Solutions For All Chapters – SST Class 7
1. मौर्योत्तर काल को पुनर्गठन का काल क्यों कहा जाता है?
उत्तर: मौर्योत्तर काल को ‘पुनर्गठन का काल’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में कई नए और छोटे-बड़े राज्य उभरे। इन राज्यों ने मौर्य साम्राज्य के क्षेत्रों का पुनर्गठन किया और सत्ता के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा की। इस दौरान राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हुए। नए राजवंशों जैसे शुंग, सातवाहन, चेदि, चेर, चोल और पांड्य ने अपने-अपने क्षेत्रों में शासन स्थापित किया। साथ ही, विदेशी आक्रमणकारियों जैसे इंडो-ग्रीक और कुषाणों ने भी भारतीय संस्कृति के साथ समन्वय स्थापित किया, जिससे कला, व्यापार और साहित्य में नई शैलियों का विकास हुआ। इस प्रकार, इस काल में नए राज्यों और सांस्कृतिक परंपराओं का पुनर्गठन हुआ, इसलिए इसे ‘पुनर्गठन का काल’ कहा जाता है।
2. संगम साहित्य पर 150 शब्दों में एक लेख लिखिए।
उत्तर: संगम साहित्य दक्षिण भारत का प्राचीनतम तमिल साहित्य है, जो दूसरी या तीसरी शताब्दी सा.सं.पू. से तीसरी शताब्दी सा.सं. तक के काल में रचा गया। यह साहित्य चेर, चोल और पांड्य राजवंशों के समय में कवियों की सभाओं (संगम) में संकलित हुआ, इसलिए इसे ‘संगम साहित्य’ कहा जाता है। इसमें काव्य-संग्रह शामिल हैं, जो प्रेम, वीरता, उदारता जैसे व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों को सरल और सुंदर भाषा में व्यक्त करते हैं। ‘सिलप्पदिकारम्’ जैसे महाकाव्य इस साहित्य का हिस्सा हैं, जो कण्णगी की कथा के माध्यम से न्याय और राजधर्म की महत्ता दर्शाते हैं। संगम साहित्य तत्कालीन समाज, संस्कृति, व्यापार और राजनीति को समझने का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दक्षिण भारत की समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाता है, जो आज भी इतिहासकारों और विद्वानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
3. इस अध्याय में उल्लिखित किन शासकों ने अपनी उपाधि में माता का नाम सम्मिलित किया। उन्होंने ऐसा क्यों किया?
उत्तर: इस अध्याय में सातवाहन वंश के शासक गौतमीपुत्र शातकर्णी का उल्लेख है, जिन्होंने अपनी उपाधि में अपनी माता गौतमी बलश्री का नाम शामिल किया। सातवाहन परंपरा के अनुसार, राजकुमारों के नाम उनकी माताओं के नाम पर रखे जाते थे। ऐसा करने का कारण था मातृसत्तात्मक प्रभाव को महत्व देना और माता के सम्मान को दर्शाना। गौतमी बलश्री एक शक्तिशाली रानी थीं, जिन्होंने बौद्ध भिक्षुओं को भूमि दान दी और नासिक में महत्वपूर्ण शिलालेख उत्कीर्ण करवाया। यह परंपरा सातवाहन समाज में माताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है और यह भी दिखाती है कि शासकों के लिए अपनी माता के योगदान को मान्यता देना गर्व की बात थी।
4. इस अध्याय में वर्णित किसी एक राज्य जो आपको रोचक लगता है, के विषय में 250 शब्दों का एक लेख लिखिए। आपने उस राज्य का चयन क्यों किया? अपना लेख कक्षा में प्रस्तुत कीजिए और यह जानने का प्रयास कीजिए कि आपके सहपाठियों ने कौन-से राज्यों का सर्वाधिक चयन किया है।
उत्तर: सातवाहन राज्य
सातवाहन राज्य मौर्योत्तर काल का एक शक्तिशाली और रोचक राज्य था, जो दूसरी शताब्दी सा.सं.पू. से दक्षिण भारत, विशेष रूप से वर्तमान आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में फैला था। मैंने इस राज्य का चयन इसलिए किया क्योंकि यह व्यापार, कला और संस्कृति के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध था। सातवाहनों ने समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया, जिसके साक्ष्य उनके सिक्कों पर अंकित जहाजों की छवियों से मिलते हैं। इन सिक्कों से पता चलता है कि वे रोमन साम्राज्य तक मसाले, वस्त्र और मोती जैसे सामान निर्यात करते थे। उनकी राजधानी अमरावती और प्रतिष्ठान (पैठन) जैसे नगर व्यापारिक केंद्र थे।
सातवाहन शासकों ने कला और वास्तुकला को भी प्रोत्साहन दिया। नानेघाट और कार्ले गुफाएँ उनके शासनकाल की शैलकृत कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ये गुफाएँ बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाई गई थीं, जो उनकी धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाती हैं। गौतमीपुत्र शातकर्णी जैसे शासकों ने वैदिक, जैन और बौद्ध परंपराओं को समर्थन दिया। उनकी आर्थिक समृद्धि कृष्णा-गोदावरी घाटियों की उर्वर भूमि से आई, जिसने कृषि और व्यापार को बढ़ावा दिया। सातवाहन साहित्य और संस्कृति के संरक्षक थे, जिसने दक्षिण भारत की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया। यह राज्य इसलिए भी रोचक है क्योंकि इसने भारतीय और विदेशी संस्कृतियों के बीच संवाद को बढ़ावा दिया। मैं अपने सहपाठियों से यह जानना चाहूँगा कि उन्होंने किन राज्यों को चुना और क्यों।
5. कल्पना कीजिए कि आपको एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का अवसर प्राप्त हुआ है। आप कौन-सा राजचिह्न चुनेंगे और क्यों? आप एक शासक के रूप में कौन-सी उपाधि धारण करेंगे? अपने राज्य के विषय में एक लेख लिखिए जिसमें राज्य के मूल्य, नियमावली एवं विशिष्टताएँ सम्मिलित हों।
उत्तर: मेरा स्वतंत्र राज्य: समृद्धि
यदि मुझे एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का अवसर मिले, तो मैं अपने राज्य का नाम ‘समृद्धि’ रखूँगा। मेरा राजचिह्न एक खुले कमल का फूल होगा, जो शांति, ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक है। कमल की शुद्धता और सुंदरता मेरे राज्य के मूल्यों को दर्शाएगी, जो सभी के लिए समानता और कल्याण पर आधारित होंगे।
मैं एक शासक के रूप में ‘जनसेवक‘ की उपाधि धारण करूँगा, क्योंकि मेरा उद्देश्य प्रजा की सेवा करना और उनके कल्याण को प्राथमिकता देना होगा। मेरे राज्य के प्रमुख मूल्य होंगे:
- समानता: सभी धर्मों, जातियों और समुदायों को समान सम्मान।
- शिक्षा: प्रत्येक बच्चे को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा।
- पर्यावरण संरक्षण: प्रकृति की रक्षा और हरित ऊर्जा का उपयोग।
- न्याय: सभी के लिए निष्पक्ष कानून और त्वरित न्याय प्रणाली।
नियमावली:
- सभी नागरिकों को स्वच्छ जल, भोजन और आवास का अधिकार।
- व्यापार और कला को प्रोत्साहन, विशेष रूप से स्थानीय हस्तशिल्प को।
- युद्ध के बजाय शांतिपूर्ण वार्ता से विवादों का समाधान।
विशिष्टताएँ: मेरा राज्य शिक्षा और कला का केंद्र होगा। यहाँ वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव आयोजित होंगे, जहाँ विभिन्न संस्कृतियों का प्रदर्शन होगा। नदियों और जंगलों की सुरक्षा के लिए विशेष योजनाएँ होंगी। मेरे राज्य में एक विशाल पुस्तकालय होगा, जो सभी के लिए खुला रहेगा। यह राज्य सांस्कृतिक समन्वय और आर्थिक समृद्धि का प्रतीक होगा।
6. आपने मौर्योत्तर काल के वास्तु कलात्मक विकास के विषय में पढ़ा है। भारतीय उपमहाद्वीप के एक रेखांकित मानचित्र पर इस अध्याय में उल्लिखित कुछ स्थापत्य कलाओं के स्थान को चिह्नित कीजिए।
उत्तर: मौर्योत्तर काल के वास्तु कलात्मक विकास के प्रमुख स्थानों को भारतीय उपमहाद्वीप के रेखांकित मानचित्र पर निम्नलिखित रूप से चिह्नित किया जा सकता है:
- भरहुत स्तूप (मध्य प्रदेश): शुंग काल की कला का उत्कृष्ट उदाहरण, जिसमें बौद्ध कथाओं और वैदिकाओं की उत्कीर्ण शिल्पकला है।
- नानेघाट गुफाएँ (महाराष्ट्र): सातवाहन काल की गुफाएँ, जो व्यापार मार्ग पर विश्राम स्थल के रूप में उपयोगी थीं।
- कार्ले गुफाएँ (महाराष्ट्र): सातवाहन काल में बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाई गईं, जिनमें सुंदर स्तंभ और स्तूप हैं।
- पीतलखोरा गुफाएँ (महाराष्ट्र): सातवाहन काल की यक्ष मूर्ति यहाँ प्राप्त हुई।
- उदयगिरि-खंडगिरि गुफाएँ (भुवनेश्वर, ओडिशा): चेदि वंश के राजा खारवेल के समय जैन मुनियों के लिए बनाई गईं, जिनमें हाथीगुंफा अभिलेख प्रसिद्ध है।
- अमरावती (आंध्र प्रदेश): सातवाहन काल की राजधानी, जो व्यापार और कला का केंद्र थी।
महत्वपूर्ण प्रश्न (Page 117)
1. मौर्योत्तर काल को कभी-कभी ‘पुनर्गठन का काल’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर: मौर्योत्तर काल को ‘पुनर्गठन का काल’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि मौर्य साम्राज्य के विघटन के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में कई नए और छोटे-बड़े राज्य उभरे। मौर्य साम्राज्य के अंत (लगभग 185 सा.सं.पू.) के बाद, इसके अधीन रहे क्षेत्रों का पुनर्गठन हुआ और शुंग, सातवाहन, चेदि, चेर, चोल, पांड्य जैसे राजवंशों ने स्वतंत्र रूप से शासन शुरू किया। ये राज्य सत्ता के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करते थे, जिससे राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आया। साथ ही, इस काल में बाहरी आक्रमणों (जैसे इंडो-ग्रीक, शक, कुषाण) के कारण भी क्षेत्रीय सीमाओं और शासन व्यवस्था में परिवर्तन हुआ। इस प्रकार, यह काल पुराने साम्राज्य के टूटने और नए राज्यों के गठन का समय था, जिसके कारण इसे ‘पुनर्गठन का काल’ कहा जाता है।
2. वह कौन-से मूल्य और सिद्धांत थे जिन्होंने इस काल के सम्राटों का मार्गदर्शन किया?
उत्तर:
मौर्योत्तर काल के सम्राटों का मार्गदर्शन करने वाले मूल्य और सिद्धांत निम्नलिखित थे:
- धार्मिक सहिष्णुता और संरक्षण: शासकों ने विभिन्न धर्मों और दर्शनों, जैसे वैदिक, बौद्ध, जैन और अन्य मतों का संरक्षण किया। उदाहरण के लिए, सातवाहन शासकों ने वैदिक विद्वानों, जैन मुनियों और बौद्ध भिक्षुओं को कर-मुक्त भूमि प्रदान की।
- न्याय और राजधर्म: संगम साहित्य में वर्णित ‘सिलप्पदिकारम्’ जैसे काव्य राजधर्म और न्याय के महत्व को दर्शाते हैं।
- सांस्कृतिक और कला संरक्षण: शासकों ने कला, साहित्य और वास्तुकला को बढ़ावा दिया, जैसे शुंगों द्वारा भरहुत स्तूप का सौंदर्यीकरण और कुषाणों द्वारा गांधार व मथुरा कला शैली का विकास।
- आर्थिक समृद्धि और व्यापार: सातवाहन और चेर शासकों ने समुद्री व्यापार को प्रोत्साहित किया, जिससे आर्थिक स्थिरता बनी।
- शक्ति और वैदिक परंपराएँ: शुंगों और सातवाहनों द्वारा अश्वमेध यज्ञ जैसे वैदिक अनुष्ठानों का आयोजन उनकी शक्ति और वैदिक परंपराओं के प्रति निष्ठा को दर्शाता है।
ये मूल्य शासकों को जनकल्याण, सांस्कृतिक विकास और शासन में मार्गदर्शन प्रदान करते थे।
3. विदेशी आक्रमणकारियों ने किस प्रकार भारतीय समाज में समाहित होकर सांस्कृतिक संगम में योगदान दिया?
उत्तर:
विदेशी आक्रमणकारी, जैसे इंडो-ग्रीक, शक और कुषाण, भारतीय समाज में समाहित होकर सांस्कृतिक संगम में महत्वपूर्ण योगदान दिए। उनके योगदान निम्नलिखित हैं:
- कला में मिश्रण: इंडो-ग्रीक और कुषाणों ने गांधार कला शैली को विकसित किया, जिसमें ग्रीक-रोमन और भारतीय तत्वों का समन्वय था। उदाहरण के लिए, बुद्ध की मूर्तियों में ग्रीक शैली के वस्त्र और भारतीय आध्यात्मिकता का मिश्रण दिखता है।
- मुद्राओं का विकास: इंडो-ग्रीक और कुषाण सिक्कों पर भारतीय देवी-देवताओं (जैसे वासुदेव-कृष्ण, लक्ष्मी) के साथ ग्रीक देवताओं के चित्र अंकित किए गए, जो सांस्कृतिक मेल को दर्शाते हैं।
- धार्मिक सहिष्णुता: इंडो-ग्रीक राजदूत हेलियोडोरस ने विदिशा में वासुदेव की स्तुति में स्तंभ बनवाया, जो भारतीय धर्मों के प्रति उनके सम्मान को दर्शाता है। कुषाण शासक कनिष्क ने बुद्ध और शिव जैसे देवताओं को अपने सिक्कों पर अंकित किया।
- व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: कुषाणों ने रेशम मार्ग पर नियंत्रण स्थापित कर भारत को मध्य एशिया और पश्चिमी देशों से जोड़ा, जिससे विचारों, कला और संस्कृति का आदान-प्रदान बढ़ा।
- लिपि और भाषा: ब्राह्मी और ग्रीक लिपि का उपयोग सिक्कों और अभिलेखों में हुआ, जिसने सांस्कृतिक एकीकरण को बढ़ावा दिया।
इस प्रकार, विदेशी आक्रमणकारी भारतीय संस्कृति से प्रभावित हुए और अपने तत्वों को मिलाकर एक समृद्ध सांस्कृतिक संगम का निर्माण किया।
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