आदर्श और वरदान – सारांश
पाठ “आदर्श और वरदान” सच्ची मित्रता, सहानुभूति और सहयोग की प्रेरक कहानी है। इसमें दीनानाथ शर्मा अपने पुराने मित्र छगन की याद करते हैं, जिसने बचपन में उनकी फैक्ट्री से लौटते समय उनके बेटे दीनू को तालाब में डूबने से बचाया था। छगन गरीब किसान का बेटा था और आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई छोड़कर बकरियाँ चराता था। लेकिन उसके साहस और शिष्टाचार से प्रभावित होकर शर्मा जी ने उसकी पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी ली। इसके बाद छगन और दीनू में गहरी मित्रता हो गई, जो कृष्ण-सुदामा जैसी सच्ची और निःस्वार्थ थी। समय बीतने के साथ छगन पढ़ाई में आगे बढ़ता गया और डॉक्टर बन गया। वर्षों बाद जब छगन ने अपना नर्सिंग होम खोला तो उसने उद्घाटन के लिए विशेष रूप से दीनानाथ जी को आमंत्रित किया। दोनों मित्र बीस साल बाद जब मिले तो भावुक हो उठे और पुराने स्मृतियों में खो गए। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची मित्रता ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी नहीं देखती, बल्कि निःस्वार्थ प्रेम, सहयोग और आदर्शों पर आधारित होती है।
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