Notes For All Chapters – सामाजिक विज्ञान Class 7
1. प्रस्तावना
- प्राचीन काल में लोग वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान मुद्रा के बिना करते थे।
- इस व्यवस्था को वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System) कहते हैं।
- समय के साथ विनिमय कठिन हो गया और मुद्रा का विकास हुआ।
- मुद्रा ने वर्तमान और भविष्य के बीच एक कड़ी का कार्य किया।
2. वस्तु विनिमय प्रणाली
- वस्तु विनिमय = वस्तु के बदले वस्तु का लेन-देन।
- उदाहरण:
- रबर के बदले पेंसिल लेना।
- पशुधन, बीज, कपड़े, नमक, तंबाकू, कौड़ी आदि वस्तुएँ विनिमय में प्रयुक्त होती थीं।
- यह प्रणाली सबसे प्रारंभिक व्यापारिक व्यवस्था थी।
3. वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ
- आवश्यकताओं का द्विसंयोग (Double Coincidence of Wants):
- दोनों व्यक्तियों की आवश्यकताएँ मेल खाना जरूरी।
- जैसे – किसान को बैल देना है, लेकिन सामने वाले को बैल की आवश्यकता हो यह जरूरी है।
- मूल्य का सामान्य मानक माप (Common Standard Measure of Value):
- यह तय करना कठिन कि कितने गेहूँ के बदले कितने जूते उचित हैं।
- मूल्य की तुलना के लिए कोई मानक नहीं था।
- विभाज्यता (Divisibility):
- बैल को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटना संभव नहीं।
- सुवाह्यता (Portability):
- बैल या गेहूँ जैसे भारी सामान को दूर-दूर तक ले जाना कठिन।
- टिकाऊपन (Durability):
- गेहूँ जैसी वस्तुएँ लंबे समय तक संग्रहित नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे सड़ जाती हैं या चूहे खा लेते हैं।
4. मुद्रा की आवश्यकता
- विनिमय को सरल और आसान बनाने के लिए मुद्रा का विकास हुआ।
- मुद्रा ने व्यापार और दैनिक जीवन के लेन-देन को आसान बनाया।
- मुद्रा ने संग्रहण और मूल्य निर्धारण की समस्या का समाधान किया।
5. मुद्रा के मुख्य कार्य
- विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange):
- वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री में प्रयोग।
- मूल्य का मापक (Measure of Value):
- वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य तय करना आसान।
- मूल्य का संग्रहण (Store of Value):
- मुद्रा लंबे समय तक सुरक्षित रखी जा सकती है।
- भविष्य में भुगतान (Standard of Deferred Payment):
- मुद्रा उधार या किस्तों में भुगतान करने का साधन है।
6. मुद्रा का विकास
(क) गैर-धातु मुद्रा
- शुरुआती दौर में कौड़ी, कवच, नमक, बीज, चायपत्ती, तंबाकू, कपड़े, पशुधन आदि का प्रयोग मुद्रा की तरह हुआ।
(ख) सिक्का प्रणाली
- सिक्के सोना, चाँदी, ताँबे और मिश्रधातुओं से बनाए जाते थे।
- प्राचीन सिक्कों को कार्षापण या पण कहा जाता था।
- सिक्कों पर राजा-रानी, देवी-देवता, जानवर, वृक्ष और पहाड़ जैसी आकृतियाँ अंकित होती थीं।
- सिक्कों के प्रयोग से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भी बढ़ा।
- चालुक्य, चोल आदि राजवंशों के सिक्कों पर उनके प्रतीक अंकित मिलते हैं।
(ग) कागजी मुद्रा
- सिक्कों को ढोना कठिन था, इसलिए कागजी मुद्रा का प्रचलन हुआ।
- चीन में सबसे पहले प्रयोग और भारत में 18वीं शताब्दी के अंत में शुरुआत।
- छोटे लेन-देन में सिक्के और बड़े लेन-देन में कागजी नोटों का प्रयोग हुआ।
- भारत में मुद्रा छापने का अधिकार केवल भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को है।
(घ) आधुनिक मुद्रा (डिजिटल मुद्रा)
- तकनीकी प्रगति के साथ नए रूप विकसित हुए।
- डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग, यूपीआई (UPI), क्यूआर कोड आदि का प्रयोग होने लगा।
- आजकल लोग बिना नकद के मोबाइल और इंटरनेट से लेन-देन करते हैं।
7. विशेष जानकारियाँ
- “पण” शब्द आज भी तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं में प्रयोग होता है।
- भारत सरकार ने 2010 में रुपया (₹) का प्रतीक स्वीकृत किया।
- असम का जोन बोल मेला आज भी वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित है।
- पुराने कपड़ों के बदले बर्तन लेना वस्तु विनिमय का आधुनिक उदाहरण है।
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