Solutions For All Chapters – SST Class 7
1. प्रसिद्ध पर्यावरणविद डेविड सुजुकी के निम्नलिखित वाक्य पढ़ें-
“हम जिस दृष्टि से विश्व को देखते हैं, उसी के अनुसार उसके साथ व्यवहार करते हैं। अगर पर्वत एक देवता है, न कि खनिज का ढेर; अगर नदियाँ पृथ्वी की शिराएँ हैं, न कि केवल सिंचाई का स्रोत; अगर वन पावन निकुंज है, न कि केवल इमारती लकड़ियों का ढेर; अगर अन्य प्रजातियाँ हमारे संबंधी हैं, न कि केवल साधनमात्र या अगर पृथ्वी हमारी माता है, न कि केवल संसाधन; तब हम इन सभी के साथ अत्यंत आदर के साथ व्यवहार करते हैं। अत: यह विश्व को एक अलग परिप्रेक्ष्य में देखने की चुनौती है।”
इस पर छोटे समूह में चर्चा कीजिए। आप उक्त वाक्यों से क्या समझते हैं? इससे हमारे चारों ओर विद्यमान वायु, जल, भूमि, वृक्ष तथा पर्वत के प्रति हमारे व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: डेविड सुजुकी के वाक्य हमें यह समझाते हैं कि हमें प्रकृति को केवल संसाधन के रूप में नहीं, बल्कि एक पवित्र और जीवंत इकाई के रूप में देखना चाहिए। अगर हम पर्वतों, नदियों, वनों और जीव-जंतुओं को पावन और अपने परिवार के सदस्यों की तरह मानें, तो हम उनके साथ सम्मान और प्रेम से व्यवहार करेंगे। इससे हम प्रकृति का दोहन कम करेंगे और उसकी रक्षा करेंगे। उदाहरण के लिए, अगर हम नदियों को माता मानें, तो हम उन्हें प्रदूषित नहीं करेंगे। यह दृष्टिकोण हमें पर्यावरण संरक्षण की ओर प्रेरित करता है, जिससे वायु, जल, भूमि और वृक्षों का सम्मान बढ़ता है और हम उन्हें बचाने के लिए प्रयास करते हैं।
2. आपने क्षेत्र के पावन स्थलों की सूची बनाइए। पता लगाइए कि ये स्थल पावन क्यों माने जाते हैं? क्या इनसे जुड़ी कोई कहानियाँ हैं? इस विषय में 150 शब्दों में एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर: मेरे क्षेत्र के पावन स्थल
मेरे क्षेत्र में कई पावन स्थल हैं, जो धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं। उदाहरण के लिए, गंगा नदी को पवित्र माना जाता है क्योंकि यह हिंदू धर्म में माता के रूप में पूजी जाती है। ऐसा माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं। दूसरा, केदारनाथ मंदिर (उत्तराखंड) एक पावन स्थल है, जो भगवान शिव को समर्पित है। कथा के अनुसार, पांडवों ने यहाँ भगवान शिव की पूजा की थी। तीसरा, हनुमान मंदिर (स्थानीय) भी पावन है, जहाँ लोग भक्ति और शक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। इन स्थलों से जुड़ी कहानियाँ लोगों की आस्था को मजबूत करती हैं। जैसे, गंगा के अवतरण की कथा भगीरथ से जुड़ी है। ये स्थान न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक एकता को भी बढ़ावा देते हैं। तीर्थयात्रियों की भीड़ यहाँ आती है, जिससे स्थानीय संस्कृति और अर्थव्यवस्था को बल मिलता है।
3. आपके विचार में प्राकृतिक तत्व, जैसे- नदी, पर्वत और वन आदि लोगों के लिए पावन क्यों माने जाते हैं? वे हमारे जीवन में किस प्रकार योगदान देते हैं?
उत्तर: प्राकृतिक तत्व जैसे नदी, पर्वत और वन पावन माने जाते हैं क्योंकि भारतीय संस्कृति में इन्हें ईश्वर का रूप या निवास स्थान माना जाता है। नदियाँ, जैसे गंगा और यमुना, जीवनदायिनी हैं और इन्हें माता के रूप में पूजा जाता है। पर्वत, जैसे हिमालय, देवताओं का निवास माने जाते हैं। वन और वृक्ष, जैसे पीपल, आध्यात्मिक और औषधीय महत्व रखते हैं। ये तत्व हमारे जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। नदियाँ पीने का पानी, सिंचाई और आजीविका प्रदान करती हैं। पर्वत जलवायु को नियंत्रित करते हैं और तीर्थ स्थल के रूप में आध्यात्मिक शांति देते हैं। वन ऑक्सीजन, औषधियाँ और जैव-विविधता प्रदान करते हैं। ये सभी प्रकृति और मानव के बीच संतुलन बनाए रखते हैं और हमें पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा देते हैं।
4. लोग तीर्थ या अन्य पावन स्थलों की यात्रा क्यों करते हैं?
उत्तर: लोग तीर्थ या पावन स्थलों की यात्रा धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कारणों से करते हैं। वे इन स्थलों पर जाकर प्रार्थना, पूजा और ध्यान करते हैं ताकि मन की शांति और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करें। तीर्थयात्रा से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास होता है। उदाहरण के लिए, गंगा में स्नान करने से पवित्रता मिलती है। इसके अलावा, ये यात्राएँ लोगों को विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं से जोड़ती हैं, जिससे सांस्कृतिक एकता बढ़ती है। कुछ लोग व्यापार या सामाजिक मेल-जोल के लिए भी तीर्थयात्रा करते हैं। यह यात्राएँ शारीरिक और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण होती हैं, जो आत्म-संयम और धैर्य सिखाती हैं।
5. प्राचीन तीर्थयात्रा मार्गों ने उस समय किस प्रकार व्यापार को प्रोत्साहित किया? आपके अनुसार ये पावन स्थल उन क्षेत्रों के आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक बने?
उत्तर: प्राचीन तीर्थयात्रा मार्गों ने व्यापार को प्रोत्साहित किया क्योंकि ये मार्ग तीर्थयात्रियों और व्यापारियों दोनों के लिए साझा थे। तीर्थयात्री अपनी यात्रा के दौरान स्थानीय व्यापारियों से भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुएँ खरीदते थे। उदाहरण के लिए, उत्तरापथ और दक्षिणापथ जैसे मार्गों पर रत्न, मसाले, कपास और चंदन का व्यापार होता था। तीर्थ स्थलों पर मेलों और उत्सवों, जैसे कुंभ मेला, में व्यापारी अपनी वस्तुएँ बेचने आते थे। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता था। पावन स्थल आर्थिक विकास में सहायक बने क्योंकि ये यात्रियों को आकर्षित करते थे, जिससे परिवहन, आवास और स्थानीय हस्तशिल्प को बढ़ावा मिलता था। इस प्रकार, तीर्थयात्रा और व्यापार ने एक-दूसरे को समृद्ध किया।
6. पावन स्थल किस प्रकार वहाँ के लोगों की संस्कृति और परंपरा को प्रभावित करते हैं?
उत्तर: पावन स्थल लोगों की संस्कृति और परंपरा को गहराई से प्रभावित करते हैं। ये स्थान धार्मिक विश्वासों और आध्यात्मिकता का केंद्र होते हैं, जो लोगों को एकजुट करते हैं। उदाहरण के लिए, कुंभ मेला और पंढरपुर वारी जैसी तीर्थयात्राएँ लोगों को सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से जोड़ती हैं। इन स्थलों पर होने वाले उत्सव, जैसे नृत्य, संगीत और कथाएँ, स्थानीय परंपराओं को जीवंत रखते हैं। पावन स्थलों से जुड़ी कहानियाँ, जैसे शक्तिपीठों की कथा, लोगों की आस्था और संस्कृति को मजबूत करती हैं। ये स्थान विभिन्न भाषाओं, खान-पान और रीति-रिवाजों को एक मंच पर लाते हैं, जिससे सांस्कृतिक एकता और समन्वय बढ़ता है। साथ ही, ये पर्यावरण संरक्षण की भावना को भी प्रोत्साहित करते हैं।
7. भारत के विविध प्रकार के पावन स्थलों में से अपनी रुचि के अनुसार किन्हीं दो का चयन कीजिए तथा उनका महत्व बताते हुए एक परियोजना बनाइए।
उत्तर: परियोजना: भारत के दो पावन स्थल
1. बोधगया (बिहार): बोधगया बौद्ध धर्म का प्रमुख पावन स्थल है। यहाँ महात्मा बुद्ध ने पीपल वृक्ष (बोधि वृक्ष) के नीचे ध्यान करके निर्वाण प्राप्त किया था। महाबोधि मंदिर और बोधि वृक्ष यहाँ के मुख्य आकर्षण हैं। यह स्थान बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहाँ प्रतिवर्ष लाखों लोग आते हैं। इसका सांस्कृतिक महत्व यह है कि यह शांति, ध्यान और आत्म-जागरूकता का प्रतीक है। यहाँ की यात्रा बौद्ध धर्म के अनुयायियों को आध्यात्मिक प्रेरणा देती है।
2. सबरीमाला (केरल): सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है और यह हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहाँ की यात्रा कठिन पहाड़ी मार्ग से होकर की जाती है, जो आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक है। प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। यह स्थान एकता और भक्ति का प्रतीक है, जो विभिन्न समुदायों को जोड़ता है। यह स्थानीय संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा देता है।
महत्व: ये दोनों स्थान भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को दर्शाते हैं। ये तीर्थयात्री, व्यापार और संस्कृति को एकजुट करते हैं, जिससे सामाजिक और आर्थिक विकास को बल मिलता है।
8. तीर्थयात्राएँ किस प्रकार दोहरा महत्व रखती हैं?
उत्तर: तीर्थयात्राएँ दोहरा महत्व रखती हैं क्योंकि ये धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों उद्देश्यों को पूरा करती हैं। धार्मिक महत्व: तीर्थयात्राएँ लोगों को आध्यात्मिक शांति, पापों से मुक्ति और ईश्वर के प्रति भक्ति प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए, गंगा स्नान या चार धाम यात्रा मोक्ष की प्राप्ति से जुड़ी है। सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व: ये यात्राएँ विभिन्न क्षेत्रों, भाषाओं और परंपराओं के लोगों को एक मंच पर लाती हैं, जिससे सांस्कृतिक एकता बढ़ती है। तीर्थयात्रियों और व्यापारियों का मेल-मिलाप स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है। साथ ही, ये यात्राएँ पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समन्वय को भी प्रोत्साहित करती हैं। इस प्रकार, तीर्थयात्राएँ व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्न (Page 167)
1. ‘पावनता’ क्या है?
उत्तर: पावनता का अर्थ है वह धार्मिक और आध्यात्मिक भावना जो किसी स्थान, वस्तु या प्राकृतिक तत्व को पवित्र और श्रद्धा के योग्य बनाती है। यह उन स्थानों या चीजों से जुड़ी होती है जो लोगों में गहरे विश्वास, उच्च विचार और श्रद्धा की भावना जगाते हैं। उदाहरण के लिए, नदियाँ, पर्वत, वृक्ष या तीर्थ स्थल पावन माने जाते हैं क्योंकि वे लोगों को आध्यात्मिक और धार्मिक रूप से प्रेरित करते हैं।
2. भूमि कैसे पावन हो जाती है?
उत्तर: भूमि तब पावन हो जाती है जब वह किसी धार्मिक या आध्यात्मिक घटना, महान व्यक्ति या देवी-देवता से जुड़ जाती है। जैसे, बौद्ध धर्म में बोधगया पावन है क्योंकि वहाँ महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। हिंदू धर्म में, शक्तिपीठ वहाँ स्थापित हुए जहाँ माता सती के अंग गिरे। इसके अलावा, प्रकृति के तत्व जैसे नदियाँ, पर्वत और वृक्ष भी पावन माने जाते हैं क्योंकि लोग उनमें दैवीय शक्ति देखते हैं।
3. पावन स्थल और तीर्थ स्थल का अंतर्संबंध किस प्रकार मानव जीवन और संस्कृति से जुड़ जाता है?
उत्तर: पावन स्थल और तीर्थ स्थल मानव जीवन और संस्कृति को गहराई से प्रभावित करते हैं। ये स्थान लोगों को धार्मिक और आध्यात्मिक प्रेरणा देते हैं, जिससे उनकी आस्था मज़बूत होती है। तीर्थयात्राएँ लोगों को एक-दूसरे से जोड़ती हैं और विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं को समझने का अवसर देती हैं। इससे सामाजिक एकता बढ़ती है। साथ ही, ये स्थान व्यापार, कला और साहित्य को भी बढ़ावा देते हैं, जिससे संस्कृति समृद्ध होती है।
4. पावन भूगोल ने भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक एकीकरण में किस प्रकार की भूमिका निभाई है?
उत्तर: पावन भूगोल ने भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। तीर्थयात्राओं के माध्यम से लोग देश के विभिन्न हिस्सों में जाते हैं, जिससे वे अलग-अलग भाषाओं, रीति-रिवाजों और खान-पान से परिचित होते हैं। चार धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग और 51 शक्तिपीठ जैसे तीर्थ स्थलों का जाल पूरे भारत को जोड़ता है। इससे लोग एक-दूसरे की संस्कृति को समझते हैं और एक साझा सांस्कृतिक पहचान बनती है, जो भारत को एकजुट करती है।
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