारा प्राप्त 6 मौलिक अधिकार
1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
- विधि के समक्ष समानता (अनु. 14):हर नागरिक कानून के सामने समान है। कोई व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं।
- भेदभाव का निषेध (अनु. 15):धर्म, जाति, लिंग, मूलवंश या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं होगा।
- सरकारी पदों में समान अवसर (अनु. 16):योग्यता के आधार पर सभी नागरिकों को रोजगार के समान अवसर।अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान।
- अस्पृश्यता की समाप्ति (अनु. 17):छुआछूत अपराध है। “नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955” के तहत दंडनीय।
- उपाधियों का अंत (अनु. 18):“रायबहादुर”, “खान बहादुर”, “सर” जैसी उपाधियाँ समाप्त।केवल “भारत रत्न”, “पद्म विभूषण”, “पद्मश्री” जैसी राष्ट्रीय उपाधियाँ दी जा सकती हैं।
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
- नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास और उपासना की स्वतंत्रता प्राप्त है।
मुख्य स्वतंत्रताएँ –
- भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- अस्त्र-शस्त्र के बिना शांतिपूर्ण एकत्र होने की स्वतंत्रता
- संघ या संगठन बनाने की स्वतंत्रता
- देश में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता
- भारत में कहीं भी निवास करने की स्वतंत्रता
- रोजगार या व्यवसाय करने की स्वतंत्रता
अन्य संरक्षण:
- एक अपराध के लिए व्यक्ति को एक ही बार दंड।
- अपने विरुद्ध गवाही देने को बाध्य नहीं किया जा सकता।
- बिना बताए गिरफ्तारी नहीं की जा सकती।
- 24 घंटे के भीतर न्यायालय में प्रस्तुत करना आवश्यक।
- निवारक नजरबंदी केवल 3 माह तक।
- अनु. 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।
- आपातकाल में केवल अनु. 20 और 21 को स्थगित नहीं किया जा सकता।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनु. 23-24)
- मनुष्यों का अवैध व्यापार, बेगार, बाल श्रम पर प्रतिबंध।
- 14 वर्ष से कम बच्चों को कारखानों या खानों में काम नहीं कराया जा सकता।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनु. 25-28)
- भारत पंथनिरपेक्ष राज्य है – सभी धर्मों को समान सम्मान।
मुख्य प्रावधान:
- किसी भी धर्म को मानने, प्रचार करने और पालन करने की स्वतंत्रता।
- धार्मिक संस्थाओं की स्थापना व प्रबंधन का अधिकार।
- किसी धर्म के प्रचार हेतु कर नहीं लगाया जाएगा।
- सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा पर पाबंदी।
5. संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार (अनु. 29-30)
- नागरिक अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकते हैं।
- किसी शिक्षण संस्था में धर्म, जाति, भाषा आदि के आधार पर भेदभाव नहीं।
- अल्पसंख्यक समुदाय अपनी पसंद के शिक्षण संस्थान स्थापित कर सकते हैं।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनु. 32-35)
- मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर नागरिक न्यायालय जा सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय 5 प्रकार की रिट जारी कर सकते हैं:
| रिट | अर्थ |
|---|---|
| 1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) | बंदी को अदालत के सामने प्रस्तुत करने का आदेश। |
| 2. परमादेश (Mandamus) | अधिकारी को अपने कर्त्तव्य का पालन करने का आदेश। |
| 3. प्रतिषेध (Prohibition) | निचली अदालत को अपने अधिकार से बाहर जाने से रोकना। |
| 4. उत्प्रेषण (Certiorari) | निचली अदालत के रिकॉर्ड की जाँच हेतु मंगाना। |
| 5. अधिकार पृच्छा (Quo Warranto) | किसी व्यक्ति के पद पर अधिकार की जाँच। |
3. राज्य के नीति निदेशक तत्व (अनु. 36-51)
- ये राज्य के लिए दिशा-निर्देश हैं कि उसे कैसे शासन चलाना चाहिए।
- ये न्यायालय में लागू नहीं किए जा सकते, लेकिन शासन के कर्त्तव्य हैं।
- इनका उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना है।
मुख्य उद्देश्य:
- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय देना।
- गाँधीजी के विचारों के अनुरूप समाज बनाना।
- अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देना।
मुख्य सिद्धांत:
- महिला-पुरुषों को समान अवसर और वेतन।
- बाल श्रम का उन्मूलन।
- रोजगार, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा।
- कुटीर उद्योगों को बढ़ावा।
- पर्यावरण और वन्यजीवों की रक्षा।
- नशीली वस्तुओं पर रोक।
- पंचायतों का गठन।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में शांति और सम्मान।
4. मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्व में अंतर
| क्रमांक | मौलिक अधिकार | नीति निदेशक तत्व |
|---|---|---|
| 1 | कानूनी शक्ति रखते हैं | जनमत की शक्ति रखते हैं |
| 2 | निषेधात्मक प्रकृति के हैं | सकरात्मक प्रकृति के हैं |
| 3 | राजनीतिक प्रजातंत्र स्थापित करते हैं | सामाजिक-आर्थिक प्रजातंत्र स्थापित करते हैं |
| 4 | नागरिकों के अधिकार हैं | राज्य के कर्त्तव्य हैं |
5. मौलिक कर्त्तव्य (अनु. 51A)
- 42वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा जोड़े गए।
- कुल 11 मौलिक कर्त्तव्य नागरिकों के लिए निर्धारित हैं:
- संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करें।
- स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों का पालन करें।
- भारत की एकता और अखंडता की रक्षा करें।
- देश की रक्षा में भाग लें।
- भाईचारे और समरसता की भावना रखें।
- भारतीय संस्कृति की परंपरा बनाए रखें।
- पर्यावरण की रक्षा करें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करें।
- सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें।
- हर क्षेत्र में उत्कर्ष की ओर बढ़ें।
- 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा दिलाएँ।
अर्थ:अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।कर्त्तव्यों के पालन से समाज में अनुशासन और शांति बनी रहती है।
6. नागरिकों को प्राप्त कानूनी अधिकार
(1) संपत्ति का अधिकार
- पहले मौलिक अधिकार था, पर 44वें संशोधन (1978) से हटा दिया गया।
- अब यह एक कानूनी अधिकार है।
(2) सूचना का अधिकार (Right to Information – 2005)
- नागरिकों को सरकारी कार्यों की जानकारी पाने का अधिकार।
- यह शासन को पारदर्शी और जवाबदेह बनाता है।
- भ्रष्टाचार रोकने का प्रभावी माध्यम है।
मुख्य प्रावधान:
- हर नागरिक किसी सरकारी कार्यालय से सूचना प्राप्त कर सकता है।
- सूचना दो तरीकों से मिलती है –
- प्रकाशित सूचनाओं से
- आवेदन पत्र द्वारा
- शुल्क – ₹10 (बीपीएल वर्ग के लिए निःशुल्क)।
- सूचना देने की अवधि – 30 दिन।
न देने पर दंड:
- ₹250 प्रतिदिन, अधिकतम ₹25,000 तक जुर्माना।
सूचना आयोग:
- राष्ट्रीय स्तर – केन्द्रीय सूचना आयोग
- राज्य स्तर – राज्य सूचना आयोग
- नियुक्ति राज्यपाल द्वारा, कार्यकाल – 5 वर्ष।
7. सूचना के अधिकार के तीन सिद्धांत
- जवाबदेही का सिद्धांत – शासन जनता के प्रति उत्तरदायी हो।
- सहभागिता का सिद्धांत – नागरिक शासन प्रक्रिया में भाग लें।
- पारदर्शिता का सिद्धांत – सरकारी कामकाज खुला और स्पष्ट हो।
8. सूचना के अधिकार का महत्व
- मौलिक अधिकारों के प्रयोग को प्रभावशाली बनाता है।
- शासन को उत्तरदायी बनाता है।
- पारदर्शिता लाता है।
- नागरिकों की भागीदारी बढ़ाता है।
- भ्रष्टाचार पर रोक लगाता है।
- शासकीय योजनाओं को सफल बनाता है।

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