Solutions For All Chapters – SST Class 7
1. अध्याय के आरंभ में दिए गए उद्धरण पर विचार करें और समूह में चर्चा करें। अपने निरीक्षणों तथा निष्कर्षों की तुलना करें कि कौटिल्य ने एक राज्य के लिए क्या अनुशंसा की थी? क्या यह आज की परिस्थिति से भिन्न है?
उत्तर:
कौटिल्य ने अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में एक आदर्श राज्य के लिए कई अनुशंसाएँ की थीं। उनके अनुसार, राज्य की राजधानी और सीमांत नगरों को दुर्गों से सुरक्षित करना चाहिए। भूमि ऐसी होनी चाहिए जो लोगों का पोषण कर सके और आपदा के समय भी सहायता प्रदान कर सके। राज्य में रमणीय वातावरण, कृषि योग्य भूमि, खनिज, जंगल, चरागाह, नदियाँ, जलाशय, सुगम सड़कें और जलमार्ग होने चाहिए। साथ ही, राज्य की अर्थव्यवस्था उत्पादक होनी चाहिए।
आज की परिस्थिति में भी ये बातें महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि सुरक्षा, जल संसाधन, और अर्थव्यवस्था। लेकिन आज के समय में तकनीक, उद्योग, और वैश्विक व्यापार भी महत्वपूर्ण हैं, जो कौटिल्य के समय में नहीं थे। इसलिए, कुछ बिंदु आज भी प्रासंगिक हैं, परंतु आधुनिक समय में शासन और विकास के तरीके अधिक जटिल और तकनीकी हो गए हैं।
2. पाठ के अनुसार प्रारंभिक वैदिक समाज में शासकों का चयन कैसे किया जाता था?
उत्तर: प्रारंभिक वैदिक समाज में शासकों का चयन सभा या समिति द्वारा किया जाता था। ये सभाएँ कुल के वरिष्ठजनों की होती थीं, जो महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श करती थीं। राजा को सभा या समिति से परामर्श लेकर निर्णय लेने की अपेक्षा की जाती थी। कुछ ग्रंथों के अनुसार, यदि राजा अयोग्य होता था, तो सभा उसे पदच्युत भी कर सकती थी। कुछ महाजनपदों, जैसे वज्जि और मल्ल में, सभा द्वारा राजा का चयन और निर्णय मतदान के आधार पर होते थे, जो गणतांत्रिक व्यवस्था को दर्शाता है।
प्रश्न 3. कल्पना कीजिए कि आप प्राचीन भारत के इतिहास का अध्ययन करने वाले एक इतिहासकार हैं। महाजनपदों के विषय में अधिक जानकारी हेतु आप कौन-कौन से स्रोतों (पुरातात्विक, साहित्यिक इत्यादि) का उपयोग करेंगे? प्रत्येक स्रोत से आपको क्या जानकारी प्राप्त हो सकती है, वर्णन करें।
उत्तर:
- पुरातात्विक स्रोत: उत्खनन से मिली नगरों की दीवारें, परिखाएँ, सिक्के, मिट्टी के बर्तन, हड्डियाँ, धातु के औज़ार। इनसे हमें नगरों की बनावट, व्यापार और युद्धकला का पता चलता है।
- साहित्यिक स्रोत: वैदिक साहित्य, बौद्ध और जैन ग्रंथ। इनसे हमें शासन प्रणाली, जनपदों के नाम, व्यापार और समाज की जानकारी मिलती है।
- अभिलेख व शिलालेख: राजाओं द्वारा खुदवाए गए आदेश। इनसे राजाओं के कार्य और नीति का ज्ञान मिलता है।
4. प्रथम सहस्राब्दी सा.सं.पू. में नगरीकरण हेतु लौह धातु-विज्ञान का विकास इतना महत्वपूर्ण क्यों था? उत्तर देने हेतु आप पाठ में दिए गए तथ्यों के साथ-साथ अपनी जानकारी या कल्पना का भी उपयोग कर सकते हैं।
उत्तर:
प्रथम सहस्राब्दी सा.सं.पू. में लौह धातु-विज्ञान का विकास नगरीकरण के लिएK लिए बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि:
- कृषि में सुधार: लोहे के उपकरण, जैसे हल और कुदाल, कांस्य की तुलना में अधिक मजबूत और प्रभावी थे। इससे जंगल साफ करने और कृषि कार्यों में आसानी हुई, जिससे अधिक खाद्यान्न उत्पादन हुआ। इससे जनसंख्या बढ़ी और नगरों का विकास हुआ।
- युद्धकला: लोहे के हथियार, जैसे तलवार, भाले, और तीर, हल्के और तेज थे। इससे महाजनपदों की सेनाएँ अधिक शक्तिशाली बनीं, जिससे राज्य सुरक्षित रहे और विस्तार कर सके।
- निर्माण कार्य: लोहे के औजारों से मजबूत दुर्ग, प्राचीर, और भवन बनाने में मदद मिली, जो नगरों की सुरक्षा और विकास के लिए जरूरी थे।
- व्यापार और अर्थव्यवस्था: लौह उपकरणों से शिल्प और निर्माण कार्य बेहतर हुए, जिससे वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा और व्यापार को बढ़ावा मिला। इससे नगरों में बाजार और आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ीं।
इस प्रकार, लौह धातु-विज्ञान ने कृषि, युद्ध, निर्माण, और व्यापार को बढ़ावा देकर द्वितीय नगरीकरण को गति प्रदान की।
महत्वपूर्ण प्रश्न (Page 67)
1. भारत में ‘द्वितीय नगरीकरण’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: ‘द्वितीय नगरीकरण’ से अभिप्राय भारत में प्रथम सहस्राब्दी सा.सं.पू. (लगभग 1000 सा.सं.पू. से शुरू) में उत्तर भारत, विशेष रूप से गंगा के मैदानी भागों, सिंधु घाटी और आसपास के क्षेत्रों में नगरों के पुनर्जनन और विकास से है। प्रथम नगरीकरण (हड़प्पा सभ्यता) के पतन के बाद, भारत में नगरीय जीवन लगभग लुप्त हो गया था। लेकिन प्रथम सहस्राब्दी में, गंगा के उपजाऊ मैदानों, लौह धातु के उपयोग, व्यापार और वाणिज्य के विकास के कारण नए नगरों का उदय हुआ। इसे ‘द्वितीय नगरीकरण’ कहा जाता है, जो आज तक भारत के नगरीय विकास का आधार बना हुआ है। पुरातात्विक उत्खनन और प्राचीन साहित्य (जैसे वैदिक, बौद्ध और जैन ग्रंथ) इस नगरीकरण के साक्ष्य प्रदान करते हैं।
2. जनपदों और महाजनपदों का भारत के प्रारंभिक इतिहास में क्या महत्व है?
उत्तर:
जनपदों और महाजनपदों का भारत के प्रारंभिक इतिहास में बहुत महत्व है क्योंकि:
- संगठित समाज का विकास: जनपद छोटे क्षेत्रीय समुदाय थे जो एक राजा या शासक द्वारा शासित होते थे। ये बाद में बड़े और शक्तिशाली महाजनपदों में विकसित हुए, जिन्होंने संगठित राजकीय व्यवस्था की नींव रखी।
- नगरीकरण की शुरुआत: महाजनपदों के उदय के साथ द्वितीय नगरीकरण शुरू हुआ, जिसने नगरों, व्यापार, और शिल्पकला को बढ़ावा दिया।
- कृषि और व्यापार का विस्तार: गंगा के उपजाऊ मैदानों और लौह उपकरणों के उपयोग से कृषि उत्पादन बढ़ा, जिसने अर्थव्यवस्था को मजबूत किया। व्यापारिक मार्गों ने जनपदों और महाजनपदों को जोड़ा, जिससे वाणिज्य फला-फूला।
- सांस्कृतिक विकास: महाजनपदों के काल में वैदिक, बौद्ध और जैन विचारधाराओं का उदय हुआ, जिन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म को समृद्ध किया।
- शासन प्रणाली की नींव: इनके द्वारा राजतंत्र और गणतांत्रिक शासन प्रणालियों का विकास हुआ, जो भारत के राजनीतिक इतिहास का आधार बना।
3. इन जनपदों और महाजनपदों ने किस प्रकार की शासन प्रणाली का विकास किया?
उत्तर:
जनपदों और महाजनपदों ने दो प्रकार की शासन प्रणालियों का विकास किया:
राजतंत्रात्मक शासन: अधिकांश महाजनपदों, जैसे मगध, कोसल, वत्स और अवंति में राजतंत्र था। इसमें राजा सर्वोच्च शासक होता था, जो मंत्रियों और सभा-समिति के परामर्श से शासन करता था। राजा का पद सामान्यतः वंशानुगत होता था। राजा के मुख्य कार्य थे- कर संग्रह, विधि-व्यवस्था बनाए रखना, दुर्ग निर्माण और युद्ध करना।
गणतांत्रिक शासन: कुछ महाजनपद, जैसे वज्जि और मल्ल, में गणतांत्रिक शासन प्रणाली थी। इसमें सभा या समिति को अधिक शक्ति प्राप्त थी, जो महत्वपूर्ण निर्णय लेती थी। यहाँ राजा का चयन भी सभा द्वारा किया जाता था, और सभी निर्णय विचार-विमर्श और मतदान के आधार पर लिए जाते थे। इसे प्रारंभिक गणराज्य कहा जाता है, जो विश्व की पहली गणतांत्रिक प्रणालियों में से एक थी।
ये शासन प्रणालियाँ भारत के प्रारंभिक इतिहास में संगठित और व्यवस्थित समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण थीं।
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