Solutions For All Chapters – SST Class 7
1. वस्तु विनिमय प्रणाली कैसे कार्य करती थी और इस प्रणाली में किस प्रकार की वस्तुओं का प्रयोग विनिमय हेतु किया जाता था?
उत्तर: वस्तु विनिमय प्रणाली में लोग मुद्रा का उपयोग किए बिना अपनी वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान करते थे। उदाहरण के लिए, अगर किसी के पास अतिरिक्त गेहूँ है और उसे कपड़े चाहिए, तो वह गेहूँ के बदले कपड़े ले सकता था, बशर्ते दूसरा व्यक्ति गेहूँ चाहता हो। इस प्रणाली में विनिमय के लिए वस्तुओं जैसे कौड़ी, कवच, नमक, चायपत्ती, तंबाकू, कपड़ा, पशुधन (गाय, बकरी, घोड़े, भेड़), बीज आदि का उपयोग होता था। यह प्रणाली तब तक काम करती थी, जब तक दोनों पक्षों की जरूरतें एक-दूसरे से मेल खाती थीं।
2. वस्तु विनिमय प्रणाली की क्या सीमाएँ थीं?
उत्तर: वस्तु विनिमय प्रणाली की निम्नलिखित सीमाएँ थीं:
- आवश्यकताओं का द्विसंयोग (डबल कोइंसिडेंस ऑफ वॉन्ट्स): दोनों व्यक्तियों को एक-दूसरे की वस्तु चाहिए होती थी, जो हमेशा संभव नहीं था।
- मूल्य का सामान्य मानक माप न होना: यह तय करना मुश्किल था कि एक वस्तु की कीमत दूसरी वस्तु के बराबर कितनी है।
- विभाज्यता की समस्या: कुछ वस्तुएँ जैसे बैल को छोटे हिस्सों में बाँटकर विनिमय नहीं किया जा सकता था।
- सुवाह्यता की समस्या: भारी वस्तुओं जैसे गेहूँ के बोरे या बैल को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना कठिन था।
- टिकाऊपन की समस्या: कुछ वस्तुएँ जैसे गेहूँ अधिक समय तक संग्रहित नहीं की जा सकती थीं, क्योंकि वे सड़ सकती थीं या चूहे खा सकते थे।
3. प्राचीन भारतीय सिक्कों की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर: प्राचीन भारतीय सिक्कों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं:
- धातु से निर्मित: सिक्के सोना, चाँदी, ताँबा या उनकी मिश्रधातु से बनाए जाते थे।
- चिह्न और आकृतियाँ: सिक्कों के ‘शीर्ष’ (ऑबवर्स) और ‘पृष्ठ’ (रिवर्स) पर प्राकृतिक आकृतियाँ जैसे जानवर, वृक्ष, पहाड़, राजा-रानी या देवी-देवताओं की छवियाँ उकेरी जाती थीं।
- नाम: इन्हें ‘कार्षापण’ या ‘पण’ कहा जाता था।
- शासकों का नियंत्रण: सिक्के शासकों द्वारा ढाले और जारी किए जाते थे, और इन पर ‘रुपा’ जैसे चिह्न अंकित होते थे।
- विशिष्ट डिजाइन: उदाहरण के लिए, चालुक्य सिक्कों पर वराह (विष्णु अवतार) और त्रिस्तरीय छत्र अंकित होता था।
4. समय के साथ मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कैसे परिवर्तित हुई?
उत्तर: समय के साथ मुद्रा का विकास निम्नलिखित रूपों में हुआ:
- वस्तु विनिमय प्रणाली: शुरू में लोग कौड़ी, कवच, नमक, पशुधन आदि का उपयोग विनिमय के लिए करते थे।
- सिक्का प्रणाली: धातुओं जैसे सोना, चाँदी और ताँबे से सिक्के बनाए गए, जो शासकों द्वारा जारी किए जाते थे। ये व्यापार को आसान बनाते थे।
- कागजी मुद्रा: 18वीं शताब्दी में भारत में कागजी नोटों का उपयोग शुरू हुआ, जो बड़े लेन-देन के लिए सुविधाजनक थे।
- डिजिटल मुद्रा: आजकल डिजिटल भुगतान जैसे क्यू.आर. कोड, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग और यू.पी.आई. का उपयोग होता है, जो तेज और सुविधाजनक है।
5. प्राचीन काल में कौन-से कदम उठाए गए होंगे जिससे भारतीय सिक्के विभिन्न देशों में विनिमय का माध्यम बन सकें?
उत्तर: प्राचीन काल में भारतीय सिक्कों को विभिन्न देशों में विनिमय का माध्यम बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए होंगे:
- मूल्यवान धातुओं का उपयोग: सिक्के सोना, चाँदी और ताँबे जैसी मूल्यवान धातुओं से बनाए जाते थे, जिन्हें अन्य देशों में भी स्वीकार किया जाता था।
- मानकीकरण: सिक्कों पर शासकों के चिह्न और डिजाइन अंकित किए जाते थे, जो उनकी प्रामाणिकता को दर्शाते थे।
- व्यापारिक संबंध: भारत ने समुद्री व्यापार के माध्यम से रोम, ग्रीस और अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए, जिससे भारतीय सिक्के विदेशों में प्रचलित हुए।
- शासकों का प्रभाव: शक्तिशाली शासकों के सिक्के अन्य राज्यों और देशों में भी स्वीकार किए जाने लगे।
- खुदाई से प्रमाण: पुड्डूकोटाई जैसे स्थानों पर मिले ग्रीक स्वर्ण सिक्के दक्षिण भारत के विश्व व्यापार में शामिल होने का प्रमाण हैं।
6. अर्थशास्त्र की निम्नलिखित पंक्तियाँ पढ़ें – ’60 पणों का एक वर्ष का वेतन प्रतिदिन एक अधक अनाज से प्रतिस्थापित हो सकता था, जो चार बार के भोजन के लिए पर्याप्त था…’ (एक अधक लगभग 3 किलोग्राम के बराबर होता है)। यह एक पण के मूल्य के विषय में क्या बताता है? पड़ोसी की सहायता न करने की दंड 100 पण था। इसकी तुलना वार्षिक वेतन से करें। इससे आप मानवीय मूल्यों के बारे में क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं, जो इसके माध्यम से प्रोत्साहित किए जा रहे थे?
उत्तर:
- एक पण का मूल्य: पंक्ति से पता चलता है कि 60 पण एक वर्ष के वेतन के बराबर थे, जो प्रतिदिन एक अधक अनाज (लगभग 3 किलोग्राम) के बराबर था। इसका मतलब है कि एक पण की कीमत लगभग 3 किलोग्राम अनाज थी, जो एक दिन के चार बार के भोजन के लिए पर्याप्त थी। इससे यह समझ आता है कि एक पण का मूल्य उस समय के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह एक व्यक्ति के भोजन की जरूरत को पूरा कर सकता था।
- दंड की तुलना: पड़ोसी की सहायता न करने का दंड 100 पण था, जो एक वर्ष के वेतन (60 पण) से अधिक था। यह दर्शाता है कि समाज में पड़ोसी की मदद न करना बहुत गंभीर अपराध माना जाता था।
- मानवीय मूल्य: इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उस समय समाज में आपसी सहायता और सामुदायिक सहयोग को बहुत महत्व दिया जाता था। दंड की राशि को वेतन से अधिक रखकर यह संदेश दिया गया कि पड़ोसियों की मदद करना एक सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी है। यह लोगों को एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदार और सहयोगी बनने के लिए प्रोत्साहित करता था।
7. एक नाटक लिखिए और उसका मंचन कीजिए जिसमें यह दिखाया जाए कि लोग एक-दूसरे को कौड़ी, कवच (और ऐसी अन्य वस्तुओं) को विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयोग करने के लिए कैसे तैयार कर सके होंगे?
उत्तर: नाटक: “कौड़ी का व्यापार”
पात्र:
- रामु (किसान, जिसके पास गेहूँ है)
- श्याम (मछुआरा, जिसके पास मछलियाँ हैं)
- मीना (हस्तशिल्पी, जिसके पास कौड़ी के गहने हैं)
- गांव का सरपंच
दृश्य: एक गांव का बाजार, जहाँ लोग अपनी-अपनी वस्तुएँ लाए हैं।
संवाद:
रामु: (गेहूँ का बोरा दिखाते हुए) मेरे पास ढेर सारा गेहूँ है, लेकिन मुझे मछलियाँ चाहिए। श्याम, क्या तुम मुझे मछलियाँ दोगे?
श्याम: (हँसते हुए) रामु, मुझे गेहूँ की जरूरत नहीं। मुझे तो मीना के कौड़ी के गहने चाहिए, मेरी बेटी की शादी है।
मीना: (कौड़ी के गहने दिखाते हुए) श्याम, मैं तुम्हारी मछलियाँ ले सकती हूँ, लेकिन मुझे गेहूँ चाहिए, क्योंकि मेरे घर में अनाज खत्म हो गया है।
रामु: (परेशान होकर) अब मैं क्या करूँ? मुझे मछलियाँ चाहिए, लेकिन श्याम को गहने चाहिए और मीना को गेहूँ। यह तो बहुत मुश्किल है!
सरपंच: (बाजार में आते हुए) अरे, आप लोग परेशान क्यों हैं? मैंने सुना है कि पड़ोस के गांव में लोग कौड़ियों को विनिमय के लिए इस्तेमाल करते हैं। सभी लोग कौड़ियों को स्वीकार करते हैं।
रामु: (उत्साहित होकर) यह तो अच्छा विचार है! मीना, तुम मुझे अपने कौड़ी के गहने दो, मैं तुम्हें गेहूँ दूँगा।
मीना: ठीक है, रामु। मैं तुम्हारे गेहूँ के बदले कौड़ियाँ देती हूँ।
श्याम: और मैं तुम्हारी कौड़ियों के बदले मछलियाँ देता हूँ, मीना।
रामु: (खुश होकर) और मैं श्याम को कौड़ियों के बदले मछलियाँ ले लूँगा! अब हमारी जरूरतें पूरी हो गईं।
सरपंच: देखा, कौड़ियों ने आपका विनिमय आसान कर दिया। अब सभी लोग कौड़ियों को स्वीकार करेंगे, और व्यापार आसान हो जाएगा।
सभी: (खुशी से) धन्यवाद, सरपंच जी!
मंचन सुझाव:
- विद्यार्थी बाजार का दृश्य बनाएँ, जहाँ मेज पर गेहूँ, मछलियाँ और कौड़ी के गहने रखे हों।
- पात्रों को रंग-बिरंगे कपड़े पहनाएँ ताकि वे अलग-अलग व्यवसायों को दर्शाएँ।
- कौड़ियों को चमकीले कागज या प्लास्टिक से बनाएँ और विनिमय के दौरान उन्हें दिखाएँ।
- नाटक के अंत में बच्चों को यह समझाने के लिए चर्चा करें कि कैसे कौड़ियों ने वस्तु विनिमय की समस्याओं को हल किया।
8. भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) ही कागजी मुद्रा को छापने व वितरण करने का एकमात्र वैधानिक स्रोत है। नोटों की अवैध छपाई और उनके दुरुपयोग को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने कई सुरक्षा कदम उठाए हैं। पता लगाइए कि ऐसे कुछ उपाय कौन-से हैं और अपनी कक्षा में उनकी चर्चा कीजिए।
उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) नोटों की अवैध छपाई और दुरुपयोग को रोकने के लिए निम्नलिखित सुरक्षा उपाय करता है:
- सुरक्षा धागा: नोटों में एक चमकदार धागा होता है, जो प्रकाश में रंग बदलता है और उस पर ‘RBI’ और ‘भारत’ लिखा होता है।
- वॉटरमार्क: नोटों पर महात्मा गांधी का वॉटरमार्क और नोट का मूल्य अंकित होता है, जो रोशनी में दिखाई देता है।
- माइक्रो-टेक्स्ट: नोटों पर बहुत छोटे अक्षरों में लिखा हुआ टेक्स्ट होता है, जिसे केवल आवर्धक लेंस से पढ़ा जा सकता है।
- उभरे हुए प्रिंट: नोटों पर कुछ हिस्से उभरे हुए होते हैं, जो दृष्टिबाधित लोगों के लिए मूल्य पहचानने में मदद करते हैं।
- फ्लोरोसेंट स्याही: नोटों पर ऐसी स्याही का उपयोग होता है, जो पराबैंगनी (UV) प्रकाश में चमकती है।
- होलोग्राम: कुछ नोटों पर होलोग्राम होता है, जो अलग-अलग कोणों से देखने पर रंग और डिजाइन बदलता है।
कक्षा में चर्चा के लिए सुझाव:
- बच्चों को ₹50, ₹100 या ₹200 के नोट लाने के लिए कहें और इन सुरक्षा विशेषताओं को देखने के लिए प्रोत्साहित करें।
- एक माइक्रोस्कोप या आवर्धक लेंस का उपयोग करके माइक्रो-टेक्स्ट दिखाएँ।
- चर्चा करें कि ये सुरक्षा उपाय नकली नोटों को कैसे रोकते हैं और क्यों यह महत्वपूर्ण है।
9. अपने परिवार के कुछ सदस्यों और स्थानीय दुकानदारों का साक्षात्कार लीजिए और उनसे पूछिए कि वे भुगतान करने या प्राप्त करने में नकद या यू.पी.आई. में किसको वरीयता देंगे और क्यों?
उत्तर: साक्षात्कार के लिए नमूना प्रश्न:
- आप भुगतान करने या प्राप्त करने के लिए नकद या यू.पी.आई. में से किसे पसंद करते हैं?
- आपकी पसंद का कारण क्या है?
- क्या आपको यू.पी.आई. का उपयोग करने में कोई परेशानी होती है?
- नकद और यू.पी.आई. में से कौन अधिक सुविधाजनक और सुरक्षित है?
नमूना उत्तर (साक्षात्कार के आधार पर):
- मम्मी: मैं यू.पी.आई. को पसंद करती हूँ, क्योंकि यह तेज और सुविधाजनक है। मुझे ज्यादा नकद रखने की जरूरत नहीं पड़ती, और फोन से भुगतान आसान है। लेकिन छोटे दुकानदारों के लिए नकद देना पड़ता है, क्योंकि उनके पास यू.पी.आई. की सुविधा नहीं होती।
- पड़ोस की किराना दुकान का दुकानदार: मैं नकद को पसंद करता हूँ, क्योंकि ग्राहक छोटी राशि के लिए नकद देते हैं, और मुझे तुरंत पैसा मिल जाता है। यू.पी.आई. भी ठीक है, लेकिन कभी-कभी इंटरनेट की समस्या होती है।
- पापा: यू.पी.आई. मेरे लिए बेहतर है, क्योंकि मैं अपने सारे लेन-देन का हिसाब मोबाइल पर देख सकता हूँ। यह सुरक्षित भी है, क्योंकि नकद चोरी हो सकता है।
चर्चा के लिए सुझाव:
- बच्चों को अपने परिवार या दुकानदारों से साक्षात्कार लेने के लिए प्रोत्साहित करें।
- साक्षात्कार के परिणामों को कक्षा में साझा करें और तुलना करें कि कितने लोग नकद और कितने लोग यू.पी.आई. पसंद करते हैं।
- यह भी चर्चा करें कि डिजिटल भुगतान का उपयोग बढ़ने से अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है।
महत्वपूर्ण प्रश्न (Page 229)
प्रश्न 1: मुद्रा प्रचलन से पहले विनिमय कैसे होता था?
उत्तर: मुद्रा के प्रचलन से पहले लोग वस्तु विनिमय प्रणाली (बार्टर सिस्टम) का उपयोग करते थे। इस प्रणाली में लोग अपनी वस्तुओं या सेवाओं का आदान-प्रदान दूसरी वस्तुओं या सेवाओं के लिए करते थे। उदाहरण के लिए, अगर किसी के पास अतिरिक्त अनाज था और उसे कपड़े चाहिए थे, तो वह अपने अनाज को किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बदलता था जिसके पास कपड़े थे और उसे अनाज चाहिए था। इस तरह की वस्तुओं में कौड़ी, नमक, चायपत्ती, तंबाकू, कपड़ा, पशुधन (जैसे गाय, बकरी), और बीज आदि शामिल थे। यह प्रणाली आवश्यकताओं के द्विसंयोग (डबल कोइंसिडेंस ऑफ वॉन्ट्स) पर निर्भर थी, जिसमें दोनों पक्षों को एक-दूसरे की वस्तुओं की जरूरत होनी चाहिए।
प्रश्न 2: मुद्रा प्रचलन में क्यों आई?
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली में कई समस्याएँ थीं, जिसके कारण मुद्रा का प्रचलन शुरू हुआ। ये समस्याएँ थीं:
- आवश्यकताओं का द्विसंयोग: दोनों पक्षों को एक-दूसरे की वस्तुओं की जरूरत होना जरूरी था, जो हमेशा संभव नहीं था।
- मूल्य का माप: वस्तुओं के मूल्य की तुलना करना मुश्किल था, जैसे एक बैल के बदले कितने जूते उचित होंगे।
- विभाज्यता: कुछ वस्तुओं (जैसे बैल) को छोटे हिस्सों में बाँटना संभव नहीं था।
- सुवाह्यता: भारी वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना कठिन था।
- टिकाऊपन: कुछ वस्तुएँ जैसे अनाज जल्दी खराब हो सकती थीं।
इन समस्याओं को हल करने के लिए मुद्रा को एक सामान्य विनिमय माध्यम के रूप में अपनाया गया। मुद्रा ने व्यापार को आसान बनाया और मूल्य का सामान्य माप प्रदान किया। यह टिकाऊ, सुवाह्य और विभाज्य थी, जिससे लेन-देन सरल हो गया।
प्रश्न 3: समय के साथ मुद्रा विभिन्न रूपों में कैसे परिवर्तित हुई?
उत्तर:
समय के साथ मुद्रा के रूप में कई बदलाव आए:
- प्राचीन काल: शुरू में लोग कौड़ी, कवच, नमक, पशुधन और पत्थर (जैसे याप द्वीप के राई पत्थर) जैसी वस्तुओं को मुद्रा के रूप में इस्तेमाल करते थे।
- सिक्का प्रणाली: प्राचीन समय में सोने, चाँदी, ताँबे या उनकी मिश्रधातु से सिक्के बनाए गए। इन पर शासकों के चिह्न या आकृतियाँ होती थीं, जैसे चालुक्य सिक्कों पर वराह की प्रतिमा। ये सिक्के व्यापार को आसान बनाने में मदद करते थे।
- कागजी मुद्रा: सिक्कों को ले जाना और संग्रह करना मुश्किल होने पर कागजी नोटों का उपयोग शुरू हुआ। भारत में 18वीं शताब्दी के अंत में कागजी मुद्रा आई, जैसे बैंक ऑफ बंगाल के नोट।
- डिजिटल मुद्रा: आधुनिक समय में तकनीकी प्रगति के साथ डिजिटल मुद्रा का उपयोग बढ़ा। लोग अब क्यू.आर. कोड, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग और यू.पी.आई. जैसे तरीकों से भुगतान करते हैं। यह इलेक्ट्रॉनिक रूप में होता है और इसे छूआ या देखा नहीं जा सकता।
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