युद्ध-गीता
पाठ का परिचय
- रामचरितमानस में तुलसीदास ने श्रीराम के जीवन और उनके गुणों को केंद्र में रखकर यह रचना लिखी है।
- यह पाठ लंका युद्ध के समय का है, जब रावण अपनी विशाल सेना के साथ श्रीराम से युद्ध करने आता है।
- विभीषण रावण की विशाल सेना और साधनों को देखकर डर जाते हैं और सोचते हैं कि बिना साधनों के श्रीराम रावण को कैसे हरा पाएंगे।
- श्रीराम विभीषण की शंकाओं का समाधान करते हैं और धर्मरथ के रूपक के माध्यम से बताते हैं कि साहस, धैर्य, सत्य, शील, और अन्य सद्गुणों से हर शत्रु को जीता जा सकता है।
- यह पाठ श्रीमद्भगवद्गीता से प्रेरित है, जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के समय प्रेरित किया था।
मुख्य शिक्षण बिंदु
1. नैतिकता और सदाचार: यह पाठ हमें साहस, धैर्य, सत्य, शील, दया, और परोपकार जैसे गुणों को अपनाने की प्रेरणा देता है।
2. भाषा और साहित्य:
- उपसर्ग, विपरीतार्थी शब्द, और विराम चिह्नों का प्रयोग।
- समास और अलंकार (अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक) सीखना।
3. रस: युद्ध वर्णन में वीर रस और धर्मरथ के वर्णन में शांत रस की अनुभूति होती है।
4. काव्य सौंदर्य: राक्षस सेना का भयंकर चित्रण और वानर-भालुओं की वीरता का सुंदर वर्णन।
काव्यांश का सार
राक्षस सेना का वर्णन: रावण की सेना बहुत विशाल और भयानक थी। उसमें रथ, घोड़े, हाथी, और विभिन्न प्रकार के हथियार थे। सेना के चलने से धूल उड़ती थी, धरती कांपती थी, और प्रलय जैसा दृश्य बनता था।
वानर और भालू की सेना: श्रीराम की सेना में वानर और भालू उत्साह और वीरता से भरे थे। वे नख, दांत, और पेड़-पहाड़ों को हथियार बनाकर युद्ध के लिए तैयार थे।
विभीषण का डर: रावण के रथ और सेना को देखकर विभीषण डर जाते हैं और श्रीराम से पूछते हैं कि बिना रथ और साधनों के वे रावण को कैसे हराएंगे।
श्रीराम का धर्मरथ: श्रीराम बताते हैं कि सच्चा रथ वह है जो धर्म, साहस, धैर्य, और अन्य सद्गुणों से बना हो। इस रथ से हर शत्रु को जीता जा सकता है।
अलंकार
अनुप्रास: एक ही वर्ण की बार-बार आवृत्ति।
- उदाहरण: “सौरज धीरज तेहि रथ चाका।” (ज वर्ण की आवृत्ति)
उपमा: दो चीजों की समानता बताना।
- उदाहरण: “धाए बिसाल कराल मर्कट भालु काल समान ते।” (वानर-भालुओं की तुलना काल से)
उत्प्रेक्षा: समानता की संभावना दिखाना।
- उदाहरण: “मानहुँ सपच्छ उड़ाहि भूधर वृंद नाना बान ते।” (पहाड़ उड़ते हुए प्रतीत होते हैं)
रूपक: एक वस्तु को दूसरी वस्तु के रूप में दिखाना।
- उदाहरण: “जय राम रावन मत्त गज मृगराज सुजसु बखानहीं।” (राम को सिंह और रावण को मतवाला हाथी बताया)
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